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खंडवा

काबिलेतारीफ है इनका समर्पण, शिक्षा के लिए समर्पित हो गए ये शिक्षक

रिटायर्ड शिक्षिका पद्मिनी कर्नल का शिक्षा के प्रति समर्पण भाव बन गया मिसाल, सेवानिवृत्त होने के बाद भी पढ़ाने का ऐसा समर्पण कि आज भी रोज जाती हैं स्कूल.

खंडवाSep 05, 2016 / 02:50 pm

Editorial Khandwa

Retired colonel Padmini teacher dedication towards

Retired colonel Padmini teacher dedication towards education

खंडवा/खरगोन/बुरहानपुर/बड़वानी. 
खंडवा के सरोजिनी नायडू स्कूल में मैंने सन् 1979 में ज्वॉइन किया था। सन् 2012 के मई तक ड्यूटी की। इसी स्कूल से सेवानिवृत्त हुई। जून-2012 में इसी स्कूल में फिर से पढ़ाना शुरू किया। अब भी नि:स्वार्थ भाव से पढ़ा रही हूं। खुद को शिक्षा के लिए समर्पित कर दिया है।

शिक्षा में करते हैं नवाचार, इनका व्यक्तित्व देता है सीख 
स्कूल में ओपन लैब बनाकर बच्चों के लिए विज्ञान की पढ़ाई को बनाया आसान, खेल-खेल में सुलझाई विज्ञान विषय की जटिलता। खुद के स्कूल के साथ ही संकुल व जिले के स्कूलों में पहुंचते हैं, शैक्षणिक गुणवत्ता सुधार के लिए लगातार जारी रहते हैं इनके प्रयास

खंडवा जिले के बोरगांव बुजुर्ग हायरसेकंडरी स्कूल के प्राचार्य दिलीप कर्पे का व्यक्तित्व सीख देता है। क्योंकि इन्हें शिक्षा के अलावा कुछ सूझता ही नहीं है। स्कूल में ओपन लैब बनाकर इन्होंने बच्चों के लिए विज्ञान की पढ़ाई को न सिर्फ आसान बनाया बल्कि खेल-खेल में इसकी जटिलता को दूर भी किया। नवाचार ऐसा भी किया कि कैंपस में स्थित प्राइमरी से हायरसेकंडरी स्कूल तक के शिक्षकों को ‘एक्सचेंजÓ भी किया। जिस शिक्षक-शिक्षिका की जिस विषय में पकड़ अच्छी है, उसे उस स्तर की कक्षा में पढ़ाई का अवसर दिया। सोलर लाइट से स्कूल कैंपस में भारत का नक्शा बनवा चुके हैं। संकुल के सरकारी स्कूल पिपरहट्टी में 140 बच्चे इनके ही नवाचार से टाई पहनकर आते हैं। 173 बार सम्मानित हुए हैं।

छुट्टी नहीं लेते हैं ये, रोज स्कूल जाना इनका जुनून
हाईस्कूल डूल्हार के शिक्षक कैलाश वर्मा। इनकी खासियत ये है कि ये स्कूल से छुट्टी नहीं लेते हैं। पढ़ाने का ऐसा शौक है कि रोज स्कूल जाना इनका जुनून बन गया है। इनका विषय संस्कृत है। 1998 से शिक्षा विभाग में है। जब इनकी मां का देहांत हुआ था, तब भी ये स्कूल से सिर्फ छह दिन ही दूर रह पाए। सहायक अध्यापक से अध्यापक बनने के बाद डूल्हार आए, तब से लगातार पढ़ाई पर ही इनका पूरा फोकस है। सत्र 2015-16 में इनके विषय संस्कृत में 65 जबकि हिंदी में 55 बच्चों ने ‘विशेष योग्यताÓ हासिल की। शिक्षक वर्मा कहते हैं कि रोज स्कूल जाना मुझे पसंद है। मैं अपना कर्तव्य पूरी निष्ठा से निभाना चाहता हूं। शिक्षा के प्रति मेरा ये लगाव इसलिए भी है, क्योंकि मैं बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं सह सकता।

