प्रसादी के दान के लिए एक साल की वेटिंग
मुख्यग्रंथी राणा बताते है, नि:स्वार्थ सेवा है इसलिए हर कोई इससे जुडऩा चाहता है। प्रसादी के सहयोग के लिए एक साल की बुकिंग चल रही है। इसमें सिक्ख समाज के साथ अन्य लोग भी शामिल हैं। कई लोग राशि तो कुछ लोग आटा, दाल और सब्जी दान में उपलब्ध कराते हैं। रोज 50 किलो पूड़ी और 5 से 10 किलो दाल बनाकर तैयार की जाती है। खास दिनों में खाने के साथ मिठाई को शमिल किया जाता है। जिस दिन जिसका नंबर आता है उसके नाम का भोग लगाते हैं।
16 साल पहले ऐसे हुई थी शुरुआत
मुख्यग्रंथी राणा बताते है, आज करीब 16 साल पहले डुल्हार फाटा में यह लंगर प्रसादी बांटने की शुरुआत हुई थी। लेकिन किसी कारण वह जारी नहीं रह सकी। इसके बाद सिंध सभा ने इसकी जिम्मेदारी संभाली जो आज तक जारी है। शुरू में तो काफी परेशानी हुई, लेकिन धीरे-धीरे अब लोग जुड़ते गए तो कारवां बनता गया। बीच में प्लेटफार्म पर ठेला ले जाने पर पाबंदी लगा दी गई थी, जब रेलवे अधिकारियों ने इस पुण्य के काम को देखा तो फिर अनुमति दे दी।