पोरवाड़ समाज के ट्रस्टी प्रेमांशु चौधरी बताते है कि चार्तुमास के दौरान मुनिश्री सराफा स्थित तुलसी उद्यान में प्रवचन करते थे। इस दौरान उन्होंने सीख देते हुए कहा था कि लड़ लो, झगड़ लो मगर बोलचाल बंद मत करो। सदा याद रखना, भले ही लड़ लेना-झगड़ लेना, पीट जाना-पीट देना, मगर बोलचाल बंद मत करना। क्योंकि बोलचाल के बंद होते ही सुलह के सारे दरवाजे बंद हो जाते है। वहीं उन्होंने जैन साधु की परिभाषा देते हुए कहा था जिसके पैर में जूता नहीं, जिसके सर पर छाता नहीं, जिसका बैंक में खाता नहीं, जिसका परिवार से नाता नहीं, वह होता है जैन साधु। जिसके तन पर कपड़ा नहीं, जिसके वचन में लफड़ा नहीं, जिसके मन में झगड़ा नहीं और जिसके जीवन में बखेड़ा नहीं वह होता है जैन साधु।