धन के लबादे से निकलकर बने वास्तविक शिक्षक, संवार रहे भविष्य
पिता कलेक्टर थे, गरीब बेटियों को दे रहीं हैं शिक्षा
खंडवा की रमा कॉलोनी में रहने वाली डॉ. अरुणा ध्यानी गरीब बेटियों की शिक्षा को लेकर बहुत संवेदनशील हैं। उनकी फीस भरने से लेकर उन्हें नि:शुल्क पढ़ाती तक हैं। डॉ. अरुणा ध्यानी को उनके पति डॉ. सुभाषचंद्र ध्यानी का पूरा साथ मिलता है। दोनों ही बॉटनी में पीएचडी हैं। आर्थिक रूप से कमजोर बेटियों की मदद के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। डॉ. अरुणा ध्यानी के पिता पुरुषोत्तमदास भार्गव बतौर धार कलेक्टर रिटायर्ड हुए थे। उनसे ही सेवा की सीख मिली। डॉ. ध्यानी कहती हैं कि शा. कॉलेज रतलाम में मेरी नियुक्ति हुई थी लेकिन मैं छोड़ आई। घरों में काम करने वाली बच्चियों को पढ़ाई से जोड़ते हैं, उनकी हरसंभव मदद करते हैं। किसी बेटी की पढ़ाई ना छूटे इसलिए उनकी फीस भी भर देते हैं। अगले साल रिटायरमेंट के बाद हम दोनों पति-पत्नी अपना अधिकांश समय ऐसी ही बेटियों की शिक्षा को समर्पित कर देंगे।

बगैर अपेक्षा किए ये करते रहते हैं अपना काम
शिक्षक सुधीर देशपांडे ऐसा नाम है जो बगैर अपेक्षा किए अपना काम करते रहते हैं। ये बच्चों से जुड़कर उनकी भाषा, उनके परिवेश में पढ़ाई कराते हैं। टीचर्स को भी ट्रेनिंग देते रहे हैं। शिक्षक प्रशिक्षक के रूप में काम हो, जनशिक्षक, बीएसी या फिर सहायक शिक्षा समन्वयक। हर काम को बखूबी किया। लेकिन धन से ज्यादा महत्व शिक्षा का समझा। विज्ञान विषय को बच्चों के बीच लोकप्रिय बनाने के लिए काम किया। खगोल विज्ञान विषय पर जिलेभर में गतिविधियां की। शुक्र ग्रह का परागमन और पुच्छल तारा के बारे में समझने का आसान तरीका बताया। गणित, विज्ञान विषय के साथ ही हिंदी साहित्य के क्षेत्र में नई विधा दी। मप्र पाठ्यपुस्तक निगम की पुस्तकों का हिंदी से मराठी संपादन का काम भी ये कर चुके हैं। धन या अन्य किसी प्रमाण-पत्र की अपेक्षा इन्हें नहीं है। ये कहते हैं कि जिन बच्चों को हम पढ़ा रहे हैं, वो सम्मान करते हैं, यही सबसे बड़ा सम्मान है।

ये हैं शिक्षिका गुलाब कर्नल। 1989 से शिक्षा विभाग में हैं। सन् 1995 में खंडवा के मोतीलाल नेहरू स्कूल में ज्वॉइन किया। उसके बाद से शिक्षा के प्रति इनका समर्पण जारी है। अपनी बहन शिक्षिका पद्मिनी कर्नल की तरह ही ये भी सेवानिवृत्त होने के बाद पढ़ा रही हैं। इनका विषय अंग्रेजी है। 31 जुलाई 2016 को रिटायरमेंट के बाद इन्होंने फिर से निस्वार्थ सेवा भाव से इसी स्कूल में फिर से पढ़ाई कराना शुरू करा दिया। शिक्षिका गुलाब कर्नल का कहना है कि शिक्षा से लगातार जुड़ाव रखना ही हमारा मकसद है। बच्चे कल का भविष्य हैं। उन्हें हम कुछ दे पा रहे हैं, ये हमारा सौभाग्य है।

ऐसी शिक्षिका थीं मेरी
जब मैं कक्षा 9वीं में थी तब अंग्रेजी की शिक्षिका ने मेरे अंदर की पब्लिक स्पीकिंग को बेहतर किया। उससे मेरा आत्म-विश्वास बढ़ा। कॉलेज में लेक्चरर नलिनी बहुगुणा ने मेरे अंदर की प्रतिभा को पहचाना। उन्होंने मुझे कहा था कि तुम आईएएस बन सकती हों। उन्होंने ही मेरी नेतृत्व क्षमता को भी विकसित किया। मैं अपने सभी शिक्षकों के प्रति हमेशा कृतज्ञ रहूंगी। 
स्वाति मीणा, कलेक्टर, खंडवा


