केंद्र सरकार के सहयोग से देश की 298 संस्थाओं को विश्व बैंक से आसान शर्तों पर ऋण प्राप्त हुआ है। इनमें डीवीसी भी शामिल है। डीवीस को मिले 140 करोड रुपए से डैम रिहैबिलिटेशन एंड इंप्रूवमेंट प्रोग्राम के तहत मरम्मत व अन्य आधुनिकीकरण का काम शुरू किया गया है। आधुनिकीकरण के कारण ही अब मैथन डैम के गेट रिमोट कंट्रोल की सहायता से खोले जा सकते हैं।
डीवीसी के चीफ इंजीनियर (सिविल) सत्यव्रत बंद्योपाध्याय ने बताया कि नेशनल हाइड्रोलॉजी योजना के अंतर्गत सेटेलाइट की सहायता से तकनीक का आधुनिकीकरण हो रहा है। इससे बाढ़ नियंत्रण में सहायता मिलेगी।
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ऐसे काम करेगी प्रणाली
झारखंड व पश्चिम बंगाल में फैले डीवीसी के विस्तारित इलाके में उपग्रह आधारित आधुनिक पद्धति से नजर रखी जा सकेगी। अब तक कैचमेंट एरिया से बांध में आने वाले पानी की जानकारी जगह जगह लगे वॉटर गेज की मैनुयल रीडिंग से पता चलते थे। बांध के जलस्तर में हुई वृद्धि के आधार पर ही डीवीसी प्रशासन पानी छोडऩे की मात्रा तय करता था। पानी छोडऩे के बाद विभिन्न इलाकों में आई बाढ़ के लिए डीवीसी के ऊपर ही दोष मढ़ा जाता था। नई पद्धति शुरू होने के बाद अब पूरी व्यवस्था बदल जाएगी। हर वॉटर गेज पर लगे उपग्रह आधारित ट्रांसमीटर जलस्तर की सूचना देंगे। डेटा एक्विजिशन सिस्टम की सहायता से पूरे इलाके की जानकारी एक साथ आएगी। उसके बाद डिसीजन सपोर्ट सिस्टम की सहायता से यह तय किया जाएगा कि कितनी मात्रा में पानी छोडऩे की जरूरत है। मामला यहीं खत्म नहीं होगा पद्धति रियल टाइम में यह भी बता देगी कि पानी छोडऩे पर किस इलाके में कितना जल स्तर बढ़ेगा। सिस्टम यह जानकारी भी दे देगा किस इलाके में कितना पानी रखने की क्षमता है। पानी छोडऩे से पहले ही डीवीसी के पास पूरी तस्वीर स्परूट रहेगी। फल स्वरुप निचले इलाके के लोगों को सतर्क किया जा सकेगा। बाढ़ पर नियंत्रण होगा। उससे होने वाली परेशानियों से मुक्ति मिलेगी। प्रभावित इलाके के लोगों को पहले ही सुरक्षित स्थानों पर भेजा जा सकेगा