एक अन्य कारीगर अशोक सांतरा ने बताया कि हर साल विश्वकर्मा पूजा से पहले उसकी दो से तीन पुरानी लुंगी लेकर पुराना सामान खरीदने वाले नई लुंगी दे जाते हैं। पुराने के बदले नया वह भी बिना किसी कीमत के इसलिए विश्वकर्मा पूजा का इंतजार रहता है।
आगरा से बंगाल आकर सुनारों के मुहल्ले में पुराना सामान खरीदने वाले खुर्शीद आलम ने बताया कि वे सुनारों का पुराना सामान खरीदते हैं। धूल भी खरीदी जाती है जिसे महाजन को कमीशन पर दे देते हैं। महाजन के पास लोग हैं जो कचरे, कबाड़ और पुराने सामान में छिपे सोने के कण निकालते हैं। कीमत कैसे तय होती है यह पूछने पर उसने बताया कि वे सामान का निरीक्षण कर कीमत तय करते हैं। पुरानी चटाई की कीमत सौ रुपए से लेकर तीन सौ रुपए, गद्दे की दो सौ से लेकर हजार रुपए तक, दरी तीन सौ लेकर 1 हजार रुपए तक हो सकती है। यहां तक की सौ ग्राम धूल भी कई बार 5 सौ रुपए तक की बिकती है।