scriptTribal tradition – बांसुरी की धुन पर नृत्य के साथ ही प्रेम प्रस्ताव का सुनहरा मौका | Golden opportunity of love proposal with dance to the tune of flute | Patrika News

Tribal tradition – बांसुरी की धुन पर नृत्य के साथ ही प्रेम प्रस्ताव का सुनहरा मौका

locationखंडवाPublished: Nov 19, 2020 02:54:54 pm

Submitted by:

tarunendra chauhan

जमके भराया ठाठिया बाजार, बंसी की तान और ढोलक की थाप पर थिरके आदिवासी
 
 

Gond tribal tradition

Gond tribal tradition

खंडवा. वनवासी बहुल विकासखंड खालवा क्षेत्र में दीपावली के बाद 5 दिनों तक लगने वाले विभिन्न साप्ताहिक हाट बाजारों को ठाठिया बाजार कहा जाता है, जिसमें गोंड समाज के आदिवासियों का एक विशेष समुदाय जो पशुओं को चराने का काम करता है “ठाठिया” कहलाता है। वे टोलियां बनाकर दीपावली के बाद पांच दिनों तक लगने वाले साप्ताहिक हाट बाजारों में ढोलक की थाप एवं बांसुरी की तान पर नाचते गाते हुए दुकानों एवं घरों से दीपावली का इनाम मांगते हैं तथा जो खाद्य सामग्री एवं नकद राशि इक_ा होती है, उसे आपस मबांट लेते हैं। बाजार में कुंवारे युवक-युवतियां भी सजधज कर पहुंचते हैं।

एक दूसरे को पसंद करने व आपसी रजामंदी होने पर युवक-युवती को पान खिलाकर शादी के लिए रजामंदी जताते हैं। बुधवार को खालवा में ठाठिया बाजार जमकर भराया और ठाठियाओं की मंडली सिर पर रंग-बिरंगी पगड़ी आंखों पर चश्मा और हाथों में गाय की पूंछ के बालों एवं कौडिय़ों से बने भुजबल (बाजूबंद) व पैरों में घुंघरू बांधकर बाँस की लम्बी बांसुरी बजाते हुए ढोलक की थाप पर खूब थिरके इस दौरान बड़ी संख्या में आसपास के गांव से हजारों की संख्या में महिला, पुरुष व बच्चे इनका नृत्य देखने पहुंचे। ग्राम जामोदा के सुंदरलाल ठाठिया ने बताया कि दीपावली के बाद 5 दिन नाच गाकर दीपावली का इनाम मांगते हैं और खुशियां मनाते हैं। वहीं दोंगालिया के रामलाल ठाठिया ने बताया कि 12 महीने में एक बार मांगते हैं, जो मिलता है प्रेम से आपस में बांट लेते हैं। साल भर मौज में रहकर अपना गाय, भैंस चराने का काम करते हैं।

आदिवासी समाज के युवक-युवतियों के लिए एक दूसरे को प्रपोज करने का भी बेहतर मौका होता है। नृत्य और गायन के दौरान अपनी पसंद की युवती को युवक पान खिलाकर शादी के लिए राजी करने प्रयास करता है। दोनों की रजामंदी के बाद दोनों के माता-पिता की सहमति से विवाह होता है। आदिवासी आज भी अपनी परंपरा को जीवंत रखे हुए हैं। इनमें समय के साथ बदलाव तो आया है, लेकिन यह अपनी परंपराओं को जीवित रखने के लिए प्रयासरत हैं।

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