scriptपांच दशक पुराने जर्जर भवन में जल रहा शिक्षा का चिराग | The lamp of education burning in a five-decade old shabby house | Patrika News
कवर्धा

पांच दशक पुराने जर्जर भवन में जल रहा शिक्षा का चिराग

स्कूल भवन की दीवार पर जगह-जगह दरारे पड़ गई है। वहीं छत पर टूटी-फूटी खपरैल पॉलीथिन के सहारे से भवन को ढका हुआ है, जो बरसात में बारिश की पानी व गर्मी के दिनों में तपती धूप से अध्ययनरत छात्रों का सहारा बना हुआ है।

कवर्धाMar 20, 2019 / 11:20 am

Panch Chandravanshi

Five-year old shabby house

Five-year old shabby house

इंदौरी. पचास बरस पुरानी जर्जर खपरैल भवन में शासकीय प्राथमिक शाला संचालित हो रही है। स्कूल भवन की दीवार पर जगह-जगह दरारे पड़ गई है। वहीं छत पर टूटी-फूटी खपरैल पॉलीथिन के सहारे से भवन को ढका हुआ है, जो बरसात में बारिश की पानी व गर्मी के दिनों में तपती धूप से अध्ययनरत छात्रों का सहारा बना हुआ है।
जिला मुख्यालय से महज 16 किलोमीटर की दूरी पर आदर्श ग्राम पंचायत कोसमंदा की बसाहट है, जिसकी आबादी लगभग दो हजार के करीब हैं। स्थानीय बच्चों को प्राथमिक शिक्षा लेने में सहूलियत मिल सके। इस मकसद से गांव में शासकीय प्राथमिक शाला लंबे अरसे से संचालित हो रहा है। वर्तमान में कक्षा पहली से पांचवी तक १९२ छात्र-छात्राए अध्ययनरत हैं, जो रोजाना स्कूल समय में जर्जर भवन में अक्षर ज्ञान सीखने आते हैं। इस प्राथमिक शाला में प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण कर कई लोग खुद इस स्कूल के शिक्षक बन कर छात्रों को शिक्षा का पाठ पढ़ा रहे हैं,
नसीब नहीं हो रहा नए भवन
अब तक ग्रामीणों को नए स्कूल भवन नसीब नहीं हो पाई है। भवन काफी पुराना होने के कारण जर्जर व खस्ताहाल हो गया है। आलम यह है कि बरसात के दिनों में बंदर के उत्पात मचाने से खपरैल पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो जाता है। इसके चलते बारिश होने से छत से पानी टपकता है। इससे बचने के लिए हर साल पॉलिथीन सहित खपरैल वर्क का उपयोग करते हैं। तब कही इस तरह समस्या को अंकुश लगा कर जैसे तैसे छात्र-छात्राओं की पढ़ाई पुरी होती है। इन व्याप्त समस्या के बाद भी आज पर्यंत तक ग्रामीणों को नए स्कूल भवन मिल रहा है, जिससे जर्जर पुराने भवन में ग्रामीण बच्चों अव्यवस्था के बीच शिक्षा ग्रहण करने मजबूर हैं।
बारिश होने से टपकता है पानी
गांव में लोगों से चर्चा करने पर बताया कि स्कूल भवन की स्थिति काफी दयनीय है। बारिश होने पर बरसात की पानी टपक कर बरामदे में जल जमाव की स्थिति पैदा कर देती है। वहीं छत पर खपरैल युक्तहोने के कारण सुधार के बाद भी बंदर की उछाल कूद से खपरा टूट जाता है। कई बार पॉलिथीन के सहारे बरसात के पानी से बचते बचाते हुए स्कूल में पढ़ाई होती है। ऐसे में शिक्षा के मंदिर कहे जाने वाली स्कूल के लिए एक नए भवन की दरकार है, जिससे छात्र-छात्राओं और शिक्षक को पठन-पाठन में परेशानी का सामना न करना पड़े।

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