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एक तबका एेसा भी जिनकी बेटियों की चौथी के बाद पढ़ाई बंद

locationकोलकाताPublished: Sep 23, 2018 07:56:39 pm

Submitted by:

Vanita Jharkhandi

– गुजराती मूल के कई परिवारों की व्यथा

kolkata west bengal

एक तबका एेसा भी जिनकी बेटियों की चौथी के बाद पढ़ाई बंद

कोलकाता. सुदूर गुजरात से महानगर कोलकाता आकर पुराने कपड़ों के बदले बर्तन देने वाली महिला देखी है तो आपको मालूम होना चाहिए कि उनके परिवारों की बेटियों को पांचवीं पास होने के लाले पड़ गए हैं। शिमला माठ के निकट वाराणासी बोस लेन में रहने वाले इन परिवारों की बेटियों को चौथी के बाद ही

मां के साथ रोजगार में निकलना पड़ता है। यही हाल सिंघी बागान के पास की बस्ती में रहने वाले इस तरह के गुजराती परिवारों की बेटियों का है। वहीं दूसरी ओर इन परिवारों के बेटों को स्कूल भेजा जाता है।

बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओं के नारे हर कही सुनाई देते है, सरकार की ओर से बेटियों को शिक्षा देने के लिए लाखों प्रयास किया जा रहा है पर महानगर में ऐसे कई इलाके है जहां कि लड़कियां कक्षा चौथी के बाद नहीं पढ़ती। उनके घर के पास स्कूल है, व्यवस्था है, वे लोग पढऩा भी चाहती है फिर भी स्कूल नहीं जाती। कोलकाता महानगर के विवेकानन्द रोड के निकट शिमला व्यायाम समिति माठ के पास एक बस्ती है। जहां पर बहुत सारे समुदाय के लोग रहते हैं। वहां पर गुजराती समुदाय के लोग भी है जो कि पुराने कपड़े लेकर बर्तन या फिर प्लास्टिक का सामान देते है। ऐसे में मां जब भी माथे के ऊपर बर्तन का खोमचा रखकर घूमती है तो उनके साथ ही छोटे व किशोर वय की बच्चियां भी साथ जाती है।
इलाके में चल रहे श्री विष्णु विद़्यालय के स्कूल प्रभारी ने बताया कि सकूल का स्टॉफ घर घर जा जाकर विद्यार्थियों का पंजीयन करते हैं। इसके बावजूद कई परिवार बच्चों को विद्यालय नहीं भेजते हैं। अभिभावक बेशर्मी से कहते हैं कि पढ़ कर क्या होगा। काम तो हमें घर-घर जाकर बर्तन मांझने का ही करना है, या फिर माथे पर बर्तन उठाकर रास्ते में घूमते हुए फेरी करना है।

बाराणसी बोस निवासी रूपा (बदला हुआ नाम) 14 की उम्र में पहुंच चुकी है। कक्षा चार तक पढ़ी है। उसका भाई स्कूल जाता है पर उसे घर में ही रहना पड़ता है। वह पढऩा चाहती थी, घरवाले तैयार नहीं है। इसी बस्ती में रहने वाली रचना की भी यही कहानी है। 22 साल की उम्र में पहुंच चुकी रचना कहती है उसे इस बात का हमेशा अफसोस रहता है कि वह पांचवी तक नहीं पढ़ पाई।

शिक्षा क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों के मुताबिक एेसी बच्चों के माता पिता की काउंसिलिंग जरूरी है।

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इनका कहना है….

विभाग के सारे प्रयासों के बावजूद कुछ अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजते। सर्व शिक्षा अभियान के तहत केएमसीए स्कूलों को अपग्रेड कर आठवीं तक किया गया है। कामकाजी महिलाएं बेटियों को अकेले छोडऩे से डरती हैं। इसलिए वे उन्हें अपने साथ लेकर काम पर निकलती हैं। ऐसी ही गरीब कामकाजी महिलाओं को ध्यान में रखकर डे बोर्डिंग स्कूल तैयार किया जा रहा है जहां पर लड़कियां सुरक्षित भी रह सकें और पढ़ भी सकें।
– अभिजीत मुखर्जी, एमआईसी, शिक्षा, कोलकाता नगर निगम

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