…वहीं वसुदेव कुटुंबकम के पोषक है
व्याख्यानमाला को संबोधित करते हुए जोशी ने कहा जिनके चरित्र में उदारता है वे ही वसुदेव कुटुंबकम के पोषक हो सकते हैं। संस्कृति का हमारे देश के विचार में मुख्य न होना ही इस देश में अशंतता का कारण है। संस्कृति की साधना करना चाहिए। भारत में भाव प्रसाद के समान है। नि:स्वार्थ दान करना भी संस्कृति है। संस्कृति के मर्म को समझना जरूरी है। इस समय नमस्कार करना और बड़ों के पैर छूट की संस्कृति की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। जबकि चरण स्पर्श करना याने अपना अंहकार अपने वरिष्ठ के चरण में रख देना है। निस्वार्थ, निश्छल भाव से जो राष्ट्र से जुड़ा है। वहीं राष्ट्रवाद सिखा सकता है।
शिक्षा और संस्कृति अलग नहीं
उन्होंने कहा प्रकृति, विकृति और संस्कृति का अध्ययन करेंगे तो हम अपने मूल की ओर लौटने लगेंगे। संस्कृति की अवराधणा को विस्तृत रूप में समझने और समझाने की जरूरत है। वहीं शिक्षा और संस्कृति अलग नहीं है। कार्यक्रम के अंत में समागार में मौजूद लोगों ने सवाल किए। जिनके जवाब वक्ता द्वारा दिए गए। इस दौरान व्यापारी भूपेंद्र खंडपुरे, पूर्व मंत्री अर्चना चिटनीस, प्रवीण पाराशर, मोहिनी तिरोले, डॉ. दीपेश उपाध्याय आदि मौजूद थे।