ये है व्रत का धार्मिक महत्व
बैकुंठ के दिन श्री विष्णुजी की पूजा रात में करने का विधान है। एक और कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु देवाधिदेव महादेव का पूजन करने के लिए काशी आए। मणिकर्णिका घाट पर स्नान करके उन्होंने एक हज़ार स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान विश्वनाथ के पूजन का संकल्प किया। अभिषेक के बाद जब वे पूजन करने लगे तो शिवजी ने उनकी भक्ति की परीक्षा के उद्देश्य से एक कमल पुष्प कम कर दिया।
परेशानियां दूर होती है इस व्रत से
मान्यता अनुसार भगवान श्रीहरि को पूजन की पूर्ति के लिए एक हज़ार कमल पुष्प चढ़ाने थे। एक पुष्प की कमी देखकर उन्होंने सोचा मेरी आंखें भी तो कमल के ही समान हैं। मुझे कमल नयन और पुंडरीकाक्ष कहा जाता है। विष्णु अपनी कमल समान आंख चढ़ाने को तैयार हुए। विष्णु की इस भक्ति से प्रसन्न देवाधिदेव महादेव प्रकट होकर बोले हे विष्णु! तुम्हारे समान संसार में दूसरा कोई मेरा भक्त नहीं है। आज की यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी अब बैकुंठ चतुर्दशी कहलाएगी और इस दिन व्रत पूर्वक जो पहले आपका पूजन करेगा, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी।