कैंपस में पीपल, बरगद, नींब, करंज, पारस पीपल, साइकस, फाइकस, सप्तपर्णी, अशोक, गुलमोहर, कचनार, आम, जामुन, शीशम, नीलगिरी सहित 25 से भी अधिक प्रजातियों के पेड़-पौधे लगे हैं। 30 साल पहले मरुस्थल जैसा क्षेत्र, अब पानी की नहीं कमी
सिहाड़ा रोड पर स्थित कॉलेज कैंपस 30 साल पहले मरुस्थल जैसा क्षेत्र था। धीरे-धीरे यहां पौधरोपण कर उन्हें संभाला गया। प्राचार्य अपूर्व साकल्ले कहते हैं कि करीब 8 साल पहले यहां रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया गया, जिससे बिल्डिंग के एक पूरे हिस्से का पानी कुएं में उतारते हैं, जबकि दूसरे हिस्से का पानी ट्यूबवेल के पास उतारते हैं। इससे सालभर यहां पानी की कोई समस्या नहीं रहती है। अभी दो दिन की बारिश में ही कुएं का जलस्तर बढ़ गया है। वरिष्ठ प्राध्यापक बीडी सनखेरे कहते हैं कि प्राचार्य के निर्देशन में स्टाफ और छात्र-छात्राएं भी पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी को बखूबी निभाते चल रहे हैं।
1960 में हुई कॉलेज की स्थापना
45 एकड़ जमीन है कैंपस की करीब
04 एकड़ करीब में हुआ है निर्माण
25 से ज्यादा प्रकार के पेड़-पौधे हैं यहां
500 पौधे हर साल लगाए जाते हैं कैंपस में
08 साल पहले रैन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम भी अपनाया
– 7 ब्रांच है कॉलेज में, 1300 छात्र-छात्राओं की क्षमता।
– 80 फीसदी से ज्यादा पौधे यहां पौधरोपण के बाद रहते हैं जीवित।
– 500 पौधे बीते महीनों में ही कैंपस में स्थित ताप्ती छात्रावास में लगाए।