डॉक्टर होते तो बच जाती क्षमा की जान प्रसव पीड़ा बढऩे पर क्षमाबाई को लेवर रूम में ले जाया गया। जहां उसकी डिलीवरी सब सेंटर की एएनएम सरिता पवार ने कराई। महिला ने बेटे को जन्म दिया। सुबह करीब १० बजे बीपी कम होने से प्रसूता ने दमतोड़ दिया। वहीं बच्चे की भी मौत हो गई। परिजन ने कहा अस्पताल में डॉक्टर होते तो शायद क्षमा की जान बच जाती। केंद्र में लंबे समय से डॉक्टर और नर्स की कमी बनी हुई है। ग्रामीणों की मांग के बाद भी स्वास्थ्य विभाग इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है।
केंद्र के भरोसे हैं 30 ग्रामों के लोग प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में उपचार कराने के लिए आसपास के करीब 30 ग्रामों के लोग पहुंचते हैं। रोजाना 20 से अधिक मरीज इलाज कराते हैं। बावजूद इसके यहां सिर्फ एक एएनएम, कम्पाउंडर और ड्रेसर को तैनात किया गया। जबकि केंद्र डॉक्टर और नर्स होना अनिवार्य है। क्योंकि गंभीर मामला आने पर स्टॉफ उसे संभाल नहीं पाता है। ऐसे में मरीज को खालवा या फिर खंडवा रेफर करना पड़ता है। जिससे कई बार मरीज रास्ते में ही दम तोड़ देता है।
केंद्र पर प्रसूताओं को नहीं मिलता पौष्टिक आहार शासन द्वारा प्रसूताओं को प्रसव के बाद पौष्टिक आहार दिया जाता है, लेकिन खारकला केंद्र पर प्रसूताओं को यह आहार नहीं दिया जाता है। सूत्र बताते है कि केंद्र में भोजन बनाने वाली महिला को स्वास्थ्य विभाग द्वारा वेतन का भुगतान नहीं किया गया है। इस कारण महिला ने भोजन बनाने का काम बंद कर दिया है। जिस कारण प्रसूताओं को आहार भी नहीं मिल पा रहा है। इस मामले में खालवा बीएमओ शैलेंद्र कटारिया को जानकारी है। बावजूद इसके वह दूसरी व्यवस्था कराने की बजाए मौन बैठे हुए है। इधर, प्रसव के दौरान जच्चा-बच्चा की मौत मामले में बीएमओ कटारिया से संपर्क नहीं हो सका।