कोलकाता

बाहरी बनाम भूमिपुत्रों की लड़ाई न बन जाए बालूरघाट

– तृणमूल प्रत्याशी अर्पिता घोष को बाहरी बताकर घेर रहे हैं भाजपा, आरएसपी व कांग्रेस प्रत्याशी। सीट बचाने की चुनौती से जूझ रहीं तृणमूल प्रत्याशी।

कोलकाताApr 18, 2019 / 06:54 pm

Paritosh Dube

बाहरी बनाम भूमिपुत्रों की लड़ाई न बन जाए बालूरघाट

कोलकाता.दक्षिण दिनाजपुर की बालूरघाट संसदीय क्षेत्र में 23 अप्रेल को होने वाले लोकसभा चुनाव में बाहरी प्रत्याशी बनाम भूमिपुत्र का नेरेटिव सेट करने का प्रयास किया जा रहा है। वर्ष 2014 में यहां से जीतीं नाट्य जगत से ताल्लुक रखने वाली अर्पिता घोष को भाजपा, आरएसपी व कांग्रेस के प्रत्याशी बाहरी बताकर अपने भूमिपुत्र होने का प्रचार कर रहे हैं। जिले में आई विनाशकारी बाढ़ के समय उनकी भूमिका पर सवाल उठा रहे हैं। साथ ही तृणमूल कांग्रेस में गुटबाजी को उसकी कमजोरी व अपनी अपनी जीत की संभावना का कारण बता रहे हैं। अर्पिता मूल रूप से कोलकाता निवासी हैं । जबकि भाजपा ने गौड़बंग विश्वविद्यालय के प्रो. डॉ. सुकांत मजूमदार को व आरएसपी ने चार बार के बालूरघाट सांसद रहे रनेन बर्मन को अपना प्रत्याशी बनाया है। वहीं कांग्रेस ने भूमिपुत्र सादेक सरकार को प्रत्याशी बनाया है जिन्होंने पिछला लोकसभा चुनाव एआईयूडीएफ की टिकट पर लड़ा था।
पहले कांग्रेस फिर आरएसपी का रहा कब्जा
बालुरघाट लोकसभा सीट पर वर्ष 1952 से लेकर 1977 तक हुए आम चुनावों में कांग्रेस का कब्जा रहा। वर्ष 1977 के बाद यह सीट वाममोर्चे के घटक रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के कब्जे में चली गई जिसके प्रत्याशी वर्ष 2009 के आम चुनावों तक इस सीट पर जीत हासिल करते रहे। वर्ष 2014 में इस सीट की तस्वीर बदली और तृणमूल कांग्रेस की प्रत्याशी ने इस सीट से जीत हासिल की।
इस लोकसभा सीट का वर्ष 1962 तक पश्चिमी दिनाजपुर नाम था। यहां १952 में हुए चुनाव में कांग्रेस के सुशील रंजन चट्टोपध्याय सांसद चुने गए। वर्ष 1957 में हुए दूसरे लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर सेलकु मार्दी चुनाव जीते, वहीं 1962 में पश्चिमी दिनाजपुर सीट का नाम बदलकर बालुरघाट हुआ। उस दौरान हुए आम चुनाव में माकपा के टिकट पर सरकार मुर्मू सांसद चुने गए। वर्ष 1967 के चुनाव में फिर कांग्रेस प्रत्याशी ने जीत हासिल की व जेएन प्रमाणिक सांसद बने। वर्ष 1971 के चुनाव में कांग्रेस के रसेंद्रनाथ बर्मन चुनाव जीते, फिर यह सीट आरएसपी के प्रत्याशी के पास चली गई। 1977 से 1991 तक आरएसपी के पलाश बर्मन ने एक के बाद एक जीत हासिल की। वर्ष 1996 के चुनाव में आरएसपी के नए उम्मीदवार रानेन बर्मन ने जीत का जो सिलसिला शुरू किया वो वर्ष 2004 के आम चुनावों तक जारी रहा। वर्ष 2009 के आम चुनावों में रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के बदले उम्मीदवार प्रशांत कुमार मजूमदार ने जीत हासिल की। 2014 के चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की अर्पिता घोष चुनाव जीतीं।
संसदीय क्षेत्र की सामाजिक बनावट
वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबकि बालूरघाट लोकसभा सीट के अंतर्गत कुल आबादी 19,79,954 है, जिसका 87.76 फीसदी हिस्सा ग्रामीण और 12.24 फीसदी हिस्सा शहरी है। कुल जनसंख्या का में अनुसूचित जाति और जनजाति की जनसंख्या का अनुपात 28.33 और 15.19 फीसदी है। संसदीय क्षेत्र में १४,२७,५६७ मतदाता हैं। कुल 1५३० मतदान केन्द्र हैं। वर्ष 2014 के आम चुनावों में 84.77 फीसदी जबकि 2009 के लोकसभा चुनावों में 86.65 फीसदी लोगों ने मताधिकार का प्रयोग किया था।
2014 का जनादेश
बालुरघाट लोकसभा सीट से तृणमूल कांग्रेस की अर्पिता घोष चुनाव को वर्ष २०१४ के चुनाव में 4,09,641 यानी 38.5 फीसदी मत मिले थे जबकि आरएसपी के उम्मीदवार 3,02,677 यानी 28.47 फीसदी मतों के साथ दूसरे स्थान पर थे। यहां भाजपा के उम्मीदवार बिश्वप्रिया राय चौधरी को 2,23,014 मत मिले थे जो कुल मतदान का 20.98 फीसदी है। वहीं वर्ष 2009 के आम चुनाव में आरएसपी को 44.38 फीसदी, तृणमूल कांग्रेस को 43.79 फीसदी और भाजपा को 6.82 फीसदी मत मिले थे।
सांसद का प्रदर्शन
बालुरघाट की सांसद अर्पिता घोष सदन की कार्यवाही के दौरान 80 फीसदी उपस्थित रहीं। उन्होंने 25 सवाल पूछे। संसद की 17 डिबेट (बहस) में शामिल हुईं। अपने संसदीय क्षेत्र के लिए सांसद निधि के तहत मिले 25 करोड़ में से 24.73 करोड़ रुपये खर्च किए।

Hindi News / Kolkata / बाहरी बनाम भूमिपुत्रों की लड़ाई न बन जाए बालूरघाट

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.