अब तक ग्रामीणों को नए स्कूल भवन नसीब नहीं हो पाई है। भवन काफी पुराना होने के कारण जर्जर व खस्ताहाल हो गया है। आलम यह है कि बरसात के दिनों में बंदर के उत्पात मचाने से खपरैल पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो जाता है। इसके चलते बारिश होने से छत से पानी टपकता है। इससे बचने के लिए हर साल पॉलिथीन सहित खपरैल वर्क का उपयोग करते हैं। तब कही इस तरह समस्या को अंकुश लगा कर जैसे तैसे छात्र-छात्राओं की पढ़ाई पुरी होती है। इन व्याप्त समस्या के बाद भी आज पर्यंत तक ग्रामीणों को नए स्कूल भवन मिल रहा है, जिससे जर्जर पुराने भवन में ग्रामीण बच्चों अव्यवस्था के बीच शिक्षा ग्रहण करने मजबूर हैं।
गांव में लोगों से चर्चा करने पर बताया कि स्कूल भवन की स्थिति काफी दयनीय है। बारिश होने पर बरसात की पानी टपक कर बरामदे में जल जमाव की स्थिति पैदा कर देती है। वहीं छत पर खपरैल युक्तहोने के कारण सुधार के बाद भी बंदर की उछाल कूद से खपरा टूट जाता है। कई बार पॉलिथीन के सहारे बरसात के पानी से बचते बचाते हुए स्कूल में पढ़ाई होती है। ऐसे में शिक्षा के मंदिर कहे जाने वाली स्कूल के लिए एक नए भवन की दरकार है, जिससे छात्र-छात्राओं और शिक्षक को पठन-पाठन में परेशानी का सामना न करना पड़े।