Kishangarh : सालों बाद आज भी खड़े रियासतों के यह सुरक्षा मोर्चें
किशनगढ़ रियासत की सुरक्षा के लिए बने यह मोर्चे
स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूनें
स्टेट के किले के चारों कौनो में बने है यह मोर्चें
अनदेखी की वजह से सालों बाद होने लगे जर्जर
किशनगढ़ की धरोहरों की सुरक्षा और देखभाल की दरकार
किशनगढ़
Published: June 12, 2022 12:10:42 pm
मदनगंज-किशनगढ़.
किशनगढ़ के रियासत काल में तत्कालीन शासकों की स्थापत्य कला के रूप में यहां के मोर्चे सुरक्षा के बेजोड़ नमूने रहे और सालों बाद आज भी यह मोर्चे खड़े है। किशनगढ़ स्टेट के किले की सुरक्षा के लिए बनाए गए यह मोर्चे प्रमुख है। इन्हीं मोर्चों से किसी समय किशनगढ़ रियासत की निगरानी व सुरक्षा की जाती थी। राज्य पर आक्रमण होने पर दुश्मन सैना को इन मोर्चों से ही देखा जाता था और उसी के अनुरूप आक्रमण का पलटवार जबाव दिया जाता था। आज भी यह मोर्चे विद्यमान हैं लेकिन सालों से अनदेखी और देखभाल के अभाव में इनमें से कुछ मोर्चे जर्जर हो चुके है और कुछ जमींदो हो चुके है। इन मोर्चों को ऐतिहासिक धरोहरों के रूप में संरक्षित किया जा सकता है और यह पर्यटकों के लिए आकर्षक भी बनाया जा सकता है।
किशनगढ़ रियायत काल के स्टेट की स्थापना के दौरान ही राज्य में प्रवेशद्वार से पहले चारों तरफ किलानुमा मोर्चे बनाए गए। मोर्चों की ऊंचाई अधिक रखी गई ताकि मोर्चों पर तैनात सैनिक दूर तक सुरक्षा के लिए निगरानी रख सके। दुश्मन सेना को देखकर किले की सुरक्षा में तैनात राज्य की सेना के शीर्ष नेतृत्व को आगाह किया जाता और किले के चारों तरफ मोर्चों का निर्माण ऐसे किया गया कि राज्य की सेना दुश्मन सैनिकों पर आसानी से पलटवार हमला भी किया जा सके एवं शत्रु सेना पर गोला बारूद भी इन्हीं मोर्चोँ से भी दागे जाते थे।
यहां है किशनगढ़ के चार मोर्चें
किशनगढ़ से सरगांव रोड, गुंदोलाव झील के सामने, सातोलाव तालाब के पास और पुराना शहर पंचमुखी हनुमान मंदिर के पास पहाड़ी पर मोर्चें आज सालों बाद खड़े है। इनकी दीवारें इतनी मोटी और ऊंची बनाई गई कि इन्हें गोला बारूद के हमले से भी आसानी से भेदा नहीं जा सके।
पारियों में होती थी सैनिकों की तैनाती
मोर्चों पर हर समय सैनिक तैनात रहने की व्यवस्था बनाई गई थी और निरंतर किले की निगरानी की जाती। अलग-अलग पारियों के अनुरूप सैनिकों की ड्यूटी बदलती और रात में भी मोर्च पर सैनिक अलर्ट ही रहते। सैनिकों की पूरी एक बड़ी टुकड़ी दुश्मनों पर पैनी नजर भी इन्हें मोर्चो के माध्यम से रखती थी।
मजबूती और स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने
मोर्चो पर बंदूक चलाने के लिए छोटी-छोटी संरचनाएं (नालियों नुमा) बनाई गई। इनकी संरचना ऐसी है कि सैनिक दुश्मन पास हो या दूर उस पर हमारे सैनिक सही से निशाना साध सके। सामने से मोर्चे के अंदर तैनात सैनिक की स्थिति का आंकलन भी मुश्किल होता था। दुश्मन की फौज यहां प्रवेश नहीं कर सके। इसके लिए भौगोलिक परिस्थिति के अनुसार मोर्चे के पहले खाई भी बनाई गई। इस खाई को पानी से भर दिया जाता और पेड़ों की बड़ी टहनियों से ढ़क दिया जाता था। इन्हें ऐसे लगाया जाता था कि जरूरत पडऩे पर टहनियों को खींचा जा सके और दुश्मन सैनिकों को खाई में गिरा कर उस पर हमला किया जा सके।

Kishangarh : सालों बाद आज भी खड़े रियासतों के यह सुरक्षा मोर्चें
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