scriptसर्वार्थ सिद्धि योग में हर-हरि का मिलन, बैकुंठ चतुर्दशी व्रत से दूर होंगी बाधाएं | Bekunth Chaturdashi will break away from the fast in the Siddhi yoga | Patrika News

सर्वार्थ सिद्धि योग में हर-हरि का मिलन, बैकुंठ चतुर्दशी व्रत से दूर होंगी बाधाएं

locationखंडवाPublished: Nov 03, 2017 10:58:32 am

मां नर्मदा और सूर्यपुत्री ताप्ती में स्नान से सारी बाधाएं दूर होंगी। वहीं कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को महिला-पुरुष रखते हैं बैकुंठ चतुर्दश

Bekunth Chaturdashi will break away from the fast in the Siddhi yoga in khandwa

Bekunth Chaturdashi will break away from the fast in the Siddhi yoga in khandwa

खंडवा. वैकुण्ठ चतुर्दशी को हरि हर का मिलन ३ नवंबर को होगा। यानी भगवान शिव और विष्णु का मिलन। ये मिलन सर्वार्थ सिद्धि योग में होने से अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। महिला-पुरुष पवित्र नदी में स्नान-दान के बाद व्रत छोड़ते हैं। ताकि घर में भगवान विष्णु और शिव की कृपा हमेशा बनी रहे।
पंडित अंकित मार्केंडेय के मुताबिक दुर्घटना रहित जीवन की कामना के लिए ये व्रत किया जाता है। वहीं बेहतर नौकरी और कैरियर के लिए बैकुंठ चतुर्दशी के दिन नतमस्तक होकर भगवान विष्णु शिव को प्रणाम करना चाहिए। कार्तिक पूर्णिमा के ठीक एक दिन पहले पडऩे वाले इस व्रत का अत्यधिक महत्व है। इस दिन नर्मदा या ताप्ती नदी में स्नान से दो गुना फल मिलता है।

ये है व्रत का धार्मिक महत्व
बैकुंठ के दिन श्री विष्णुजी की पूजा रात में करने का विधान है। एक और कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु देवाधिदेव महादेव का पूजन करने के लिए काशी आए। मणिकर्णिका घाट पर स्नान करके उन्होंने एक हज़ार स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान विश्वनाथ के पूजन का संकल्प किया। अभिषेक के बाद जब वे पूजन करने लगे तो शिवजी ने उनकी भक्ति की परीक्षा के उद्देश्य से एक कमल पुष्प कम कर दिया।

परेशानियां दूर होती है इस व्रत से
मान्यता अनुसार भगवान श्रीहरि को पूजन की पूर्ति के लिए एक हज़ार कमल पुष्प चढ़ाने थे। एक पुष्प की कमी देखकर उन्होंने सोचा मेरी आंखें भी तो कमल के ही समान हैं। मुझे कमल नयन और पुंडरीकाक्ष कहा जाता है। विष्णु अपनी कमल समान आंख चढ़ाने को तैयार हुए। विष्णु की इस भक्ति से प्रसन्न देवाधिदेव महादेव प्रकट होकर बोले हे विष्णु! तुम्हारे समान संसार में दूसरा कोई मेरा भक्त नहीं है। आज की यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी अब बैकुंठ चतुर्दशी कहलाएगी और इस दिन व्रत पूर्वक जो पहले आपका पूजन करेगा, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी।

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