चंदेलाओं की उत्पत्ति के बारे में परिमल रासो (17वीं शताब्दी) के महोबा खंड में बुंदेली भाषा में एक कहानी लिखी है, आइए mp.patrika.com आपको इस किश्त में बता रहा है उन तमाम सवालों के जवाब, जिनसे अब तक आप अनजान हैं।
सागर. अद्भुत और अकल्पनीय शिल्पकला, स्थापत्य कला व मूर्तिकला के लिए दुनियाभर में विख्यात खजुराहो को लेकर हर किसी के मन में एक ही प्रश्न उठता है कि आखिर ये कृतियां बनवाई किसने थीं? इन्हें बनाने में कितना समय लगा था? लेकिन खजुराहो में मंदिर निर्माण के बारे में कहा जाता है कि ये एक श्राप के कारण बने थे। इन्हें चंदेल राजाओं ने बनवाया था। चंदेलाओं की उत्पत्ति के बारे में परिमल रासो (17वीं शताब्दी) के महोबा खंड में बुंदेली भाषा में एक कहानी लिखी है, आइए mp.patrika.com आपको इस किश्त में बता रहा है उन तमाम सवालों के जवाब, जिनसे अब तक आप अनजान हैं।
हेमावती के सौंदर्य से मोहित होकर चंद्र देव हुए थे प्रकट
एक ब्राह्मण मंत्री की सुंदर कन्या हेमावती काम के आवेश से व्याकुल होकर स्नान करने के लिए सरोवर में गई थी। तब ही चंद्र देवता आकाश से प्रकट हुए। वे हेमावती के सौंदर्य से इतने मोहित हुए कि धरती पर आ गए। चंद्र देवता ने उसकी सुंदरता का बखान करते हुए हेमावती को अपने आलिंगन में ले लिया। ब्रह्म मुहूर्त में जब वे जाने को हुए तो हेमावती ने अपना कोमार्य भंग करने के लिए उन्हें श्राप देने का भय दिया। इस पर चंद्र देवता ने हेमावती से कहा, हे देवी! मैंने यह जानबूझकर नहीं किया है, तुम सुंदर ही इतनी हो कि मैं मोहित हो गया, पर हे प्रिय! आपको दु:खी होने की जरूरत नहीं है। प्रसन्न रहिए, क्योंकि इस संयोग से आपको एक पुत्र की प्राप्ति होगी, जो अजेय क्षत्रिय वीर होगा। उसका शासन चहुंओर होगा। उसकी कीर्ति का हर कोई गान करेगा और उससे हजारों राज्य वंश निकलेंगे। वे जो यज्ञ कराने के बाद मंदिर बनवाएंगे उससे आपका पाप नष्ट हो जाएगा।
चंद्र वर्मन रखा गया नाम
समय के साथ हेमावती ने पहले कालिंजर और फिर करणावती (आज की केन नदी) के किनारे शरण ली। जहां उसने चंद्रमा के समान सुंदर, चंद्रमा के समान तेज और चंद्रमा के ही सामान ताकतवर पुत्र को जन्म दिया। चूंकि वह चंद्र देव के प्रताप से उत्पन्न हुआ था, इसलिए उसका नाम चंद्र वर्मन रखा गया।
पारस पत्थर के साथ राजा होने का दिया आशीर्वाद
चंद्र वर्मन के जन्म के बाद देवताओं के गुरू बृहस्पति उपस्थित हुए और उन्होंने चंद्र वर्मन की कुंडली बनाई। चंद्रदेव भी इस शुभ अवसर पर अवतरित हुए और अपने पुत्र को आशीर्वाद दिया। महज 16 साल की उम्र में चंद्र वर्मन इतने बलशाली हो गए कि उन्होंने एक पत्थर से एक शेर और लकड़ी से दूसरे शेर को मार डाला।यह सुनकर चंद्रदेव अपने पुत्र के प्रताप से प्रसन्न हो उठे। उन्होंने चंद्र वर्मन को एक पारस पत्थर (टच स्टोन) देकर उसे राजा होने का आशीर्वाद दिया। पारस पत्थर से चंद्र वर्मन के पास धनबल भी खूब हो गया। समय के साथ चंद्र वर्मन बड़े होते गए। फिर तय समय पर उनका विवाह किया गया, जिसमें कुबेर, बृहस्पति समेत कई देवता शामिल हुए।
यज्ञ करा बनवाई थी 85 वेदियां
राजा बन जाने के बाद चंद्र वर्मन ने कालचुरी राजाओं को पराजित कर कालिंजर पर विजय प्राप्त की। उन्होंने कालिंजर को ही केन्द्र बनाकर आसपास के इलाके पर अपना अधिपत्य किया। फिर चंद्र वर्मन अपनी पत्नी और मां हेमावती के साथ खजुराहो आया। यहां उसने भाण्डय यज्ञ संपन्न कराया। 85 वेदियां बनवाई गईं और उन्हीं के पास कुएं बनाए गए, जिनमें घी भरकर रहटों की सहायता से वेदियों तक पहुंचाया गया। फिर कुछ समय के अंतराल से इन्हीं यज्ञ वेदियों को जगती बनाकर यहां 85 मंदिर बनवाए गए। यज्ञ के बाद चंद्र वर्मन खजुराहो से महोबा की ओर गया और महोबा को अपनी राजधानी बनाकर रहने लगा।
उपरोक्त कहानी में एक उल्लेख मिलता है कि चंद्र वर्मन ने ही खजुराहो में पूरे 85 मंदिर, बाग बगीजे, ताल-तलैया बनवाए थे लेकिन इन्हें देखकर आज ऐसा लगता है कि मंदिरों का निर्माण बाद के राजाओं ने कराया था, क्योंकि इनकी स्थापत्य और शिल्पकला कुछ-कुछ अलग है। साथ ही मूर्तियों के समूहों में भी भिन्नता देखने मिलती है।