ऐसा शिक्षक हो मेरा
बदलते दौर में किताबी ज्ञान में तो बड़ा काम हुआ है। स्कूल के बच्चे, कॉलेज को मात देने लगे हैं। लेकिन इसका श्याम पक्ष भी बेहद डरावना है। कॅरियर की अंधी दौड़ नैतिकता के सारे बैरियर क्रॉस कर रही है। अधिकारों के प्रति सजग हुए, कर्तव्य भूल गए। जरूरत ऐसे गुरु की है जो नई पीढ़ी को मूल्य, संस्कृति और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जवाबदेह बनाए।
आलोक सेठी, साहित्यकार, खंडवा

छात्र की नजर में आज का शिक्षक
वर्तमान में अधिकांश शिक्षक अपनी शक्ति को भूल गए हैं। जैसे रामायण में हनुमान जी को उनकी शक्तियाद दिलाई गई थी, वैसे ही इस दौर के शिक्षकों को भी याद दिलाना होगा कि उनके कांधों पर राष्ट्र निर्माण की जिम्मेदारी है। ऐसा नहीं है कि सभी ऐसे ही हो गए हैं। कई शिक्षक ऐसे हैं जो आज भी अपनी जिम्मेदारी बखूबी समझकर अपने दायित्व का पूरी निष्ठा से निर्वहन कर रहे हैं।
अर्पणा सैनी, छात्रा

स्कूल-बच्चों से खुद को नहीं कर पाए अलग, 76 की उम्र में दे रहे शिक्षा 
निमाड़ में कई ऐसे शिक्षक हैं जो नि:शुल्क शिक्षादान देकर अलख जगा रहे हैं। खरगोन के गुलाबसिंह जहां सेवानिवृत्त होने के बाद भी रोजाना पढ़ाने जाते हैं, वहीं नेपानगर के शिक्षक महेन्द्र महाजन गरीब बच्चों का भविय संवारने में जुटे हैं।
67 की उम्र में सेवानिवृत्त होने के बाद भी दे रहे शिक्षा ज्ञान
खरगोन जिले के शिक्षक गुलाबसिंह नथेले शिक्षकों के लिए मिसाल बने हुए हैं। जुलाई 2012 में सेवानिवृत्त होने के बाद भी और जीवन के 67 बसंत पार कर चुके गुलाबङ्क्षसह आज भी शिक्षा की अलख जगाए हुए हैं। शिक्षक नथेले आज भी प्रतिदिन उत्कृष्ट विद्यालय में 3 से 4 घंटे बच्चों को नि:शुल्क पढ़ाते हैं। उन्होंने उत्कृष्ट विद्यालय से ही पढ़ाई की और वहीं प्रिंसिपल बने। बकौल, शिक्षक नथेले उत्कृष्ट स्कूल से जीवन की अमिट यादें जुड़ी हैं, इसलिए मैं कभी खुद को स्कूल व छात्रों से अलग नहीं कर पाया। कक्षा 11 वीं और 12 वीं में बच्चों को फिजिक्स पढ़ाते हैं।

शिक्षा से गरीब बच्चों का संवार रहे भविष्य
नेपानगर क्षेत्र के छोटे गांव चांदनी में जन्मे शिक्षक महेन्द्र आनंद महाजन की लगन और जुझारुपन से आज 35 बच्चों का भविष्य संवर गया है। असीर में प्राथमिक शाला में सहायक अध्यापक के रूप में पदस्थ महाजन ने खुद आर्थिक परेशानियों से जूझते हुए स्लम एरिया के 35 बच्चों को गतिविधि आधारित शिक्षा (एबीएस) एक्टिविटी बेस्ड लर्निंग के माध्यम से कखग से लेकर जोड़-घटाव तक पढ़ाया और ये सभी बच्चे आज कक्षा 8 के प्रतिभावान छात्रों में शुमार हैं। वे 2007 से गरीब आदिवासी बच्चों को नि:शुल्क शिक्षादान देकर उनका भविष्य संवारने में लगे हैं। 

स्कूलों में नि:शुल्क शिविर लगाकर सिखा रहे योग
वजन 122 किलो से 73 किलो करने के बाद महेश्वर के कपिल श्रीमाली की योग शिक्षा के प्रति ऐसी लगन लगी कि खुद को योग गुरु बनाने में तीन साल कड़ी मेहनत की। योग की विभिन्न क्रियाओं को सीखा। अब इसे शिक्षा के माध्यम से बच्चों में योग कला सीखने की ललक पैदा कर रहे हैं। वे स्कूलों में नि:शुल्क कैंप लगाकर योग सिखाते हैं। उनका कहना है भारत में यदि सभी लोग योग करने लगे तो सबकी कार्यक्षमता दोगुनी हो जाएगी। योग से शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक उन्नति भी होती है। योग ने मेरा जीवन बदला। मैंने योग को अपना जीवन समर्पित किया।

