हावड़ा से ऐसे शुरू हुआ सफर हावड़ा के धूलागढ़ निवासी अचिंता 10 साल की उम्र में भाई आलोक के साथ जिम में ट्रेनिंग के लिए जाते थे। साल 2012 तक अचिंता ने जिला स्तर पर पदक जीतना शुरू कर दिया था। सप्ताह में एक भी दिन विश्राम किए बिना वे लगातार अभ्यास करते थे। अचिंता शुरू के दिनों में आसान एक्सरसाइज करते थे, लेकिन बाद में वे लिफ्टिंग करने लगे। उनका जुनून और अनुशासन उनकी घर की परिस्थितियों से प्रभावित था। परिवार पालन के लिए पिता मजदूरी करते थे। वर्ष 2013 में पिता की मौत के बाद भाई आलोक को वेटलिफ्टिंग छोडऩी पड़ी। मां ने घर चलाने के लिए सिलाई आदि कार्य किया और इधर, अचिंता जुनून के साथ डटे रहे और लिफ्टिंग को बढ़ाने पर ध्यान देते रहे।
यूं चला सिलसिला दोनों भाइयों ने स्थानीय अष्टम दास सें भारोत्तोलन प्रशिक्षण शुरू किया था। इस मामले के बारे में बात करते हुए आलोक शिउली ने बताया कि हम दोनों भाई परिवार की खराब आर्थिक स्थिति के कारण पढ़ाई के साथ-साथ जरी का काम करते थे। 2011 में अष्टम दास से वेटलिफ्टिंग की ट्रेनिंग लेने के बाद मैं 2011 से अपने भाई को वहां ले गया. 2013 में हम दोनों ने राष्ट्रीय भारोत्तोलन प्रतियोगिता में एक साथ भाग लिया। इस प्रतियोगिता में चौथा स्थान हासिल करने के बाद ही अचिंता सेना के ध्यान में आया। बाद में उन्हें ऑल इंडिया ट्रायल्स में भाग लेकर वहां मौका मिला। बाद में, 2014 में, वह हरियाणा में राष्ट्रीय खेलों में तीसरे स्थान पर आया और सेना खेल संस्थान (सैन्य खेल संस्थान) में शामिल हो गया। बाद में, अचिंत्य को पटियाला में भारतीय शिविर में बुलाया गया। आलोक ने बताया कि 2015 में भारत में यूथ कॉमनवेल्थ गेम्स में सिल्वर, 2017 में यूथ वल्र्ड चैंपियनशिप में सिल्वर, 2019 में जूनियर वर्ग में गोल्ड मेडल, 2021 में वल्र्ड जूनियर कॉम्पिटिशन में सिल्वर और जूनियर और सीनियर में डबल गोल्ड मेडल मिला।
परिणाम से दूर हो गई परेशानियां राष्ट्रमंडल खेल में आज स्वर्णपदक से अचिंता की सारी परेशानियां दूर हो गई। पूरे बंगाल को अचिंता पर गर्व है। रविवार को अचिंता के परिवार के लोग टीवी पर देख रहे थे। जैसे ही भारोत्तोलन वर्ग में सोना जीता, पूरा परिवार झूम उठा।
आलोक शिउली ने कहा कि उनके भाई ओलंपिक में भाग लेना चाहते थे, लेकिन चयन ट्रायल में उनकी इच्छा केवल .02 समय की वजह से सफल नहीं हुआ। आलोक शिउली ने बताया कि वह अक्टूबर माह में होने वाले ट्रायल में अपने भाई के साथ सीनियर राष्ट्रीय प्रतियोगिता में हिस्सा लेंगे। इसके बाद से ही परिवार बेटे की सफलता की आस लगाए बैठा था। अचिंता एक महीने पहले बर्मिंघम मैदान पहुंचा और कड़ी ट्रेनिंग शुरू की।