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पुराने ढर्रे पर जिला अस्पताल: बिजली गुल, टार्च की रोशनी में बैठे मरीज, एक पलंग पर तीन का उपचार

locationखरगोनPublished: Nov 28, 2019 01:28:14 am

Submitted by:

Jay Sharma

मरीजों के साथ घंटों बैठे रहते हैं परिजन, प्रबंधन शुरू नहीं कर पाया टोकन सिस्टम

Rejuvenation scheme in khargone

Rejuvenation scheme in khargone

खरगोन. जिला अस्पताल में कायाकल्प योजना के तहत स्वास्थ्य सुविधाओं को परखने के लिए दो दिन पहले देवास से आए डॉक्टरों ने निरीक्षण किया था। इस दौरान वार्डों में साफ-सफाई सहित अन्य सुविधाएं बेहतर मिली, लेकिन जैसे ही टीम लौटकर गई, वैसे ही अस्पताल की व्यवस्था फिर पुराने ढर्रे पर आ गईं। अस्पताल में साफ-सफाई सहित वार्डों के अंदर फैली अव्यवस्था खुलकर सामने आ रही हैं।
बुधवार को पत्रिका टीम ने अस्पताल के कुछ वार्डों का जायजा लिया। यहां मरीजों के साथ बड़ी संख्या में परिजनों की भीड़ थी। ऐसा लग रहा था मानों अस्पताल नहीं कोई लॉज हो। अस्पताल में बेरोकटोक मरीजों के साथ चार से पांच परिजन भी वार्डों में बैठे रहते हैं। एमसीएच की नई बिल्डिंग में बने मेटरनिटी वार्ड में केवल महिलाएं होना चाहिए, वहां भी पुरुष वर्ग प्रवेश कर जाते हैं। इन्हें रोकने-टोकने वाला कोई नहीं। प्राइवेट सुरक्षा गार्ड भी तैनात है, किंतु इनकी कोई नहीं सुनता। सर्जिकल और शिशु वार्ड में भी ऐसी अव्यवस्था दिखाई दी।
भीड़ ऐसी कि मरीज को ढूंढ पाना मुश्किल
सड़क हादसों में घायल अथवा सर्जरी के मरीज को ट्रामा सेंटर में रखा जाता है। यहां मरीजों का दबाव सबसे ज्यादा है। इसलिए वार्ड में रखें सभी पलंग मरीजों से भरे रहते हैं। बेड नहीं मिलने पर कई बार फर्श पर गद्दे डालकर मरीजों को लेटा दिया जाता है। यहां भर्ती मरीज से मिलने के लिए भी परिजनों को ढूंढना पड़ता है।
बिजली गुल, मोबाइल की रोशनी में देखरेख
बुधवार दोपहर 1 बजे से लेकर 2.30 बजे तक लाइट बंद रही। इसके चलते एमसीएच सेंटर में अंधेरा छा गया। यहां मोबाइल की रोशनी में परिजन जच्चा व बच्चा के पास बैठे रहे। देर तक महिलाएं परेशान होती रहीं। परिजनों ने बताया कि लाइट जाने पर जनरेटर की व्यवस्था होना चाहिए।
एक पलंग पर तीन बच्चों का इलाज
पहली मंजिल पर शिशु वार्ड में कुल 25 पलंग लगे हुए हैं, लेकिन यहां एक पलंग पर दो से तीन बच्चों को भर्ती कर इलाज किया जा रहा है। बुधवार को वार्ड में 50 बच्चें भर्ती थे। जिन्हें सर्दी, खांसी और बुखार सहित अन्य बीमारियों के चलते लाए थे। छोटे-छोटे बच्चों को गोद में लेकर उनकी मां बैठी हुई थी। दिन तो जैसे-तैसे कट जाता है, रात में परेशानी होती है।
500 से अधिक ओपीडी, 12 वार्ड
अस्पताल में यूं तो प्रतिदिन मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं, लेकिन अभी मौसम के उतार-चढ़ाव के कारण मरीजों का दबाव अधिक देखा जा रहा है। प्रतिदिन ओपीडी में 500 से 600 मरीज पहुंच रहे हैं। वहीं 10 से 12 वार्ड बने हैं। यहां भर्ती मरीजों को असुविधा न हो, इसलिए एक मरीज के साथ एक ही अटेंडर होना चाहिए। टोकन की व्यवस्था भी प्रबंधन लागू नहीं कर पाया।
अस्पताल में मरीजों की सुविधा के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। एक मरीज के साथ ही एक अटेंडर होना चाहिए। 7 दिसंबर को होने वाली रोगी कल्याण समिति की बैठक में टोकन सिस्टम लागू करने का बिंदु रखेंगे।
डॉ. राजेंद्र जोशी, सिविल सर्जन
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