19 वर्षों में वाटर लेबल में 150 से 200 फीट तक गिरावट दर्ज
वर्ष २००१ में जिले का वाटर लेबल ५० से ६० फीट था, लेकिन आज की स्थिति यह २५० से अधिक पर जा पहुंचा है। मतलब १९ वर्षों में वाटर लेबल में १५० से २०० फीट तक गिरावट दर्ज की गई है। यह स्थिति जिले के लिए बहुत ही घातक है। आज की स्थिति में यहां कोई बड़ा कदम नहीं उठाया जाता तो आने वाले समय वर्षों में वनांचल के अलावा शहरी क्षेत्र में समस्या बढ़ती जाएगी। वनांचल में २५० फीट में भी पानी नहीं मिल पा रहा है। हैंडपंप से तो पानी निकलना मुश्किल हो चुका है। कुंओं में पानी तो है, लेकिन इतनी गहराई पर कि पानी निकालना संभव नहीं है। वनांचल में लोग झिरिया और नदियों में बचे पानी से काम चला रहे हैं।
वर्ष २००१ में जिले का वाटर लेबल ५० से ६० फीट था, लेकिन आज की स्थिति यह २५० से अधिक पर जा पहुंचा है। मतलब १९ वर्षों में वाटर लेबल में १५० से २०० फीट तक गिरावट दर्ज की गई है। यह स्थिति जिले के लिए बहुत ही घातक है। आज की स्थिति में यहां कोई बड़ा कदम नहीं उठाया जाता तो आने वाले समय वर्षों में वनांचल के अलावा शहरी क्षेत्र में समस्या बढ़ती जाएगी। वनांचल में २५० फीट में भी पानी नहीं मिल पा रहा है। हैंडपंप से तो पानी निकलना मुश्किल हो चुका है। कुंओं में पानी तो है, लेकिन इतनी गहराई पर कि पानी निकालना संभव नहीं है। वनांचल में लोग झिरिया और नदियों में बचे पानी से काम चला रहे हैं।
पंडरिया में 250 फीट नीचे
जिले के चारों विकासखंडों में पानी की समस्या है। नगरीय निकाय पंडरिया के आसपास वाटर लेबल १८० फीट के आसपास है। लेकिन पंडरिया ब्लॉक के वनांचल क्षेत्रों की ओर बढ़ते ही वहां पर स्थिति पूरी तरह से बदल जाती है। पंडरिया के वनांचल में वाटर लेबल २५० फीट तक जा पहुंचा है। इसमें सबसे ज्यादा खराब स्थिति ग्राम पंचायत सेंदूरखार, भेलकी, कांदावानी, बिरहुलडीह, अमनिया, बदना, महली के आसपास की है। यहां झिरिया का ही सहारा है।
जिले के चारों विकासखंडों में पानी की समस्या है। नगरीय निकाय पंडरिया के आसपास वाटर लेबल १८० फीट के आसपास है। लेकिन पंडरिया ब्लॉक के वनांचल क्षेत्रों की ओर बढ़ते ही वहां पर स्थिति पूरी तरह से बदल जाती है। पंडरिया के वनांचल में वाटर लेबल २५० फीट तक जा पहुंचा है। इसमें सबसे ज्यादा खराब स्थिति ग्राम पंचायत सेंदूरखार, भेलकी, कांदावानी, बिरहुलडीह, अमनिया, बदना, महली के आसपास की है। यहां झिरिया का ही सहारा है।
बोर खनन प्रमुख कारण
जिले में बोर खनन की संख्या बढ़ती जा रही है। पानी की कमी को देखते हुए खेतों के अलावा घरों में बोर खनन कराए जा रहे हैं। यह सीमित लोगों को ही लाभ पहुंच रहा है, जबकि इसके कारण भूजल स्तर गिरता ही जा रहा है। जहां पर ५० फीट में ही पानी निकलने लगता था वहां पर आज २५० फीट पर भी पानी निकलना मुश्किल हो चुका है। समय-समय पर बोर खनन पर रोक लगाई गई, जिसके कारण वाटर लेबल संतुलित था, लेकिन अब फिर से खनन की छूट मिलने पर वाटर लेबल डाउन हो चुका है। दो माह के भीतर ही २००० से अधिक बोर खनन हो गए। वहीं पूर्व में विद्युत सिंचाई पंप २९५०५ थे, जो अब लगतार बढ़ते ही जा रहे हैं।
जिले में बोर खनन की संख्या बढ़ती जा रही है। पानी की कमी को देखते हुए खेतों के अलावा घरों में बोर खनन कराए जा रहे हैं। यह सीमित लोगों को ही लाभ पहुंच रहा है, जबकि इसके कारण भूजल स्तर गिरता ही जा रहा है। जहां पर ५० फीट में ही पानी निकलने लगता था वहां पर आज २५० फीट पर भी पानी निकलना मुश्किल हो चुका है। समय-समय पर बोर खनन पर रोक लगाई गई, जिसके कारण वाटर लेबल संतुलित था, लेकिन अब फिर से खनन की छूट मिलने पर वाटर लेबल डाउन हो चुका है। दो माह के भीतर ही २००० से अधिक बोर खनन हो गए। वहीं पूर्व में विद्युत सिंचाई पंप २९५०५ थे, जो अब लगतार बढ़ते ही जा रहे हैं।
सभी विकासखंड अंतर्गत पानी समस्या
बोड़ला विकासखंड के मैदानी क्षेत्र में १७०-१८० फीट के आसपास है जबकि वनांचल में २३०-२५० फीट तक पहुंच चुका है। मैदानी क्षेत्र में सबसे खराब स्थिति सहसपुर लोहारा की है। ग्राम बीरेन्द्रनगर में तो पानी विकट समस्या है। यह ड्राय जोन हो चुका है। वाटर लेबल पूरी तरह से नीचे चला गया है। इसके अलावा ग्राम पटपर, रेंगाटोला में पानी की समस्याएं हैं। कवर्धा विकासखंड के मैदानी क्षेत्रों में १८०-२०० फीट के आसपास है, लेकिन कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जहां पर भूजल स्तर २५० से अधिक पहुंच चुका है। यह स्थिति चिंताजनक है।
बोड़ला विकासखंड के मैदानी क्षेत्र में १७०-१८० फीट के आसपास है जबकि वनांचल में २३०-२५० फीट तक पहुंच चुका है। मैदानी क्षेत्र में सबसे खराब स्थिति सहसपुर लोहारा की है। ग्राम बीरेन्द्रनगर में तो पानी विकट समस्या है। यह ड्राय जोन हो चुका है। वाटर लेबल पूरी तरह से नीचे चला गया है। इसके अलावा ग्राम पटपर, रेंगाटोला में पानी की समस्याएं हैं। कवर्धा विकासखंड के मैदानी क्षेत्रों में १८०-२०० फीट के आसपास है, लेकिन कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जहां पर भूजल स्तर २५० से अधिक पहुंच चुका है। यह स्थिति चिंताजनक है।
जिले के यह है ड्राइजोन एरिया
भूजल स्तर जहां पर बहुत ही कम होता है, उसे ड्राइ जोन एरिया कहते हैं। इस क्षेत्र में हैंडपंप भी काम नहीं करते और झिरिया से भी बमुश्किल पानी निकल पाता है। पंडरिया ब्लॉक के कांदावानी के अजनुटोला, बांसाटोला और भल्लीनदादर, तेलियापानी लेदरा, तिनगड्डा, चियाडाड़, और अमनिया पंचायत के गांवों की स्थिति बहुत ही चिंताजनक है। लोहारा के ग्राम परपट, गोरखपुर, नवघटा, रेंगाबोड, गोछिया, सिंघनपुरी, उलट, रामपुर शामिल हंै। कवर्धा के ग्राम गुढ़ा, पनेका, बिटकुली, झलमला, ओडिया, इंदौरी, बहरमुड़ा सहित अन्य गांव शामिल हैं।
भूजल स्तर जहां पर बहुत ही कम होता है, उसे ड्राइ जोन एरिया कहते हैं। इस क्षेत्र में हैंडपंप भी काम नहीं करते और झिरिया से भी बमुश्किल पानी निकल पाता है। पंडरिया ब्लॉक के कांदावानी के अजनुटोला, बांसाटोला और भल्लीनदादर, तेलियापानी लेदरा, तिनगड्डा, चियाडाड़, और अमनिया पंचायत के गांवों की स्थिति बहुत ही चिंताजनक है। लोहारा के ग्राम परपट, गोरखपुर, नवघटा, रेंगाबोड, गोछिया, सिंघनपुरी, उलट, रामपुर शामिल हंै। कवर्धा के ग्राम गुढ़ा, पनेका, बिटकुली, झलमला, ओडिया, इंदौरी, बहरमुड़ा सहित अन्य गांव शामिल हैं।