भारत में सात करोड़ से अधिक आबादी प्रोजेरिया और डिस्लेक्सिया जैसी दुर्लभ बीमारियों (रेयर डिजीज) से पीडि़त है। प्रोजेेरिया के बारे में फिल्म ‘पा’ और डिस्लेक्सिया पर ‘तारे जमीं पर’ फिल्म से लोगों में थोड़ी जागरुकता आई लेकिन ऐसी 6800 से अधिक रेयर डिजीज और भी हैं जिनके बारे में हम जानते भी नहीं। दुनियाभर में लगभग 35 करोड़ लोग इनसे पीडि़त हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों के जन्म के समय सचेत रहें तो कुछेक का इलाज संभव है।
अल्ट्रा रेयर डिजीज
अलग-अलग देशों में इसके अलग-अलग मानक हैं। भारत में दस हजार की आबादी में किसी एक को होने वाली बीमारी को रेयर जबकि एक लाख की आबादी में से दो लोगों को होने वाली बीमारी को अल्ट्रा रेयर डिजीज कहते हैं।
कराएं न्यूबॉर्न स्क्रीनिंग
न्यूबॉर्न स्क्रीनिंग में बच्चे के जन्म के समय ही खून की जांच होती है। अमरीका जैसे देशों में नवजात बच्चों की करीब 45 प्रकार की जांचें होती हैं। जबकि भारत में 22-25 प्रकार की जांच होने लगी हैं। जांच में ऐसी करीब 20 प्रकार की रेयर डिजीज की पहचान हो जाती है जो कुपोषण से होती हैं। इनका समय रहते इलाज केवल डाइट मैनेजमेंट से हो सकता है।
ये हैं लक्षण
दौरा या बेहोशी।
शरीर में अकडऩ या शिथिलता।
बार-बार बिना वजह उल्टी।
शरीर या पेशाब से तेज दुर्गंध।
त्वचा में बदलाव या दाने निकलना।
समय के साथ मानसिक या शारीरिक विकास न होना।
सिर का सामान्य से छोटा या बड़ा होना।
सांस ज्यादा तेज या धीमे आना।
चेहरे पर अजीब और असमय बदलाव।
मोतियाबिंद होना।
कमजोर हड्डियां ।
बचाव की संभावना
अधिकतर रेयर डिजीज से बचाव संभव नहीं है क्योंकि इनके कारणों का पता नहीं चल पाता। जेनेटिक कारणों से होने वाली 20 फीसदी रेयर डिजीज में गर्भ के समय ही बचाव संभव है पर ऐसी तकनीक अपने देश में बहुत कम है। नवजात में कुपोषण के कारण होने वाली ऐसी बीमारियों की पहचान कर इलाज की तकनीक हमारे देश में भी आ चुकी है। इसके लिए जन्म के बाद न्यूबॉर्न स्क्रीनिंग क रानी चाहिए।
बेंगलुरु से शुरू हुआ है अभियान
दुर्लभ बीमारियों से पीडि़त नौ मरीजों के अभिभावकों ने देश में रेयर डिजीज के मरीजों के लिए एक संस्था ‘रेयर डिजीज ऑफ इंडिया’ (ओआरडीआई) की स्थापना दो साल पहले बेंगलुरु में की। अब संगठन में 300 से अधिक डॉक्टर हैं जो नि:शुल्क परामर्श देते हैं। ओआरडीआई की ओर से देश में पहला हेल्प लाइन नंबर 08892555000 शुरू किया गया है। इस नंबर पर रेयर डिजीज मरीजों के परिजन संपर्क कर मदद ले सकते हैं।
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