Precedent - शिक्षक ने अध्यापन के साथ बीस वर्ष में एक लाख पौधों का कर डाला रोपण
प्रयास: लोगों के लिए पेश की मिसाल

खंडवा. पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिए अधिकाधिक पेड़, पौधे लगाना आवश्यक है। अंधाधुंध हो रही पेड़ों की कटाई का ही नतीजा है कि वर्षा कम हो रही है, तो वहीं विश्व ग्लोबल वार्मिंग के दौर से गुजर रहा है, लेकिन पुनासा क्षेत्र को हरा-भरा बनाने और वायु प्रदूषण को कम करने शिक्षक गिरीश शुक्ला पिछले 20 वर्षों से पर्यावरण संरक्षण का कार्य कर रहे हैं। वनों की कटाई व नए पौधे लगाने में घट रही लोगों की दिलचस्पी से उत्पन्न पर्यावरण प्रदूषण के कारण मानव जीवन पर पडऩे वाले प्रतिकूल असर से लोगों को अवगत कराते हुए उनसे पौधरोपण करने आह्वान करते हैं। पौधरोपण के प्रति लोगों की अभिरुचि बढ़ाने के साथ ही स्वयं पौधरोपण अभियान को परवान चढ़ाकर क्षेत्र को हरा-भरा बनाने जुटे हुए हैं।
लोगों को करते हैं प्रेरित
शुक्ला ने लोगों को पौधरोपण के प्रति प्रेरित करने के साथ ही जन सहयोग से क्षेत्र में अभी तक एक लाख से अधिक पौधों का रोपण करवा चुके हैं। दामखेड़ा खुर्द के आदिवासी युवक श्याम बामनिया व धर्मेंद्र हिरवाल का कहना है कि शिक्षक गिरीश शुक्ला के मार्गदर्शन में हमने धारा जी के जंगल में फलदार व छायादार पेड़ों के पांच सौ पौधों का रोपण किया है। इसमें सीताफल, पलाश, अमलतास के पौधे लगाए हैं। शिक्षक शुक्ला ने स्वयं के सरकारी निवास पर खाली जगह में जंगल से बीज बीनकर नर्सरी में पौधे विकसित करके नि:शुल्क लोगों को पौधरोपण के लिए देते हैं।
कैडेट्स को भी करते हैं अवेयर
एनसीसी एनओ गिरीश शुक्ला कैडेट को भी पेड़-पौधों का महत्व बताने के लिए वन ले जाते हैं और समय-समय पर छात्रों से पौधरोपण भी कराते हैं, ताकि छात्र पेड़-पौधों का महत्व भलीभांति समझ सकें। शिक्षा के साथ इस तरह का कार्य दूसरों को पौधरोपण के क्षेत्र में आगे आने प्रेरणादायी है।
ऐसे पौधों का चयन, जिसे जानवर न पहुंचाएं नुकसान
नर्सरी से अभी तक बरगद, पीपल, देसी आम, जामुन, नीबू, पलाश, सीताफल, अमलतास के पौधों का वितरण कर चुके हैं। सीताफल, अमलतास, पलाश के पौधों का रोपण करने के पीछे शुक्ला का मानना है कि यह पौधे जानवर नहीं खाते हैं, जिससे इन पौधों की देखभाल करना आसान होता है। साथ ही सीताफल के पौधों को विकसित होने के बाद कई युवाओं को रोजगार मिल सकता है। सीताफल बेचकर अपनी अमदनी को बढ़ा सकते हैं।
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