हालांकि वन विभाग के अफसर इससे इनकार कर रहे हैं। उनका कहना है कि बाघिन की मौत किसी बाघ या फिर से अन्य किसी हिंसक जानवर से संघर्ष के चलते हुई है। वन विभाग की टीम घटना स्थल पहुंचकर जांच कर रही है। वहीं आसपास गांव के ग्रामीणों से पूछताछ भी की गई है।
कबीरधाम जिले में वर्ष 2014 से अब तक चार तेंदुए की भी मौत हो गई है। नवंबर 2014 में चिल्फ ी वन परिक्षेत्र के शीतलपानी के आश्रित ग्राम मचियाकोना बीट क्रमांक 335 में में मादा तेंदुए का शव मिला था। वहीं अक्टूबर 2018 में भोरमदेव अभयारण्य के बफर एरिया में झलमला से जामुनपानी के बीच शीतलपानी के पास पानी से भरे एक स्टॉपडैम नुमा डबरी में तेंदुए का शव झाडिय़ों में फंसा मिला था। मार्च 2019 में पंडरिया ब्लॉक के नेऊर अंतर्गत बीट क्रमांक 478 के जंगल में शिकारियों ने 11केव्ही तार में कच्चा तार के जरिए तेंदुआ का शिकार किया। इसमें दो मवेशी के मौत हुई थी। वहीं मई 2020 में सहसपुर लोहारा वन परिक्षेत्र के बीट क्रमांक 291 में कर्रानाला डूबान क्षेत्र में मादा तेंदुए का शव मिला। इस तरह से मौत होते जा रहे हैं।
जिले में अब तक दो बाघिन और एक बाघ की मौत हो चुकी है। पहला मामला वर्ष 2010 का है। अमनिया के जंगल में बाघ को जहर देकर मार दिया गया था। मतलब शिकार किया गया था। वहीं दूसरा मामला वर्ष 2011 में भोरमदेव अभयारण्य के जामुनपानी में हथियार से बाघिन की हत्या की गई थी। शिकारी बाघिन के दांत, नाखून व मूंछ के बाल निकालकर अपने साथ ले गए थे। वहीं अब एक और बाघिन की मौत भोरमदेव अभयारण्य क्षेत्र में हुई है।