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बैरकपुर की महाभारत में अर्जुन साधेंगे लक्ष्य या त्रिवेदी की हैट्रिक

locationकोलकाताPublished: May 04, 2019 07:22:42 pm

Submitted by:

Rabindra Rai

लोकसभा चुनाव: मुकाबला माना जा रहा बेहद दिलचस्प

kolkata

बैरकपुर की महाभारत में अर्जुन साधेंगे लक्ष्य या त्रिवेदी की हैट्रिक

बैरकपुर. क्या इतिहास अपने आप को दोहराता है? कम से कम पश्चिम बंगाल की ऐतिहासिक और क्रांतिकारी धरती बैरकपुर को लेकर यह कथन सच साबित हो रहा है। यह बात अलग है कि देश की आजादी के लिए १८५७ में बैरकपुर रेजीमेंट के सिपाही मंगल पांडेय ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बगावत की चिंगारी भड़काई थी और अब पार्टी टिकट और राजनीतिक आजादी के लिए अर्जुन सिंह ने बगावत की राह पकड़ी है। अर्जुन सिंह के मैदान में उतर जाने से बैरकपुर लोकसभा क्षेत्र में मुकाबला बेहद रोचक हो गया है, क्योंकि एक तरफ २०१६-१७ के सर्वश्रेष्ठ सांसद, पूर्व रेल मंत्री तथा मौजूदा सांसद दिनेश त्रिवेदी हैं तो दूसरी तरफ चार बार के विधायक और दबंग हिन्दी भाषी नेता सिंह खुद हैं। दोनों के साथ मैदान में माकपा की गार्गी चटर्जी और कांग्रेस के मोहम्मद आलम भी ताल ठोंक रहे हैं। जाहिर है ऐसे में महाभारत तो होगी ही। तृणमूल कांग्रेस प्रत्याशी त्रिवेदी लगातार तीसरी बार जीत हासिल करने के लिए एड़ी चोटी का पसीना एक कर रहे हैं तो उनकी राह में ४७ वर्षीय गार्गी चटर्जी और अर्जुन सिंह दीवार बनकर खड़े हैं। ऐसे में चुनावी मुकाबला बेहद दिलचस्प माना जा रहा है। अब देखना है कि आज के अर्जुन मोदी रूपी रथ पर सवार होकर लक्ष्य पर निशाना साधते हैं या त्रिवेदी दीदी ममता बनर्जी की लोकप्रियता के सहारे हैट्रिक बनाते हैं। अर्जुन सिंह लम्बे समय तक त्रिवेदी के खास रहे हैं, पर क्षेत्र से पार्टी टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने तृणमूल प्रमुख और सीएम ममता बनर्जी का साथ छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया है। वर्ष 2009 और 2014 में त्रिवेदी के लिए इसी सीट से चुनाव प्रचार का जिम्मा संभालने वाले और उनकी जीत में अहम योगदान देने वाले अर्जुन सिंह इस बार उन्हीं से न केवल दो-दो हाथ कर रहे हैं, बल्कि बाजी मारने के लिए हर जरूरी व्यूह रच रहे हैं।
त्रिवेदी ने 2009 में माकपा के कद्दावर नेता और लगातार ६ बार के सांसद रहे तडि़त बरन तोपदार की जीत के रथ को रोक दिया था। उन्होंने तोपदार को 56,024 वोटों के अंतर से पराजित किया था। त्रिवेदी के यहां से जीतने के बाद पार्टी में उनका कद कितना ऊंचा हो चुका था इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि ममता बनर्जी के 2011 में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनने के बाद त्रिवेदी ने उनकी जगह मनमोहन सिंह सरकार में रेलमंत्री का पदभार संभाला था।
वर्ष 2014 में तृणमूल ने त्रिवेदी को दूसरी बार उम्मीदवार बनाया और उन्होंने माकपा की उम्मीदवार सुभाषिनी अली को 2,06,773 मतों के बड़े अंतर से हराया था। त्रिवेदी को 4,79,206 वोट प्राप्त हुए थे, जबकि अली को 2,72,433 मत मिले थे। मोदी लहर पर सवार भाजपा प्रत्याशी आर. के. हांडा 2,30,401 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे थे।

