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उज्जवला योजना का लाभ लेकर रिफिलिंग कराना भूले उपभोक्ता, कंपनी को १६०० करोड़ का घाटा

locationखरगोनPublished: Jul 26, 2019 11:09:51 am

Submitted by:

Gopal Joshi

बोरावा कॉल्ेज में हुई कार्यशाला, एलपीजी का इस्तेमाल करने के लिए किया विद्यार्थियों को जागरूक

Ujjwala scheme - company losses of 1600 crores

कार्यशाला के बाद परिसर में पौधरोपण किया गया।

खरगोन.
ग्रामीण अंचलों में एलपीजी से बने खाने और चुल्हे से बने खाने को लेकर अलगण् अलग भ्रांतियां हैं। इसे दूर करने की आवश्यकता है। एलपीजी सुरक्षित और सेहत के लिए अच्छा ईंधन है, जबकि लकड़ी के चुल्हे से रसोई बनाने में पर्यावरण के साथ ही शरीर को भी नुकसान होता है। लोगों में फैली भ्रांतियों को दूर करने के लिए विद्यार्थियों, पंचायतकर्मियों और सामाजिक संगठनों की मदद ली जाएगी, जो गांवों में जनजागरुकता फैलाकर एलपीजी का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करने के लिए लोगों को प्रेरित करें।
यह बात गुरुवार को बोरावां कॉलेज में हुई कार्यशाला के दौरान भारत पेट्रोलियम के स्टेट हेड सोहेल अख्तर ने छात्राओं के बीच कही। उन्होंने कहा प्रधानमंत्री उज्जवला योजना सामाजिक बदलाव वाली योजना है। इसके तहत अब तक 5 करोड़ कनेक्शन बांटे जा चुके हैं। 8 करोड़ लोगों तक कनेक्शन पहुंचाने का लक्ष्य है। उन्होंने साफ कहा योजना का मकसद लक्ष्य हासिल करना नहीं बल्कि लोगों को स्वच्छ ईंधन उपलब्ध कराना है। अख्तर ने बताया कि पूर्व में बांटे गए 5 करोड़ कनेक्शन में से करीब आधे से ज्यादा लोगों ने दोबारा रिफिलिंग नहीं कराई, इससे करीब 1600 करोड़ रुपए की राशि कंपनी की अटकी है। क्योंकि रिफलिंग से कनेक्शन की राशि की रिकवरी होती है। वहीं सरकार की शुद्ध ईंधन देने की मंशा भी पूरी नहीं हो रही। कार्यशाला को क्षेत्रीय प्रबंधक अजीतसिंह सेंगर सेल्स मैनेजर समीर सेहगल, कॉलेज प्रिंसिपल अतुल उपाध्याय, डीन डॉ. सुनील सुगंधी ने भी संबोधित किया। डिस्ट्रीब्यूटर राजेंद्र यादव ने अधिकारियों को स्मृति चिन्ह भेंटकर सम्मानित किया। इस दौरान डिस्ट्रीब्यूटर विवेक पाटीदार सहित करीब 200 से अधिक छात्राएं मौजूद थीं।
400 सिगरेट के बराबर होता है धंूआ
अख्तर ने बताया आज भी देश के 33 करोड़ परिवार ऐसे हैं जो गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं, कई परिवारों में चुल्हे पर रसोई बनाई जाती है, उन्होंने बताया एक रिसर्च के मुताबिक एक बार की लकड़ी जलाकर चुल्हे पर बनाई गई रसोई से उठने वाला धंूआ 400 सिगरेट के बराबर होता है, जो महिलाएं धुएं में रहकर खाना बनाती है वह तो बीमार होती ही है साथ ही परिवार के वह सदस्य भी बीमार होते है जो घर में मौजूद रहते हैं।
फलदार पौधों से होती आर्थिक स्थिति मजबुत
अख्तर ने बताया उन्होंने कई गांवों का दौरा किया। कई परिवार ऐसे मिले जहां गैस कनेक्शन तो है लेकिन रिफिलिंग के लिए रुपए नहीं है। वह लकड़ी का चुल्हा जला रहे है। उन्होंने बताया उनकी सोच है कि कई गांवों में घरों के पास खाली जगह होती है वहां यदि फलदार पौधे लगाए जाएं तो उन्हें आर्थिक मदद मिलेगी।
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