कुछ शिक्षक ऐसे होते हैं, जिन्हें हमेशा ही लीक से हटकर काम करना पसंद होता है। वो इसे चुनौती मानते हुए आगे बढ़ते हैं और सफल भी होते हैं। खंडवा जिले के ऐसे ही ये दो शिक्षक आज राज्यस्तर पर सम्मानित होंगे…
शिक्षक शाहिद खान ने लोहारी स्कूल में नवाचार किया। स्कूल को बच्चों के लिए ‘आनंदघरÓ बना दिया। जो बच्चे पहले स्कूल नहीं आते थे, वो नियमित आने लगे।
शाहिद खान कहते हैं कि ‘हैप्पी स्कूलÓ की थीम पर मेरा मन हमेशा से ही काम करना चाहता था। पहले रामनगर के स्कूल में बड्डर समाज के 43 ऐसे बच्चों को स्कूल से जोड़ा, जो भीख मांगने जाते थे। इनमें से 36 नियमित स्कूल भी आने लगे। फिर लोहारी स्कूल में इसे आगे बढ़ाया।

चुनौतियों का सामना
ग्रामीण क्षेत्र में सौ फीसदी बच्चों को स्कूल लाना चुनौती होता है। पहले जो बच्चे स्कूल नहीं आते थे, उन्हें मैं बाइक पर बैठाकर स्कूल लाता था। फिर मैंने बाल कैबिनेट बनाई। बच्चों का साथ लिया। ढोल बजाकर शाला त्यागी बच्चों को स्कूल लाए। 100 प्रतिशत उपस्थिति हुई। बच्चे स्कूल से लगातार जुड़े रहें, इसलिए सीडी लगाकर बच्चों का लैपटॉप से पढ़ाई कराई। मध्याह्न भोजन में जाति-पाति व ऊंच-नीच का कोई अंतर नहीं रहने दिया। सभी बच्चों को एक साथ खाना खिलाया। ग्रामीण परिवेश में ये थोड़ा मुश्किल जरूर होता है लेकिन सभी में समभाव आए, इसलिए इस चुनौती को भी सब के साथ व सहयोग से पार किया। वर्तमान में ऊर्दू मिडिल स्कूल खंडवा में पदस्थ हूं और यहां बेहतर करने के प्रयास कर रहा हूं।

बंभाड़ा गांव में हर तीसरे घर में हैं शिक्षक
बंभाड़ा गांव में मात्र 1200 मकान हैं इनमें करीब 400 तो शिक्षक ही हैं। गांव में जन्मे हर बालक की यही चाह होती है कि वह बड़ा होकर शिक्षा का उजियारा फैलाए। 
गांव के कई परिवारों में बाप-बेटे सास-बहू और बेटा-बेटी भी शिक्षक हैं। इसके अलावा यहां से बच्चे पढ़ लिखकर देश के बड़े- बड़े शहरों और विदेशों में भी नौकरियां कर रहे हैं।यह गांव आसपास के अन्य गांवों के लिए मिसाल बना है।
बुरहानपुर जिले के शाहपुर क्षेत्र का बंभाड़ा ग्राम अपने आप में अनोखा है। यहां मात्र 1200 मकान है, लेकिन इनमें 400 से अधिक शिक्षक हैं। इस गांव के लोग अन्य किसी कार्यक्षेत्र में जाने के बजाय शिक्षक बनना ज्यादा पसंद करते हैं। फिर चाहे बहू हो या बेटी। ग्राम के शिक्षक सुधीर महाजन को शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर कार्य पर वर्ष 2013 में राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटील भी सम्मानित कर चुकी हैं। साथ ही वर्ष 2014 में द ग्लोरी ऑफ इंडिया अवार्ड से भी नवाजा जा चुका है। गांव में कुछ परिवार तो ऐसे हैं जहां पीढिय़ों से परिवार के सदस्य लगातार शिक्षक का ही पेशा अपना रहे हैं। 

कंटेंट: अमित जायसवाल (खंडवा), हेमंत जाट (खरगोन), मनीष विद्यार्थी (बुरहानपुर), गणेशकुमार बाविस्कर (शाहपुर), नितेश दसौंधी (ऊन)
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