scriptमुनि तरूण सागर के आह्वान पर श्वेताम्बर और दिगंबर समाज 23 वर्षों से एक साथ मनाता है महावीर जयंती | khandwa news: muni shri tarun sagar ji maharaj passed away | Patrika News

मुनि तरूण सागर के आह्वान पर श्वेताम्बर और दिगंबर समाज 23 वर्षों से एक साथ मनाता है महावीर जयंती

locationखंडवाPublished: Sep 02, 2018 12:07:09 am

वर्ष 1995 में तरूण सागर महाराज ने खंडवा में किया था चार्तुमास, चर्तुमास के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री पटवा ने मुनिश्री को दिया था आहार

khandwa news: muni shri tarun sagar ji maharaj passed away

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खंडवा. भगवान महावीर के संदेश और वाणी को जन-जन तक पहुंचाने वाले क्रांतिकारी राष्ट्रीय संत जैन मुनि तरूण सागर महाराज का शनिवार को देवलोक गमन हो गया। तरूण सागर महाराज का खंडवा से पुराना नाता रहा है। उन्होंने खंडवा में जैन समाज को एक करने का काम किया था। मुनिश्री ने वर्ष १९९५ में खंडवा में चार्तुमास किया था। इस दौरान उन्होंने चार माह तक सराफा जैन धर्मशाला, तुलसी उद्यान, रायचंद नागड़ा स्कूल, नगर निगम, जेल परिसर में धर्म की प्रभावना की थी। उनके कड़वे प्रवचन सुनने के लिए जैन सहित अन्य समाज के लोग पहुंचते थे। इसी बीच मुनिश्री ने खंडवा के श्वेताम्बर और दिगंबर समाज से आह्वान किया था कि भगवान महावीर जयंती एक साथ मनाएं। तभी से देशभर में खंडवा एक मात्र ऐसा शहर है जहां पर श्वेताम्बर और दिगंबर समाजजन एकसाथ मिलकर महावीर जयंती मनाते आ रहे हैं। उनका मत था कि भगवान महावीर जैन संप्रदाय के ही नहीं बल्कि संसार के परमात्मा थे और उन्हें मंदिर तक सीमित रखना ठीक नहीं है। साथ ही दोनों समाज अपनी-अपनी पूजा पद्धति से सालभर पूजा-अर्चना करें, लेकिन महावीर जयंती साथ मनाए।
पूर्व सीएम पटवा ने दिया था आहार
समाज के सुनील जैन ने बताया खंडवा में चार्तुमास के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा ने मुनि तरूण सागर को आहार दिया था। इस दौरान पूर्व सीएम ने सोले के पकड़े धारण कर प्रदीप कुमार पाटौदी के निवास पर मुनिश्री को आहार दिया। इसके अलावा मंत्री मुकेश नायक, तत्कालीन सांसद नंदकुमार सिंह चौहान, तत्कालीन विधायक हुकुमचंद यादव मुनिश्री के संपर्क में रहे। चार्तुमास में मुनिश्री से बड़ी संख्या में युवा प्रभावित हुए। उनके कड़वे वचन सुनकर ही इस समय समाज के युवा धर्म के पथ पर चल रहे हैं।

मुनिश्री ने बताई थी जैन साधु की परिभाषा
पोरवाड़ समाज के ट्रस्टी प्रेमांशु चौधरी बताते है कि चार्तुमास के दौरान मुनिश्री सराफा स्थित तुलसी उद्यान में प्रवचन करते थे। इस दौरान उन्होंने सीख देते हुए कहा था कि लड़ लो, झगड़ लो मगर बोलचाल बंद मत करो। सदा याद रखना, भले ही लड़ लेना-झगड़ लेना, पीट जाना-पीट देना, मगर बोलचाल बंद मत करना। क्योंकि बोलचाल के बंद होते ही सुलह के सारे दरवाजे बंद हो जाते है। वहीं उन्होंने जैन साधु की परिभाषा देते हुए कहा था जिसके पैर में जूता नहीं, जिसके सर पर छाता नहीं, जिसका बैंक में खाता नहीं, जिसका परिवार से नाता नहीं, वह होता है जैन साधु। जिसके तन पर कपड़ा नहीं, जिसके वचन में लफड़ा नहीं, जिसके मन में झगड़ा नहीं और जिसके जीवन में बखेड़ा नहीं वह होता है जैन साधु।
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