खरगोन

मप्र का यह मंदिर पांडवों ने छह माह की रात में बनाया, यहां का जलता दीपक देख मांडव की रानी रुपमति करती थी भोजन

शिवरात्रि विशेष….छह माह की रात्रि में पांडवों ने बनाया चोली का गौरी सोमनाथ मंदिर, नंदी रह गया था अधूरा, आज भी यहां है उसकी शीला-महाशिवरात्रि को लेकर आज होगा विशेष अभिषेक, यहां विराजित है सात फीट ऊंची शिवलिंग, दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु

खरगोनMar 10, 2021 / 07:41 pm

Gopal Joshi

खरगोन. मंदिर में स्थापित शिवलिंग।

खरगोन.
जिला मुख्यालय से ४५ किमी दूर नर्मदा के उत्तर तट पर बसा गांव चोली। सामान्य तौर पर चोली धार्मिक दृष्टि से प्रसिद्ध गांव माना जाता है। यहां साढ़े ग्यारह हनुमान की प्रतिमाएं विराजित हैं वहीं गौरी सोमनाथ का मंदिर भी। वहीं मंदिर जिसके पीछे यह किवदंति है कि इसका निर्माण पांडवों ने छह माह की रात्रि में किया। पांडव नंदी का निर्माण नहीं कर पाए। लिहाजा उसकी शीला आज भी वहां रखी है। शिवरात्रि पर यहां भक्तों का तांता लगता है। गुरुवार को भी यहां विशेष अभिषेक होगा।
मंदिर के पुजारी भगवान नाथ बताते हैं कि पांडवों ने 6 मास की रात्रि में लगभग 7 फीट ऊंचाई वाले शिवलिंग की स्थापना कर पूरा गर्भगृह बनाया, लेकिन नंदी का मूर्ति रूप नहीं बना सके। सभामंडप के ठीक नीचे जहां अक्सर नंदी स्थापित होता है, लेकिन वहां मध्य में कछुए की प्रतिमा है। वर्तमान में जो नंदी स्थापित है, वह होल्कर काल में जीर्णोद्धार के समय स्थापित किया गया था। इस मंदिर की स्थापत्य कला बहुत उत्कृष्ट है। मंडप के वितान पर कृष्ण रासलीला संबंधित प्रतिमाएं अंकित हंै। वहीं सभामंडप के ठीक नीचे जहां अक्सर नंदी स्थापित होता है, वहां मध्य में कछुए की प्रतिमा है।
नागर शैली में बना है मंदिर
नागर शैली में बने इस मंदिर के सभा मंडप में पहुंचने के लिए तीनों दिशाओं से सौपान निर्मित है। आयताकार गर्भगृह में पाषाण निर्मित जलाधारी विशाल शिवलिंग प्रतिष्ठित है। साथ ही मंदिर के एक भाग से ऊपर जाने के लिए सोपान बना है।
मांडवगढ़ की रानी रूपमति दीपक की रोशनी देख करती थी भोजन
35 वर्षों से पूजा कर रहे पुजारी भगवान नाथ ने बताया एक किवदंति अनुसार मंदिर प्रांगण के बाहर चर्तुभुज पत्थर है। इसे दीपक स्तंभ कहते हैं। इस पर दीपक जलाए जाते थे। मांडवगढ़ की रानी रूपमति दीपक की रोशनी देखकर भोजन किया करती थी। इस स्थान से साफ मौसम में मांडव का किला भी आसानी से देखा जा सकता है। इसी कारण दीपक की रोशनी होने पर रानी रूपमति भगवान गौरी सोमनाथ के दर्शनों के बाद भोजन करती थी।तालाब के किनारे बना होने से इस मंदिर की सुंदरता आलौकिक है। चोली का प्राचीन नाम चोलीकपुर था। 10वीं से 11वीं सदी में बने इस मंदिर का जीर्णोद्धार होल्कर वंश काल में किया गया।
आज तड़के चार बजे से होंगे अनुष्ठान
महाशिवरात्रि पर प्रतिवर्ष यहां सुबह 4 बजे विशेष अभिषेक किया जाता है। इसमें गांव के सभी लोग सहभागी होते हंै। इस मंदिर को मप्र के पुरातत्व अभिलेखागार एवं संग्रहायल भोपाल द्वारा राज्य संरक्षित स्मारक घोषित किया है।

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