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हर अमावस्या की रात को होती थी खुदाई

locationकिशनगढ़Published: May 18, 2019 07:37:28 pm

Submitted by:

kali charan

फिर प्यास बुझा सकता है यह तालाबभोजियावास की देखभाल की जरुरत हरमाड़ा. ग्राम भोजियावास का तालाब एक बार फिर ग्रामीणों के पेयजल का अच्छा स्त्रोत साबित हो सकता है, जरुरत है तो इसकी खुदाई और नियमित देखभाल की। ग्रामीणों की मानें तो करीब 50 साल पहले यह तालाब ग्रामीणों के लिए पुख्ता जल स्त्रोत था और ग्रामीण पीने, घरेलू कामकाज और पशुधन के लिए इसके पानी का उपयोग करते थे। लेकिन लम्बे समय की अनदेखी और पानी की आवक नहीं होने से यह तालाब सूख कर मैदान सा नजर आने लगा है।

Every new moon was dug at night

हर अमावस्या की रात को होती थी खुदाई

ग्रामीण बिरदाराम चाड़, सोनाथ बलाई, श्रवणलाल नेहरा एवं चन्द्रभान हाडा ने बताया कि यह तालाब करीब 400 साल पुराना है। 81 वर्ष के बुजुर्ग रामदयाल भांभी ने बताया कि हमारे बचपन के समय यह छोटा सा तालाब था। इसका निर्माण ग्राम बसने से पूर्व क्षेत्र से गुजरने वाले बंजारा समूह ने अपने उपयोग के लिए किया था। वह यहां अपनी बालद (सामान लदे मवेशी) रोकते थे एवं उनके चारा पानी की व्यवस्था के लिए यहां छोटा सा तालाब खोद लिया। इसके बाद एक दूसरे समूूह ने इसको और गहरा करवा दिया। तब तक यहां ग्राम की बसावट भी नही हुई थी। आज से करीब 350 वर्ष पूर्व सर्वप्रथम यहां भोजाराम नेहरा ने बना हुआ तालाब एवं खुली जगह देखी एवं यहां अपनी ढाणी बसाई जिसे पहले भोजाबाबा की ढाणी कहते थे, धीरे-धीरे धीरे यहां अन्य दूसरी समाज के लोग भी यहां आकर बसने लगे। देखते ही देखते यहां गांव बस गया। इसे भोजास गांव के नाम से पुकारा जाने लगा और बाद में यही नाम भोजियावास में तब्दील हो गया।
सारे ग्रामीणों ने मिलकर खोदा तालाब
ग्राम बसने के बाद सारे ग्रामीणों ने मिलकर तालाब को गहरा करने की योजना बनाई। प्रत्येक माह की अमावस्या को हर घर से एक एक आदमी तालाब की खुदाई के लिए श्रमदान किया करता था, जिसके लिए अमावस्या की पूर्व रात्रि को सार्वजनिक चौक से आवाज लगाकर सभी को सूचित किया जाता था। काफी सालों बाद जब तालाब काफी गहरा हो गया तो इस नियम को बदलकर वार्षिक कर दिया गया जिसके तहत ग्राम के प्रत्येक घर के मुखिया साल में एक चौकड़ी खोदकर या खुदवाकर पाल पर डालनी होगी। यह नियम करीब तीस साल तक चला जिससे तालाब पर्याप्त गहरा होता गया।
स्वच्छता के नियम भी बनाए
ग्रामीणों ने बताया कि इस तालाब में पहाडी का पानी आने के कारण पानी काफी साफ होता था, इसलिए ग्रामीण पीने के लिए भी इसी का उपयोग करते थे। इसके लिए ग्रामीणों ने सर्व सम्मति से पानी के आवक मार्ग में किसी भी प्रकार की गंदगी करने पर रोक लगादी साथ ही तालाब में नहाना,कपड़े धोना, मवेशियों को नहलाना, गंदे बर्तन डुबोना तक पर पाबंदी लगाई गई थी। ग्रामीणों के अनुसार करीब पचास साल पूर्व तक लोग इसी तालाब का पानी पीया करने थे।
56 वर्ष पूर्व हुआ था चादर का निर्माण
ग्रामीणों ने बताया कि पहले तालाब भरने के बाद पानी ठहरता नहीं था, इसलिए करीब 56 वर्ष पूर्व (1963-64 में) पानी को रोकने के लिए इस पर पहली बार चादर का निर्माण करवाया गया जिसे बाद में समय समय पर बड़ा आकार दिया गया।
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