लोकसभा क्षेत्र पर नजर
लोकसभा क्षेत्र के तौर पर 1952 में अस्तित्व में आए बैरकपुर में कभी माकपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला रहा है, लेकिन 1998 में तृणमूल कांग्रेस के गठन के बाद यहां लड़ाई माकपा और तृणमूल में बदल गई। 2004 तक माकपा को सफलता मिली। दिनेश त्रिवेदी ने 2009 में यहां जीत कर तृणमूल का खाता खोला। माकपा का यहां स्ट्राइक रेट ७० फीसदी तो कांग्रेस का २० फीसदी है। पिछली दो बार से तृणमूल कांग्रेस ने इस सीट पर कब्जा जमाया है। 1989 के चुनावों में माकपा के तडि़त बरन तोपदार ने कांग्रेस के उम्मीदवार को हराकर इस सीट का प्रतिनिधित्व किया। तोपदार 1989 के बाद 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 तक लगातार छह बार यहां से चुनाव जीतने में सफल रहे। कहा जाता है कि श्रमिक यहां के नेताओं की किस्मत का फैसला करते हैं, देखते हैं इस बार वे किसे यहां का सरताज चुनते हैं। इस सीट पर चुनाव पांचवें चरण में 6 मई को होगा

१४,२८,८२९ मतदाता तय करेंगे भविष्य
कोलकाता से करीब २१ किलोमीटर दूर बैरकपुर संसदीय क्षेत्र में आधी से ज्यादा आबादी कामकाजी है। इसमें में भी हिंदी बोलने वालों की हिस्सेदारी करीब 35 फीसदी मानी जाती है। हिंदी भाषियों में से सबसे अधिक संख्या उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों की है। जनगणना 2011 के आंकड़े बताते हैं कि क्षेत्र की आबादी 19,27,596 है जिनमें १७.७८ फीसदी गांव में जबकि 83.22 फीसदी आबादी शहर में रहती है। इनमें अनुसूचित जाति और जनजाति का अनुपात क्रमश: 16.14 फीसदी और 1.44 फीसदी है। १४,२८,८२९ मतदाता हैं। पिछली बार ८२ फीसदी मतदान हुआ था जबकि 2009 में यह आंकड़ा 80.46 फीसदी था। बैरकपुर संसदीय क्षेत्र में सात विधानसभा सीटें हैं जिनमें आमडांगा, बीजपुर, नैहाटी, भाटपाड़ा, जगतदल, नोआपाड़ा और बैरकपुर शामिल हैं।
2014 का जनादेश
मजदूर बहुल इलाका होने के कारण 2014 के चुनावों में माकपा ने कानपुर की सुभाषिनी अली को दिनेश त्रिवेदी के खिलाफ मैदान में उतारा था, लेकिन सुभाषिनी अली को शिकस्त का सामना करना पड़ा था। वहीं भाजपा प्रत्याशी रिटायर्ड पुलिस अधिकारी आरके हांडा तीसरे स्थान पर रहे थे। वहीं कांग्रेस के सम्राट तपादार चौथे स्थान पर रहे थे। चुनाव में इस सीट पर कुल मतदाताओं की संख्या 12,87,222 थी, जिनमें से 10,51,130 लोगों ने अपने मतों का प्रयोग यहां पर किया था, जिसमें पुरुषों की संख्या 5,67,820 और महिलाओं की संख्या 4,83,310 थी।
सांसद का रिपोर्ट कार्ड
बैरकपुर संसदीय क्षेत्र के विकास के लिए त्रिवेदी ने सांसद निधि के 25 करोड़ रुपए में से 87.87 फीसदी रकम विकास कार्यों पर खर्च कर दी है। त्रिवेदी ने संसद में २५६ सवाल उठाए, उनकी हाजिरी ८२ फीसदी रही, जबकि उन्होंने २८ बहस में हिस्सा लिया। दिनेश त्रिवेदी ने रेलमंत्री का पदभार 13 जुलाई 2011 को संभाला था। आजाद भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी रेलमंत्री ने संसद में रेलबजट पेश करने के ठीक पांच दिन के बाद रेलमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया हो।
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