बेड तकनीक से खेती
बेड तकनीक से तरबूज की खेती करने से खरपतवार निकालने का खर्च बच जाता है। तरबूज की बोवनी के लिए सबसे पहले खेत में ट्रैक्टर की मदद से बेड बनाए जाते हैं और इसके बाद इसमें मल्चिंग बिछाई जाती है। और फिर बोवनी की जाती है।
ड्रिप सिंचाई पद्धति लाभकारी
तरबूज की खेती के लिए ड्रिप सिंचाई अधिक उपयोगी है। सिंचाई के समय ही ड्रिप में दवाई और खाद को मिलाकर फसल में डाला जाता है। इसका बीज 28 हजार रुपए प्रति किलो के भाव से आता है। एक एकड़ में 400 ग्राम बीज लगाया जाता है। पिन्टू ने बताया कि उन्होंने पिछले वर्ष 3 एकड़ में तरबूज लगाया था, जिससे प्रति एकड़ 20 टन तक उत्पादन लिया था।
110 दिन में तैयार हो जाती है फसल
तरबूज की फसल 110 से 120 दिन मैं तैयार हो जाती है तथा इसे खरीदने के लिए व्यापारी स्वयं खेत तक पहुंच जाते हैं और और घर बैठे किसानों को 700 से 800 रुपए प्रति क्विंटल के दाम देकर स्वयं ले जाते हैं। प्रति एकड़ एक से सवा लाख रुपए की लागत आती है। तरबूज की फसल वर्ष में 3 बार आराम से ली जा सकती है। कालमुखी क्षेत्र में अब कई किसान तरबूज की खेती की ओर अग्रसर हुए हैं।
पारंपरिक के साथ आधुनिक खेती की ओर रुझान
कालमुखी क्षेत्र में खरीफ की फसल में मुख्य रूप से कपास, सोयाबीन की खेती की जाती है तथा रबी सीजन में गेहूं चना की पारंपरिक खेती की जाती है। क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों तक मिर्ची फसल की बहुतायत मात्रा में किसान करते थे, लेकिन मिर्ची की फसल पर वायरस रोग आने के बाद किसानों ने मिर्ची की खेती करना कम कर दिया है। अब कालमुखी क्षेत्र में किसानों ने तरबूज की खेती को अपनाया है। कुछ वर्षों से यहां कई किसानों ने तरबूज लगाकर अच्छा उत्पादन लिया एवं उससे लाभ भी कमाया है। इस वर्ष भी कालमुखी में पिंटू गुर्जर के अलावा फूलचंद पिता रामचंद्र गुर्जर, श्रीराम पिता मारुति सुकिल, राधेश्याम पिता रामलाल सेंधव सहित अन्य कई किसानों ने तरबूज की खेती करने के लिए तैयारी शुरू कर दी है। पिंटू गुर्जर ने जुलाई माह में अपने खेत में तरबूज लगा दिया था, जो पक कर तैयार हो गया है और उन्होंने उसे 840 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से बेच दिया है।