कोलकाता

ओड़िशा की राजधानी भुवनेश्वर में पधारे तेरापंथ केआचार्य महाश्रमण

कोलकाता चतुर्मास के बाद पहले पंचदिवसीय प्रवास में आयोजित है वर्धमान महोत्सव

कोलकाताJan 13, 2018 / 06:35 pm

Arvind Mohan Sharma

भुवनेश्वर (ओड़िशा) आचार्य महाश्रमण नेपाल व भूटान जैसी विदेशी धरती सहित भारत के ग्यारह राज्यों को पावन बनाने के लिए उपरान्त ओड़िशा राज्य में 23 दिनों की यात्रा कर 24वें दिन ओड़िशा की राजधानी भुवनेश्वर में अपने ज्योतिचरण रखे तो मानों महातपस्वी महासंत आचार्यश्री महाश्रमणजी के ज्योतिचरण का स्पर्श पाकर भुवनेश्वर ज्योतित हो उठा।पूर्वी की काशी के नाम से प्रसिद्धि को प्राप्त भुवनेश्वर एक प्राचीन शहर है। कहा जाता है कि कभी यहां 7000 हजार मंदिर हुआ करते थे, किन्तु अब केवल 600 मंदिर हैं। इनमें सबसे प्रमुख और प्राचीन लिंगराज मंदिर है। जिसे सोमवंशी राजा ययाति ने बनवाया था। यह वर्तमान में ओड़िशा की राजधानी है। यहां तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व प्रसिद्ध कलिंगा युद्ध था। यहां का इतिहास जैन राजा खारवेल से भी जुड़ा हुआ है।
 

आचार्यश्री जैसे ही भुवनेश्वर की सीमा पर पहुंचे तो वहां मानों श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ पड़ा
रामनगर स्थित बाबा रामदेव रूणचीवाले मंदिर से आचार्यश्री ने निर्धारित समय पर मंगल प्रस्थान किया। ठंड का भी अहसास हो रहा था, किन्तु मानवता के कल्याण के लिए समर्पित आचार्यश्री बढ़ चले। वातावरण में कोहरा व्याप्त था, किन्तु कुछ ही देर बाद उगते सूर्य के प्रभाव ने कोहरे को समाप्त कर दिया। इधर आचार्यश्री जैसे-जैसे भुवनेश्वर की ओर बढ़ रहे थे साथ चलने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती जा रही थी। भुवनेश्वरवासियों का मानों आज वर्षों से संजोया हुआ सपना साकार हो रहा था। जब उनके घर स्वयं चलकर उनके आराध्य पधारने वाले थे। आचार्यश्री जैसे ही भुवनेश्वर की सीमा पर पहुंचे तो वहां मानों श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ पड़ा। श्रद्धालु इतने उत्साहित थे कि उनकी प्रफुल्लता जयकारों में बदल रही थी जो पूरे वातावरण को गुंजायमान कर रही थी। तेरापंथी श्रद्धालुओं के साथ ही अनेक जैन व जैनेतर समाज के भी सैंकड़ों लोग ऐसे महातपस्वी महासंत के दर्शन व उनके स्वागत को खड़े। उपस्थित विशाल जनमेदिनी भव्य जुलूस के रूप में परिवर्तित हुई और अपने आराध्य का अभिनन्दन के साथ अगवानी करते हुए आगे बढ़ चली। ओड़िया पारंपरिक परिधानों से सजे युवक व युवतियां विभिन्न प्रकार के वाद्ययंत्रों की मंगल ध्वनि करते हुए चल रहे थे। ऐसे भव्य स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री यहां स्थित तेरापंथ भवन में पधारे।प्रवास स्थल से लगभग सात सौ मीटर से भी कुछ ज्यादा दूरी पर मेलान पडिया में बने वर्धमान समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री पहुंचे। वहां उपस्थित श्रद्धालुओं को सर्वप्रथम तेरापंथ धर्मसंघ की असाधारण साध्वीप्रमुखाजी ने अपने मंगल संबोध प्रदान किए।

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