scriptवनों की अंधाधूंध कटाई से बदल रहा मौसम, घाटी में भी भीषण गर्मी | The weather is changing with the indiscriminate harvesting of forests, | Patrika News

वनों की अंधाधूंध कटाई से बदल रहा मौसम, घाटी में भी भीषण गर्मी

locationकवर्धाPublished: Jun 02, 2019 11:37:09 am

Submitted by:

Panch Chandravanshi

वनांचल चिल्फीघाटी में जगह-जगह ठूंठ देखने को मिल रही है। इससे साफ है कि घाटी में पेड़ पौधे सुरक्षित नहीं है। लगातार वृक्षों के कटाई का विपरित परिणाम भी देखने को मिल रहा है। साल दर बारिश में कमी और भूमिगत जल स्तर का लगातार नीचे चले जाना चिंताजनक है।

Heavy heat in the valley

Heavy heat in the valley

चिल्फीघाटी. चारों ओर घने साल वृक्षों से घिरे होने के कारण वनांचल चिल्फीघाटी को मिनी कश्मिर कहा जाता है। यहां दिसंबर व जनवरी में जहां बर्फ की सफेद चार बिछ जाती है। वहीं भीषण गर्मी में भी लोगों को ठण्डकता का अहसास होता है, लेकिन अब स्थिति बदलने लगी है। वनों की लगातार कटाई के चलते यहां भी भीषण गर्मी पडऩे लगी है।
वनांचल चिल्फीघाटी में जगह-जगह ठूंठ देखने को मिल रही है। इससे साफ है कि घाटी में पेड़ पौधे सुरक्षित नहीं है। लगातार वृक्षों के कटाई का विपरित परिणाम भी देखने को मिल रहा है। साल दर बारिश में कमी और भूमिगत जल स्तर का लगातार नीचे चले जाना चिंताजनक है। इसके बाद भी सबक नहीं ले रहे हैं। जिसे वनों को बचाने की जिम्मेदारी दी गई वे तो गहरी नींद में सो रहे हैं। इसका फायदा उठाते हुए लकड़ी तस्कर वनों की सफाई कर रहे हैं। इसी का नतीजा है कि चिल्फीघाटी में भी भीषण गर्मी पड़ रही है। गर्मी की वजह से अधिकांश कुएं सुख चुके हैं। नदी-नालों में निस्तारी के लिए भी पानी नहीं बचा है। लोग पेयजल और निस्तारी के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। कई वार्डों में हैंडपंप लगे हुए हैं पर उनके हलक भी सूख चुके हैं। कहीं बड़ी मेहनत से पानी निकल भी रहा है तो पीने लायक नहीं है। अगर अभी से ही इस समस्या से नहीं निपटा गया तो आने वाला समय बहुत ही भयानक होगा।
भीषण गर्मी का कारण
वनांचल चिल्फीघाटी और आसपास के इलाका साल, सरई वृक्षों से घिरा हुआ है, जिससे गर्मी के दिनों में पानी टपकता है। इसीलिए गर्मी के दिनों में भी चिल्फीघाटी और आसपास के इलाकों में तापमान नहीं बढ़ पाता था और ठंडकता बनी रहती थी, लेकिन अब स्थिति बदल चुका है। इसका मुख्य कारण साल वृक्षों की कटाई है। हरे भरे वृक्षों के तने में छिलको को काट देते हैं, जिससे कुछ ही दिनों में पूरा पेड़ सुख जाता है। बाद में उस सूखे पेड़ को काटकर ईट, भट्ठो, हॉटल-ढाबो और घरों में खपाया जाता है। अधिकतर साल वृक्षों की कटाई के कारण पत्तों से पानी का टपकना बन्द हो जाता है जिससे तापमान बढऩे लगता है और लोगों को भीषण गर्मी के साथ साथ पानी की समस्या से भी जूझना पड़ता है।
ठूंठ ही ठूंठ नजर आ रहे
चिल्पिघाटी और आसपास के गांव जैसे लोहरटोला, बंगला टिकरा, पटेलटोला हाई स्कूल के पीछे, लूप, साल्हेवारा, बेंदा, तुरैयाबहरा, अकलघरिया, दुलदुला, सरोधादादार, भोथी में ठूंठ और सूखे पेड़ जरूर दिख जाएंगे। ऐसा लगता है जैसे हम अपने ही प्रकृति और वनांचल के दुश्मन हो गए हैं। जबकि इसके वितरित परिणाम सामने आ रही है। अगर जिम्मेदार विभाग के साथ साथ लोग भी जागरूक हो जाए तो इस वनों की कटाई को रोका जा सकता है और पर्यावरण के साथ चिल्फीघाटी को सुरक्षित किया जा सकता है। चिल्फीघाटी को फिर मिनी कश्मीर बनाया जा सकता है नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब चिल्फीघाटी भी गर्म भट्टी जैसी लगने लगेगी।
समस्या का समाधान
चिल्फीघाटी और आसपास के क्षेत्र में साल के अलावा और भी बहुत से प्रजाति के पेड़ पौधे पाए जाते हैं, लेकिन विकास के नाम पर रोड़ किनारे बड़े बड़े सैकड़ों पेड़ों को काट तो दिया गया है, लेकिन नए पौधे लगाने की न तो कोशिश की गई और न ही सड़क किनारे जगह छोड़ा गया है। शायद इन्ही सब कारणों से चिल्फी और बाकी इलाके का भूजलस्तर नीचे चला गया है। जिससे भविष्य में आने वाली पीढिय़ों को गंभीर परिणाम भुगतना पड़ सकता है। इससे बचने के लिए पेड़ों की कटाई को रोकना अत्यंत आवश्यक है जिसके लिए जिम्मेदार विभाग को लोगों के बीच जागरूकता अभियान चलाना चाहिए।
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