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जिले के दो स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने आजादी दिलाने में निभाई थी भूमिका

locationकवर्धाPublished: Aug 09, 2022 08:12:37 pm

Submitted by:

Yashwant Jhariya

देश के विभिन्न प्रदेश व ग्रामों में आजादी के लिए चलाए गए आंदोलनों में लोगों ने भरपूर योगदान किया था। कबीरधाम जिला भी इससे अछूता नहीं रहा है। जिले से अनेक लोगों ने इसमें भाग लिया था जिनमें पंडरिया के स्व.पंडित पूरन लाल ओझा और ग्राम चचेड़ी के स्व.लालमणि तिवारी का नाम सम्मान से लिया जाता है। यह स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी रहे जिन्हें नई पीढ़ी को जानना चाहिए।

जिले के दो स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने आजादी दिलाने में निभाई थी भूमिका

जिले के दो स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने आजादी दिलाने में निभाई थी भूमिका

कवर्धा.
स्व.पूरन लाल ओझा ने 8 अगस्त 1942 को गांधी जी द्वारा चलाए गए भारत छोड़ो आन्दोलन में सक्रियता से भाग लिया और जेल भी गए।स्व.पूरन लाल और झूरन लाल के पिता स्व.नरोत्तम लाल ओझा एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण थे। पूरन लाल का जन्म 1910 में हुआ। मन में राष्ट्रप्रेम और आजादी की भावना के चलते 13 अप्रैल 1930 के सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भाग लिया। 1940 में पूर्व महाकौशल प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के प्राथमिक सदस्य बने। 15 अगस्त 1947को देश स्वतंत्र हुआ उस समय महाकौशल प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के सभापति सेठ गोविन्ददास जबलपुर द्वारा ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध स्वातन्त्र्य संग्राम में सक्रिय योगदान के लिए सम्मान में हस्ताक्षर युक्त ताम्र पत्र दिया गया।
खादी पहने तो जेल गए
32वर्ष की आयु में ही यह महात्मा गांधी द्वारा चलाए अंग्रेजों भारत छोड़ो, करो या मरो के आह्वान पर कूद पड़े। उस समय 1942 में गांधी के आह्वान पर आन्दोलनकारियों को खादी पहनना पहचान बन गई थी। इस कार्य से क्रूद्ध अंग्रेज खादी पहनने वालों को जेल में डाल देते थे। ऐसी परिस्थिति में कई कर्णधारों ने भय के कारण खादी त्याग दी। वहीं पूरन लाल ने साहसपूर्वक ब्रिटिश मनसूबों पर पानी फेरते हुए खादी वस्त्र त्यागने से इनकार कर दिया और खादी वस्त्र पहनकर स्वतन्त्रता संग्राम में ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध खुलकर पर्चे बांटे। इसके लिए इस देशभक्त को कारावास की सजा दी गई।
स्व. लालमणि तिवारी
कवर्धा तहसील के ग्राम चचेड़ी के माल गुजार के यहां 12 नवम्बर 1920 को जन्म लेने वाले बालक लालमणि तिवारी के परिजनों को यह अनुमान ही नहीं था कि आगे चलकर स्वतन्त्रता आन्दोलन में मणि और भारत के लाल की तरह दैदीप्यमान होगा। इनकी प्रारंभिक शिक्षा ग्राम चचेड़ी की पाठशाला में हुई। बाद में 1931 में रायपुर के सेंटपाल स्कूल में प्रवेश लिया। यह वह दौर था जब क्रान्तिकुमार भारतीय, मोहनलाल पाण्डेय आदि बैठा करते थे और देश की आजादी पर चर्चा करते थे। इससे प्रेरित होकर लालमणि तिवारी आरंभिक अवस्था में ही गांधी प्रेरित आन्दोलन में एक सामान्य कार्यकर्ता के रूप में दीक्षा ली और खादी वस्त्र अपना ली।
रातोंरात पाम्पलेट तैयार कर बंटवाया
सन 1942 के आन्दोलन में गांधीजी की गिरफ्तारी की खबर चौधरी नीतिराज सिंह के यहां रेडियो पर सुनी। नरसिंहपुर के सभी प्रमुख नेता गिरफ्तार कर लिए गए। इधर छत्तीसगढ़ में शुक्ल जी वगैरह गिरफ्तार हुए। इस स्थिति में लालमणि तिवारी जी ने गुप्ता बुक डिपो से स्टेशनरी की व्यवस्था कराकर रातोंरात पाम्पलेट तैयार कर बंटवाया और जुलूस निकाल जिसमें बालाप्रसाद पचौरी वकील, लक्ष्मीप्रसाद मिश्रा जैसे बड़े नेता शामिल हुए। जब जुलूस पर अंग्रेज अफसर डंडा चलाने की सोंच रहे थे तब वे भी स्प्रिंग वाला डंडा हाथ में छुपाये हुए थे हालांकि उसकी नौबत नहीं आई।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की जानकारी नगर के शिक्षाविद आदित्य श्रीवास्तव द्वारा प्रदान किया गया।

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