पहलवान की पत्नी सीताबाई बताती है कि हिंद केसरी रामचंद्र से उनकी शादी वर्ष १९५९ में हुई थी। उन्होंने वर्ष १९९२ तक कुश्ती लड़ी। फिर अखाड़ा चलाने लगे। कुश्ती के दौरान वह दो रोटी खाते थे। इसके अलावा २५० ग्राम घी, बादाम और दो लीटर दूध पीते थे। साथ ही फल खाते थे। ८६ वर्ष की उम्र में भी वह अपने सभी काम स्वयं करते हैं। इस समय पहलवान डेढ रोटी खाकर पेट भरते हैं।
पिता की स्थिति देख बेटे नहीं उतरे अखाड़े में
पहलवान रामचंद्र केसरी के पांच बेटे हैं। सभी बेटे अलग-अलग स्थानों पर काम कर रहे हैं। बेटों के पहलवान नहीं बनने का कारण जब पहलवान की पत्नी से पूछा तो उन्होंने कहा छोटे बेटे सुनील को वो अखाड़ा ले जाते थे। कुछ समय तक बेटा अखाड़ा गया, लेकिन पिता की दयनीय स्थिति देख वह पीछे हट गया। प्रथम हिंद केसरी बनने के बाद भी पिता को कमाई के तौर पर मात्र पांच हजार रुपए मिलते थे। उन्हें न तो पेंशन मिलती और न ही कोई अन्य सुविधा दी गई है। भविष्य को देखते हुए बेटों ने पहलवानी से मुंह फेर लिया और पढ़ाई कर नौकरी की ओर बढ़ गए।