शकील आजमी ने गजलें सुनाकर समां बांधा, इन शेर पर पाई भरपूर दाद
खंडवाPublished: Sep 25, 2019 07:28:00 pm
शकील आजमी ने गजलें सुनाकर समां बांधा
Shakeel Azmi Ghazals News
खंडवा.
गौरीकुंज सभागार में सेठी संस्थान ट्रस्ट की ओर से आयोजित कवि सम्मेलन व मुशायरे में शायर तथा फिल्मी गीतकार शकील आजमी ने एक से बढ़कर एक कई गजलें सुनाकर श्रोताओं को बांधे रखा। आलोक सेठी की नई पुस्तक ‘जिंदगी और शायरीÓ के विमोचन के मौके पर आयोजित इस कार्यक्रम में उन्होंने हर शेर पर खूब दाद पाई।
कभी नोट पर हमने रबर नहीं बांधा : आजमी
शकील आजमी ने कहा कि मैं वो मौसम जो ठीक से छाया भी नहीं, साजिशें होने लगी बदलने के लिए, रहते थे मर्दों की मर्दों की तरह, मसखरे बन गए दरबार में रहने के लिए।
खुदा पे छोड़ा, दुआओं से घर नहीं बांधा, सफर पर निकले तो रख्ते सफर नहीं बांधा, कमाया जैसे, उसी शान से उड़ाया भी, कभी-भी नोट पर हमने रबर नहीं बांधा।
फिल्म इंडस्ट्री पर नज्म पढ़ी- ये फिल्मी दुनिया, है ऐसी दुनिया, जहां हमेशा से एक्टरों की रही हुक्मरानी, बगैर इनके न कुछ मंजर, न कुछ कहानी। सड़क से बाजार और हर घर तक जानिब ये दिख रहे हैं, यही करोड़ों में बिक रहे हैं। हजारों फनकार जो अपने फन से इनकी फिल्में सजा रहे हैं, कहीं वो गायब हैं, कहीं लापता है, न जाने किसकी वो बद्दुआ है।
ऊं चाई पाने के लिए धरती में गडऩा होता है
ऊंचाई नहीं होती पतंग की, ऊंचाई होती है पेड़ की, जितना बड़ा होता है, उतना ही धरती में गड़ा होता है। पतंग की ऊंचाई टिकी होती है डोर पे, जो टिकी होती है किसी ओर पे, अब तुम्ही सोच लो तुम पतंग की ऊंचाई पाना चाहते हो या पेड़ की, क्योंकि पेड़ की ऊंचाई पाने के लिए धरना में गडऩा होता है और पतंग की ऊंचाई पाने के लिए किसी के हाथ में डोर देना आपकी मजबूरी होता है। उन्होंने पढ़ा- सूर्य तुम बड़े महान हो, तुम्हारी महानता को मैं मानता हूं, तुम्हारी ताकत को मैं स्वीकारता हूं, क्योंकि तुम सूखा देते हो नदियां, नाले, पोखर, झरने, तालाब, पर मुझे तुम्हारी कमजोरी पर बड़ा तरस आता है, जब तुम नहीं सूखा पाते, किसी मजदूर के पसीने की बूंदें।
…और इन पंक्तियों के साथ समापन
आज एक बार कहें, आखिरी कहें, क्या पता तुम न रहो, क्या पता हम न रहें, मंदिर-ओ-मस्जिद की या किसी इमारत की, माटी तो लगी उसमें भाई मेरे भारत की, लहू था हिंदू का, अल्लाह शर्मिंदा रहा, मरा मुसलमां तो राम कब जिंदा रहा, बिखरे-बिखरे हैं सभी, आओ एक घर में रहें, क्या पता तुम न रहो, क्या पता हम न रहे। सितारों को आंखों में महफूज रखो, बड़ी दूर तक रात ही रात होगी, मुसाफिर हो तुम भी, मुसाफिर हैं हम भी, किसी मोड़ पर फिर मुलाकात होगी।