कोलकाता

लुप्त होती संस्कृति व भाषा को बचाने में जुटे निर्देशकों का वर्ग है अनहर्ड इंडिया

– फिल्मोत्सव : संथाली, बंजारा, बैरी जैसी भाषओं में बन रहीं फिल्में- अनहर्ड इंडिया वर्ग में बेहरतीन फिल्में

कोलकाताNov 11, 2019 / 05:30 pm

Renu Singh

लुप्त होती संस्कृति व भाषा को बचाने में जुटे निर्देशकों का वर्ग है अनहर्ड इंडिया

कोलकाता
लुप्त होती संस्कृति व भाषा को बचाने के लिए जुटे निर्देशकों क ी फिल्मों का वर्ग है अनहर्ड इंडिया। 25वें कोलकाता अंतरराष्ट्रीय फि ल्मोत्सव में रविवार को आंचलिक भाषाओं के फिल्म निर्देशक ों ने संवाददाताओं से बातचीत में यह कहा। अनहर्ड इंडिया के वर्ग में द रे ऑफ होप-शांतनु गांगुली, फूलमुनी-निर्देशक दशरथ हंसदा, सपनेरो गुपोरो-विक्टर दयालान के निर्देशकों ने फिल्म के बारे में अपने अनुभव बांटे।
संथाली भाषा में बनी फिल्म फूलमुनी फिल्म के निर्देशक दशरथ हंसदा ने बताया कि उनकी संथाली भाषा संस्कृति आज लुप्त होने क ी कगार पर है। मूल रूप से झारखंड, ओडिशा व बंगाल के कुछ इलाकों में संथाली भाषा के लोग हैं। यह प्रयास है कि फिल्मों के जरिए तो संस्कृति को बचाया जा सके।
संथाली भाषा में फिल्म बनाने व उसके प्रदर्शन के बारे में हांसदा ने बताया कि नक्सलियों के कारण सारे फिल्म थियेटर बंद हो गए। आज हम गांवों में जाकर फिल्मों का प्रदर्शन करते हैं। धीरे-धीरे हम अपनी संस्कृति को पुन: जोडऩे की कोशिश कर रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि युवाओं क ा आक र्षण बढ़ रहा है। पहले से स्थिति बेहतर रहेगी। हर किसी की भाषा के साथ उनकी संस्कृति जुड़ी है। आज संस्कृति व भाषा को बचाना ही हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।
युवाओं की मनोदशा को दर्शाती है ‘सपनेरो गुपोरो’

बंजारा भाषा में बनी फिल्म सपनेरो गुपोरो के निर्देशक विक्टर दयालान ने कहा कि उनकी फिल्म युवाओं के लिए हैं। भारत में ऐसा देश हैं जहां युवाओं की संख्या सबसे अधिक है। लेकिन आज यह एक समस्या है कि युवा सही फैसला नहीं ले पाते हैं। उनके गलत फै सलों के कारण उनका पूरा जीवन व्यर्थ हो जाता है। जब उन्हें समझ आता है तो वो बहुत पीछे छूट जाते हैं। युवाओं का यह वर्ग पढ़ा लिखा है लेकिन सामाजिक जीवन की समझ इनमें नहीं है। ऐसे ही युवाओं की मनोदशा की कथा है सपनेरो गुपोरो। निर्देशक दयालान ने कहा कि यह उनकी पहली फिल्म है जो इस महोत्सव तक पहुंची है। हम दर्शकों के लिए और फिल्में भी जल्द ही लाएंगे।
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