एक दूसरे को पसंद करने व आपसी रजामंदी होने पर युवक-युवती को पान खिलाकर शादी के लिए रजामंदी जताते हैं। बुधवार को खालवा में ठाठिया बाजार जमकर भराया और ठाठियाओं की मंडली सिर पर रंग-बिरंगी पगड़ी आंखों पर चश्मा और हाथों में गाय की पूंछ के बालों एवं कौडिय़ों से बने भुजबल (बाजूबंद) व पैरों में घुंघरू बांधकर बाँस की लम्बी बांसुरी बजाते हुए ढोलक की थाप पर खूब थिरके इस दौरान बड़ी संख्या में आसपास के गांव से हजारों की संख्या में महिला, पुरुष व बच्चे इनका नृत्य देखने पहुंचे। ग्राम जामोदा के सुंदरलाल ठाठिया ने बताया कि दीपावली के बाद 5 दिन नाच गाकर दीपावली का इनाम मांगते हैं और खुशियां मनाते हैं। वहीं दोंगालिया के रामलाल ठाठिया ने बताया कि 12 महीने में एक बार मांगते हैं, जो मिलता है प्रेम से आपस में बांट लेते हैं। साल भर मौज में रहकर अपना गाय, भैंस चराने का काम करते हैं।
आदिवासी समाज के युवक-युवतियों के लिए एक दूसरे को प्रपोज करने का भी बेहतर मौका होता है। नृत्य और गायन के दौरान अपनी पसंद की युवती को युवक पान खिलाकर शादी के लिए राजी करने प्रयास करता है। दोनों की रजामंदी के बाद दोनों के माता-पिता की सहमति से विवाह होता है। आदिवासी आज भी अपनी परंपरा को जीवंत रखे हुए हैं। इनमें समय के साथ बदलाव तो आया है, लेकिन यह अपनी परंपराओं को जीवित रखने के लिए प्रयासरत हैं।