भजन-कीर्तन में लगाया मन
गांव में ताश व जुआ नहीं खेला जाता है। यहां के लोग इस तरह के खेल को गलत मानते हैं। इसके दुष्परिणाम को देखते हुए गांव के लोगों ने ही जुए व ताश को सर्वसम्मति से बैन कर रखा है। समय काटने व मनोरंजन के लिए लोग नर्मदा किनारे बने मंदिर में भजन व कीर्तन करते हैं। गांव की सरपंच नर्मदा यादव कहती हैं कि कठोरा में यादवों की आबादी अधिक है। सब आपस में मिल-बैठकर विवाद या समस्या का निपटारा कर लेते हैं। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि महिलाओं से संबंधित मामले महिलाएं ही निपटाती हैं। इसके चलते ही करीब 100 परिवारों के 1200 की आबादी वाले कठोरा गांव को 2002 के बाद देश में दूसरी बार निर्विवाद गांव घोषित किए गया है।
गांधीजी आदर्श पर चलते हैं लोग
गांधीजी आज भी यहां के लोगों के लिए पूजनीय हैं। उनके आदर्शों पर चलते हैं। अहिंसा सबसे बड़ा हथियार है। यहां के बच्चे-बूढ़े और युवा सभी एक-दूसरे को सीताराम कहकर अभिवादन करते हैं।