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विश्व हेरिटेज दिवस : धरोहरों से हमारी पहचान, पर चुनाव में भी इन पर नहीं नजर

locationखंडवाPublished: Apr 18, 2019 07:47:19 pm

प्राचीन खांडव वन खंडवा में नहीं ध्यान, संरक्षण और नवीनीकरण पर नेता एक शब्द भी नहीं बोल रहे हैं, वादे और बातें दोनों चुनाव के इस समर से गायब

world Heritage Day : Khandwa heritage and Khandwa election Issue

world Heritage Day : Khandwa heritage and Khandwa election Issue

खंडवा. दुनियाभर में प्रसिद्ध खंडवा की धरोहरों के संरक्षण का मुद्दा चुनाव से गायब है। नेताओं के भाषण अब तक केवल उद्योग, पानी, सडक़ पर रहे हैं या फिर एक-दूजे पर आरोप लगाने की होड़ रही है, लेकिन जिन धरोहरों से हमारी पहचान है, जो अब खंडहर हो रही हैं, उनके संरक्षण, नवीनीकरण पर नेता एक शब्द भी नहीं बोल रहे हैं। वादे और बातें दोनों चुनाव के इस समर से गायब है। यही कारण है कि खंडवा विश्व पर्यटन के चित्र पर स्थापित नहीं हो सकें हैं। धरोहरों का जीर्णोद्धार तो दूर यहां पहुंचने के लिए रास्ते तक आसान नहीं हैं। खंडवा में कुंड, तालाब, नक्काशीदार स्तंभ सब बिसरा दिए गए हैं तो वहीं ओंकारेश्वर, डूब प्रभावित हरसूद में कई धरोहरें अब खत्म-सी हो गईं हैं। इन सब परेशानियों के बाद भी पर्यटन विकास कभी चुनाव में अहम मुद्दा नहीं रहा। विश्व हेरिटेज दिवस पर पत्रिका की खास खबर…।
खंडवा की यह अनमोल धरोहरें…
1. न कुंड सहेज पाए और न तलाई
धरोहर: चार कुंड और चार तलाई
प्राचीन काल में खांडववन के नाम से प्रचलित शहर के चारों दिशाओं में चार कुंड एेतिहासिक धरोहर के रूप में विराजमान है। पूर्व में सूरजकुंड, पश्चिम में पदमकुंड, उत्तर में रामेश्वर कुंड और दक्षिण में भीमकुंड स्थापित है। यहां पर भोले बाबा विराजित हैं। एेसे ही दूध तलाई, सिंघाड़ तलाई, गणेश तलाई और शकर तलाई भी शहर की पहचान रही लेकिन समय के साथ इन्हें भूल गए।
दुर्दशा: भीमकुंड पर जाने के लिए रास्ता बड़ा कठिन है। शहर के मध्य में स्थित रामेश्वर कुंड, सूरजकुंड, पदमकुंड दुर्दशा का शिकार है। तलाइयों में भी अभी शकर तालाब को छोड़ किसी पर ध्यान नहीं है।
2. 300 मूर्तियां कबाड़ में यहां
धरोहर: गुप्त काल से 15वीं शताब्दी तक की
– शहर के पर्यटन स्थल नागचून के संग्रहालय में गुप्त काल से १५वीं शताब्दी तक की मूर्तियां कबाड़ में धूल खा रहीं हैं। नागचून के तीन कमरों में ये प्रतिमाएं 18 साल से रखी हुईं हैं। कमरे कम पडऩे से कईं तो बाहर पड़ी हुईं हैं। बता दें कि 1988 में शुरू हुए संग्रहालय में शहर सहित ग्रामीण क्षेत्र की मूर्तियों को संग्रहित किया गया था। यहां ताला ही नहीं खुलता, कई लोगों को तो पता भी नहीं है।
दुर्दशा: जिला प्रशासन का उदासीन रवैया भारी पड़ रहा है। बड़ी बातों और दावों के बीच शहर के पिकनिक स्पॉट पर ही इस संग्रहालय पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। मूर्तियां अपना मूल रूप खोती जा रही हैं।
3. स्वतंत्रता संग्राम की निशानी को भूले
धरोहर: स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के प्रारंभ का स्तंभ
– 1 अप्रैल 1930 को गांधी चौक से स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन का प्रारंभ, एेतिहासिक मिट्टी संग्रह समारोह संपन्न दिनांक 7 अगस्त 1987 व भारतीय स्वतंत्रता एवं जवाहर लाल नेहरू शताब्दी के अवसर से जुड़ा स्तंभ शहर के घंटाघर क्षेत्र में है। स्वतंत्रता संग्राम की इस निशानी का अपने-आप में बड़ा महत्व है। बावजूद इस तरफ गंभीरता से कोई ध्यान नहीं दे रहा है।
दुर्दशा: शहर के घंटाघर क्षेत्र में ही स्तंभ होने के बावजूद इस पर किसी का ध्यान नहीं है। ये स्तंभ यहां चाट-कचोरी के ठेलों के बीच छिप गया है। 15 अगस्त-26 जनवरी पर भी ये अनदेखी का शिकार ही रहते हैं।
वर्जन
प्रदेश में 15 साल हमारी सरकार रही। खंडवा में पर्यटन को बढ़ावा देने का काम किया। धरोहरों को सहेजने की बात है तो हम इन पर ध्यान देंगे। चाहे कुंड हो, तलाई हो या फिर अन्य सभी को संवारा जाएगा।
हरीश कोटवाले, जिलाध्यक्ष, भाजपा
धरोहरों की सबसे ज्यादा अनदेखी भाजपा के राज में ही रही है। चुनावों में बकायदा पर्यटन व एेतिहासिक धरोहरों का संरक्षण हमारा मुद्दा रहे हैं। प्रदेश में हमारी सरकार है, इस पर पूरा फोकस करेंगे।
ओंकार पटेल, जिलाध्यक्ष, कांग्रेस
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