दिल के कई दौरों के बाद जब चिकित्सकों ने हार्ट फेल हो जाने की आशंका जताई तो उनके पास कोई दूसरा मेडिकल विकल्प नहीं था। वे एंजियोप्लास्टी करा चुके थे। अंत में उन्होंने लेफ्ट वेंट्रिकुलर असिस्ट डिवाइस (एलवीएडी) प्रत्यारोपण पर सहमति जताई। 9 सितंबर वर्ष 2009 को अमरीकी कंपनी का बनाया गया यह लगभग 4 सौ ग्राम वजन वाला बैटरी से संचालित कृत्रिम दिल प्रत्यारोपित किया गया। डूगर भारत के उन केवल 120 लोगों में से एक हैं जिन्हें इस तरह का कृत्रिम दिल लगाया गया है।
डूगर ने बताया, कि चिकित्सक अंतिम विकल्प हृदय प्रत्यारोपण सुझा रहे थे, जो मुश्किल और दुर्लभ था। उन्हें वर्ष 2000 में दिल का पहला दौरा पड़ा था। उन्होंने एंजियोप्लास्टी करवाई। जिसके कुछ समय तक अच्छे परिणाम रहे। फिर स्टेम सेल थेरेपी भी कराई लेकिन दिल के दौरे आते रहे। इस दौरान उनका दिन विफलता के अंतिम चरण तक जा पहुंचा। उस समय हृदय रोग विशेषज्ञ पीके हाजरा ने उन्हें कृत्रिम ह्ृदय डिवाइस का सुझाव दिया। उन्होंने इस इम्प्लांट के बारे में शोध करना शुरू किया। विदेशों में इस डिवाइस को इम्प्लांट करा चुके रोगियों से संपर्क किया। उस समय अमरीकी कंपनी का यह डिवाइस हार्टमैट टू सिर्फ अमेरिका में लॉन्च किया गया था और इसकी कीमत लगभग 1 करोड़ रुपये थी। हालांकि नए संस्करणों का उपयोग करने वाले रोगियों के लिए अब इसकी कीमत 54 लाख रुपये तक हो गई है। डूगर ने बताया कि वे अब भी इस उपकरण की बदौलत पूरी तरह से सामान्य जीवन जी रहे हैं।
प्रत्यारोपण से जुड़े डॉ हाजरा के मुताबिक शायद डूगर कृत्रिम हृदय के साथ सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाले व्यक्ति हैं। इन दस सालों में डिवाइस को गति देने वाली दो बैटरियंा ही बदली गई हैं। डिवाइस सामान्य ह्ृदय की तरह ही काम कर रहा है।
डॉ हाजरा ने बताया कि डिवाइस पानी के घरेलू पंप की तरह काम करता है। जो बाएं वेंट्रिकल से रक्त खींच कर परिधि से बाहर निकालता है। इसे डायाफ्राम के नीचे रोगी के जैविक हृदय के साथ प्रत्यारोपित किया जाता है। जो शरीर की मुख्य धमनी से जुड़ा होता है, मुख्य धमनी ही पूरे शरीर में रक्त की आपूर्ति करती है। कमर के पास लगे कंट्रोल बटन के माध्यम से पावर केबल डिवाइस को बाहरी पोर्टेबल सिस्टम से जोड़ता है। पूरी प्रक्रिया की ऊर्जा कमर के पास बांधे गए बैग में लगी बैटरी से आती है। जिसे चार्ज करना पड़ता है। डिवाइस की खामियों की बात करे तो उपयोगकर्ताओं को हर समय एक बैग रखना पड़ता है, और चूंकि डिवाइस टाइटेनियम से बना है इसलिए वह एमआरआई से गुजर नहीं सकता है।