11 अक्टूबर से 7 नवंबर तक गुरु अस्त रहने से शादियों का सिलसिला 31 अक्टूबर यानी देवउठनी एकादशी से न होकर 19 नवंबर से शुरू होगा। 11 अक्टूबर से 9 नवंबर के बीच सूर्य के निकट रहने से बृहस्पति ग्रह अस्त रहेगा। अस्त होने की वजह से बृहस्पति का प्रभाव कम हो जाएगा। 11 अक्टूबर से 7 नवंबर तक गुरू तारा अस्त रहेगा, जिसके कारण विवाह मुहूर्त नहीं रहेंगे। 15 दिसंबर से 3 फरवरी तक शुक्रास्त एवं खरमास होने से एक बार फिर करीब डेढ़ माह के लिए शादियों का सिलसिला थमेगा।
पं. मार्कंडेय के मुताबिक अक्षय तृतिया, बसंत पंचमी एवं देवउठनी एकादशी अबूझ मुहूर्त माने गए हैं। इसमें कोई भी कार्य बिना मुहूर्त के कर सकते हैं। लेकिन 11 अक्टूबर से गुरु अस्त होने से इस बार देवउठनी एकादशी पर शादियों के लग्न मुहूर्त नहीं हैं।
मीन संक्रांति खरमास
पं. अंकित मार्कंडेय के मुताबिक 14 मार्च से मीन संक्रांति एवं खरमास शुरू हो रहा है। जो 17 अप्रैल तक रहेगा। इस दौरान भी विवाह आदि मांगलिक कार्य नहीं हो सकेंगे। पंचांगों में सुझाए गए विवाह मुहूर्त का विशेष महत्व होने से कई नवयुगल देवउठनी एकादशी पर शादी न करते हुए 11 नवंबर से शुरू हो रही मांगलिक बेला में शादियां करेंगे।
पं. अंकित मार्कंडेय के मुताबिक 14 मार्च से मीन संक्रांति एवं खरमास शुरू हो रहा है। जो 17 अप्रैल तक रहेगा। इस दौरान भी विवाह आदि मांगलिक कार्य नहीं हो सकेंगे। पंचांगों में सुझाए गए विवाह मुहूर्त का विशेष महत्व होने से कई नवयुगल देवउठनी एकादशी पर शादी न करते हुए 11 नवंबर से शुरू हो रही मांगलिक बेला में शादियां करेंगे।
कन्यादान का पुण्य होता है प्राप्त
अक्टूबर माह के अंतिम दिन मंगलवार कार्तिक शुक्ल की एकादशी को देवउठनी एकादशी मनाई जाएगी। भगवान विष्णु इस दिन चार महीने तक सोने के बाद जागेंगे। इसके साथ शुभ कार्यों की शुरूआत होगी। देवउठनी एकादशी के ही दिन भगवान विष्णु के एक स्वरूप शालीग्राम से तुलसी के पौधे का विवाह भी होता है। मान्यता है कि तुलसी और विष्णु के शालीग्राम रूप का विवाह कराने वाले को कन्यादान का पुण्य प्राप्त होता है।
अक्टूबर माह के अंतिम दिन मंगलवार कार्तिक शुक्ल की एकादशी को देवउठनी एकादशी मनाई जाएगी। भगवान विष्णु इस दिन चार महीने तक सोने के बाद जागेंगे। इसके साथ शुभ कार्यों की शुरूआत होगी। देवउठनी एकादशी के ही दिन भगवान विष्णु के एक स्वरूप शालीग्राम से तुलसी के पौधे का विवाह भी होता है। मान्यता है कि तुलसी और विष्णु के शालीग्राम रूप का विवाह कराने वाले को कन्यादान का पुण्य प्राप्त होता है।