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सूचना क्रांति से डाकसेवा प्रभावित, भूले गए चिट्टी लिखना

locationकवर्धाPublished: Apr 09, 2019 11:24:30 am

Submitted by:

Panch Chandravanshi

पिछले कुछ वर्षों में साधारण डाक की मात्रा में तेजी से कमी आई है। अब ज्यादातर लोग चिट्ठी लिखने के बजाय ईमेल और मोबाइल जैसी सुविधा का फायदा उठाते हैं। फोन की दरों में कमी और मोबाइल के बढ़ते चलन से चिट्ठी को अप्रासंगिक कर दिया है।

Postal service affected

Postal service affected

कवर्धा. अपनों की खैरियत का सुखद इंतजार, चिट्ठी मिलने पर अपनों से आधी मुलाकात हो जाने का अहसास। अब यह सबकुछ मानो किस्से-कहानियों की बातें हो चुकी है। सूचना सूचना क्रांति ने डाक सेवा को बुरी तरह से प्रभावित किया है। मोबाइल के चलन से लोग चिट्ठी लिखना तक भूल गए हैं।
पिछले कुछ वर्षों में साधारण डाक की मात्रा में तेजी से कमी आई है। अब ज्यादातर लोग चिट्ठी लिखने के बजाय ईमेल और मोबाइल जैसी सुविधा का फायदा उठाते हैं। फोन की दरों में कमी और मोबाइल के बढ़ते चलन से चिट्ठी को अप्रासंगिक कर दिया है। फोन पर लोग कुछ पलों में ही अपनों की खैरियत पूछ लेते हैं और उस पर उनकी आवाज सुनने का अलग ही एहसास होता है। अब तो इंटरनेट में बात करते हुए एक-दूसरे के चेहरे भी आमने-सामने हो जाते हैं। विभिन्न त्यौहारों में शुभकामनाओं के आदान-प्रदान के लिए भी लोग मोबाइल व इंटरनेट सेवा का इस्तेमाल करते हैं। पहले जैसी बात अब नहीं रह गई है कि बरसात के दिनों में कच्ची सड़क वाले गांवों में कई दिनों तक डाक नहीं जा पाती थी।
प्रत्येक हाथ में मोबाईल
अब प्रत्येक हाथ में मोबाईल व जगह-जगह साइबर कैफे खुल गए हैं और देखते ही देखते काम हो जाता है। यही वजह है कि डाकघर में देशी कार्ड व लिफाफे दिखाई नहीं पड़ते हैं। अब इसका काम केवल सरकारी पत्र, नियुक्ति और नोटिस संबंधी कार्यों में किया जाता है। वहीं डाकघर में अब मनरेगा व निराश्रित पेंशन लेने के लिए ही लोगों की लाइन लगी रहती है।
दूर हुए सारे एहसास
इंटरनेट और मोबाइल सुविधा से मानवीय एहसास दूर हो गए हैं। एक दौर था, जब लोग चिट्ठी पाती ही एक-दूसरे से संवाद का एकमात्र जरिया होता था। शहर हो या गांव अपने परिचितों को चिट्ठी भेजने के लिए डाकघर के बाहर भीड़ लगती थी। गांव की गलियों में साइकिल के घंटियों की आवाज सुनकर लोगों को डाकिया के आने का पता चल जाता। लोग दौड़े-दौड़े घर से बाहर निकल जाते थे। घर परिवार में एकसाथ बैठकर चिट्ठी पढ़ी जाती थी।
गायब हुए लेटर बॉक्स
शहर व गांवों के मुख्य चौक-चौराहों पर लगे लेटर बॉक्स गायब हो गए है। इंटरनेट व मोबाइल चलन से लोग चिट्ठी तो लिखते नहीं हैं, जिसके चलते लेटर बॉक्स खाली रह जाते हैं। चौराहों पर लगे खाली बॉक्स अनुपयोगी होकर जंग लग रहे हैं। यही वजह है कि अब धीरे-धीरे इन्हें चौराहों से निकालकर कबाड़ में डाल दिया गया है। शहर में गिने-चुने जगहों पर ही ये बॉक्स दिखाई देते हैं। सूचना क्रांति के चलते चिट्टी का उपयोग नहीं कर रहे हैं।
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