शुक्रवार आधी रात को भोपाल से लौटी प्रतिनिधि मंडल में शामिल माधूरी बेन ने शनिवार को मीडिया से चर्चा करते हुए बताया कि भोपाल में प्रमुख सचिव से मिले। उनका कहना है दो जेआरएस जिनका काम पैंडिंग, उन्हें शुरू नहीं करेंगे। दो टूक जवाब पर प्रतिनिधि मंडल ने कहा- पैमेंट पैंडिंग है। इस पर वे बहानेबाजी करने लगे। कुछ और रास्ता निकालने की बात कही। लेकिन उनका जवाब ठोस नहीं था। उनसे पूछा गया कि परियोजना में १२९ प्रकरण का पैमेंट कब करोंगे। इस पर उन्होंने मोटी रकम का हवाला देते हुए पैमेंट करने से मना कर दिया। अफसरों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश याद दिलाए। उन्हें यह भी मालूम नहीं था कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आर्र्डर में बोला था कि मप्र की 2002 व 2008 की नीति में जो बेहतर हैं उसे लागू करें। उन्हें नियम कानून समझाए। लेकिन उन्होंने कोर्ट के आदेशों को मानने से साफ इंकार कर दिया। माधूरी बेन ने बताया यह कोर्ट के आदेशों की अवहेलना है। राज्य सरकार व जिला प्रशासन पर कोर्ट अवमानना का केस लगाएंगे।
छावनी में तब्दील रहा कलेक्टोरेट गेट
प्रभावितों के धरना स्थल पर शनिवार सुबह से ही गहमा गहमी का माहौल रहा। जितने प्रभावित थे उससे ज्यादा पुलिस जवानों को तैनात किया गया। कलेक्टोरेट गेट पर डंडे व बचाव संसाधनों के साथ पुलिस जवान तैनात थे। माहौल पुलिस छावनी जैसा था। आलम यह था कि महिला-पुरुष प्रभावित यदि शौचालय के लिए भी जा रहे थे तो उनके पीछे जवानों की लंबी फौज लेफ्ट-राइट करती दिखी।
प्रभावितों के धरना स्थल पर शनिवार सुबह से ही गहमा गहमी का माहौल रहा। जितने प्रभावित थे उससे ज्यादा पुलिस जवानों को तैनात किया गया। कलेक्टोरेट गेट पर डंडे व बचाव संसाधनों के साथ पुलिस जवान तैनात थे। माहौल पुलिस छावनी जैसा था। आलम यह था कि महिला-पुरुष प्रभावित यदि शौचालय के लिए भी जा रहे थे तो उनके पीछे जवानों की लंबी फौज लेफ्ट-राइट करती दिखी।
कैबिनेट के चाय नाश्ते के रुपए, गरीबों के लिए नहीं
अफसरों के बेरुखे व्यवहार पर माधूरी बेन ने कहा- पूरे प्रकरण में लगभग 20 करोड़ का खर्च होगा। लेकिन सरकार के पास आदिवासियों को पुन: बसाने के लिए यह राशि भी नहीं है। जबकि कैबिनेट के चाय-नाश्ते व एक दिन का जश्न मनाने के लिए सरकार के पास करोड़ों रुपए हैं। तीखे स्वर में माधूरी बेन ने यह भी कहा कि- बांध के चक्कर में आदिवासी परिवार बिखर गए हैं। कोई महाराष्ट्र तो कोई गुजरात में है। इन परिवारों को भूखमरी से बचाने के लिए सरकार के पास रुपए नहीं है। हमारा सवाल है कि आदिवासियों की सरकार कहा हैं आप किसकी सरकार हो। हमारी सरकार कहां है।
अफसरों के बेरुखे व्यवहार पर माधूरी बेन ने कहा- पूरे प्रकरण में लगभग 20 करोड़ का खर्च होगा। लेकिन सरकार के पास आदिवासियों को पुन: बसाने के लिए यह राशि भी नहीं है। जबकि कैबिनेट के चाय-नाश्ते व एक दिन का जश्न मनाने के लिए सरकार के पास करोड़ों रुपए हैं। तीखे स्वर में माधूरी बेन ने यह भी कहा कि- बांध के चक्कर में आदिवासी परिवार बिखर गए हैं। कोई महाराष्ट्र तो कोई गुजरात में है। इन परिवारों को भूखमरी से बचाने के लिए सरकार के पास रुपए नहीं है। हमारा सवाल है कि आदिवासियों की सरकार कहा हैं आप किसकी सरकार हो। हमारी सरकार कहां है।
2017 में होना था पुनर्वास, 2018 में कह रहे हैं पैमेंट नहीं है
माधूरी बेन ने बताया खारक बांध प्रभावितों का पुनर्वास 2017 में हो जाना था। इसके लिए जीआरएस का गठन जनवरी में ही होना था, लेकिन अप्रैल में किया। जब काम पूरा होना था तब गठन किया गया। मई, जून में जीआरएस ने काम शुरू किया। 233 परिवारों के लिए तीन जीआरएस बैठे। लेकिन 129 परिवारों का नाम ही शामिल कर प्रकरण में आर्डर पास किए। 97 प्रकरण शेष रह गए और जीआरएस को भंग कर दिया गया। 129 परिवारों के आर्डर पास हुए चार माह बीत गए हैं लेकिन एक रुपया भी उन्हें क्लेम नहीं हुआ है। साथी बार-बार आकर पूछ रहे हैं कब तक पैंमेंट दोगे लेकिन देखेंगे का जवाब मिला। अंत: में यह धरना शुरूकिया।
