तर्क जो भी बच्चे का क्या कसूर?
सिविल सर्जन डॉ. रमेश नीमा ने बताया कि साढ़े 12 साल की नाबालिग ने चार दिन पहले एक बेटे को जन्म दिया था। जच्चा-बच्चा को चिकित्सकों की विशेष निगरानी में रखा गया। सेहत सामान्य रहने पर शनिवार सुबह दोनों को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया। यहां परिजन अपनी नाबालिग बेटी को साथ ले जाने लगे, लेकिन उन्होंने मासूम को अपनाने से इंकार कर दिया। सिविल सर्जन डॉ. नीमा व चिकित्सकों ने परिजन को समझाया, लेकिन वो नहीं माने। आखिरकार प्रबंधन ने परिजन से कागजी कार्रवाई कराने के बाद नवजात को एसएनसीयू में रखा। डॉ. नीमा की सूचना पर बाल कल्याण समिति अध्यक्ष अक्षिता जोशी, सदस्य प्रीति जैन, वर्षा परसाई, सुषमा परसाई और महिला सशक्तिकरण से राहुल महाजन और राहुल मंडलोई अस्पताल पहुंचे। दोपहर करीब दो बजे टीम ने नाबालिग और परिजन से मुलाकात की। जोशी ने बताया परिजन बच्चे को अपनाना नहीं चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने तत्काल कागजी खानापूर्ति भी कर दी।
तीन माह इंदौर के शिशु गृह में रहेगा मासूम
मासूम नवजात को इंदौर के शिशु गृह भेजा जाएगा। बाल कल्याण समिति अध्यक्ष अक्षिता जोशी ने बताया नवजात को तीन माह शिशु गृह में रखा जाएगा। तीन माह में प्रकरण लीगल फ्री होगा। एक माह तक नाबालिग के परिजन की काउंसिलिंग भी होगी। लीगल फ्री होने के बाद कारा की वेबसाइट के माध्यम से बच्चे के गोद लेने की प्रक्रिया की जा सकेगी।
ये था मामला
करीब दस माह पहले बरुड़ क्षेत्र के भड़वाली गांव में एक साढ़े 12 साल की नाबालिग से इंजीनियरिंग कॉलेज में पढऩे वाले रिश्तेदार ने ही दुष्कर्म किया था। करीब तीन माह पहले नाबालिग का पेटदर्द होने पर मामले का खुलासा हुआ। नाबालिग ने 21 नवंबर को जिला चिकित्सालय में बेटे को जन्म दिया था। परिजन नाबालिग के गर्भपात के लिए न्यायालय के समक्ष भी गुहार लगा चुके थे।