माधूरी बेन ने बताया खारक बांध प्रभावितों का पुनर्वास 2017 में हो जाना था। इसके लिए जीआरएस का गठन जनवरी में ही होना था, लेकिन अप्रैल में किया। जब काम पूरा होना था तब गठन किया गया। मई, जून में जीआरएस ने काम शुरू किया। 233 परिवारों के लिए तीन जीआरएस बैठे। लेकिन 129 परिवारों का नाम ही शामिल कर प्रकरण में आर्डर पास किए। 97 प्रकरण शेष रह गए और जीआरएस को भंग कर दिया गया। 129 परिवारों के आर्डर पास हुए चार माह बीत गए हैं लेकिन एक रुपया भी उन्हें क्लेम नहीं हुआ है। साथी बार-बार आकर पूछ रहे हैं कब तक पैंमेंट दोगे लेकिन देखेंगे का जवाब मिला। अंत: में यह धरना शुरूकिया।
आदिवासियों के आंसू का पानी मिल रहा खरगोन को
माधूरी बैन ने कहा- इस बांध से क्या विकास हुआ है। छह आदिवासी गांवों को पानी देने की बात कही थी। लेकिन पानी नहीं गया। केनाल सिस्टम बना ही नहीं। इस बांध का पानी जो खरगोन को मिल रहा है वह आदिवासियों के आंसूओं का पानी है। इनके आंसूओं का पानी ही आपको पिलाया जा रहा है। माधूरी बेन ने कहा- आदिवासी केवल अपना हक मांग रहे हैं। हम यह भी नहीं कह रहे हैं कि गरीबी से उठाओ। हम तो सिर्फ यह मांग कर रहे हैं कि यह परिवार बांध बांधने से पहले जिस स्थिति में थे, उस स्थिति में इन्हें कर दो।
जिन्हें दिया आश्वासन वहां भी नहीं दिया पानी
माधूरी बेन ने बताया खारक बांध से सिंचाई के लिए जिन गांवों को पानी देने का आश्वासन दिया वहां पानी नहीं जा रहा। सूखपुरी गांव में पानी जाता है, लेकिन वहां भी जरूरत पर नहीं देते। बांध क्यों बनाए जा रहे हैं इसका ऑडिट होना चाहिए। कितना विकास हुआ है। यह जानने का हक जनता को है। भोपाल से निराश लौटे प्रभावितों ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। धरना जारी रहेगा यह इशारा जरूर किया है। सूत्रों के मुताबिक भोपाल गए प्रतिनिधि मंडल को अफसरों ने कुछ ऑफर भी दिया है लेकिन यह क्या है इसे लेकर माधूरी बेन व प्रतिनिधि मंडल के किसी सदस्य ने खुलकर बात नहीं की। धरना आगे कैसे चलेगा इस पर रुपरेखा बनाने की बात कही है।
माधूरी बैन ने कहा- इस बांध से क्या विकास हुआ है। छह आदिवासी गांवों को पानी देने की बात कही थी। लेकिन पानी नहीं गया। केनाल सिस्टम बना ही नहीं। इस बांध का पानी जो खरगोन को मिल रहा है वह आदिवासियों के आंसूओं का पानी है। इनके आंसूओं का पानी ही आपको पिलाया जा रहा है। माधूरी बेन ने कहा- आदिवासी केवल अपना हक मांग रहे हैं। हम यह भी नहीं कह रहे हैं कि गरीबी से उठाओ। हम तो सिर्फ यह मांग कर रहे हैं कि यह परिवार बांध बांधने से पहले जिस स्थिति में थे, उस स्थिति में इन्हें कर दो।
जिन्हें दिया आश्वासन वहां भी नहीं दिया पानी
माधूरी बेन ने बताया खारक बांध से सिंचाई के लिए जिन गांवों को पानी देने का आश्वासन दिया वहां पानी नहीं जा रहा। सूखपुरी गांव में पानी जाता है, लेकिन वहां भी जरूरत पर नहीं देते। बांध क्यों बनाए जा रहे हैं इसका ऑडिट होना चाहिए। कितना विकास हुआ है। यह जानने का हक जनता को है। भोपाल से निराश लौटे प्रभावितों ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। धरना जारी रहेगा यह इशारा जरूर किया है। सूत्रों के मुताबिक भोपाल गए प्रतिनिधि मंडल को अफसरों ने कुछ ऑफर भी दिया है लेकिन यह क्या है इसे लेकर माधूरी बेन व प्रतिनिधि मंडल के किसी सदस्य ने खुलकर बात नहीं की। धरना आगे कैसे चलेगा इस पर रुपरेखा बनाने की बात कही है।