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बंगाल ने ही दिया था बॉलीवुड को पहला सुपर स्टार

locationकोलकाताPublished: Sep 24, 2018 06:54:40 pm

Submitted by:

Paritosh Dube

भारतीय फिल्म जगत में 1932 से 1946 का युग सहगल का युग रहा। इस दौरान उन्होंने एक से बढक़र एक फिल्मों में अभिनय किया। भारतीय सिनेमा को अपने सिताराई अहसास से गंभीर बनाया।

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बंगाल ने ही दिया था बॉलीवुड को पहला सुपर स्टार


कोलकाता. मूक फिल्मों का दौर खत्म हो रहा था। सवाक, संगीत से सजी फिल्में बड़े पर्दे पर उतरनी शुरू ही हुई थीं। देश भर से कलाकारों, शास्त्रीय गायकों, फिल्म निर्माताओं और लेखकों का कोलकाता में जमावड़ा लगना शुरू हो गया था। इसी दौर में जम्मू में जन्मे भारतीय सिनेमा के पहले सुपर स्टार ने कोलकाता में अपनी जड़ें मजबूत कीं। बात की जा रही है सुर और साज के धनी, अभिनय के पितामाह कुंदन लाल सहगल की। सहगल ने कोलकाता में रहते हुए न सिर्फ अमर गीत रिकार्ड किए बल्कि एक से बढक़र एक फिल्मों में अभिनय के जरिए अपना सितारा संसार तैयार किया। रेलवे की नौकरी छोडक़र रेमिंगटन टाइपराइटर के सेल्समैन बने सहगल को सुर, साज की प्रारंभिक तालीम घर में मां के भजनों से मिली। सेल्समैन के तौर पर देश भर में घूमना पड़ता था गले की झंकार यदा कदा दोस्तों की महफिलों में सामने आती थी। इन्हीं महफिलों मुशायरों से दोबारा जन्म लिए सहगल पर संगीत निर्देशक हरीशचंद्र बाली की नजर पड़ी। जिनकी धुनों पर सहगल की आवाज में इंडियन ग्रामोफोन कंपनी ने गाने रिकार्ड किए। जो उस दौरान देशभर में मशहूर हुए। बाली ने ही उन्हें कोलकाता के फिल्म निर्देशक आर सी बोराल से मिलाया। बोराल उन्हें कोलकाता के बीएन सिरकार के स्टूडियो न्यू थिएटर में ले गए। स्टूडियो के साथ सहगल का दो सौ रुपए महीने का अनुबंध हुआ और बड़े पर्दे का सितारा तैयार होने लगा। शुरुआती फिल्मों में अपने अभिनय के जरिए समीक्षकों की नजर में आए सहगल की पहली ब्लॉकब्लस्टर 1935 में आई देवदास थी। शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की अमर कृति पर आधारित कहानी का निर्देशन पीसी बरुआ ने किया। देवदास का चरित्र सहगल ने बड़े पर्दे पर जीवंत कर दिया। इसके बाद उन्होंने पीछे मुडक़र नहीं देखा। हालांकि इससे पहले भी न्यू थिएटर के साथ सहगल ने मोहब्बत के आंसू, सुबह का सितारा, जिंदा लाश (1932), यहूदी की लडक़ी, कारवा ए हयात, रूपलेखा (1933) व चंडीदास 1934 में अपने अभिनय का जलवा दिखाया। इसी दौरान पूरन भगत की फिल्म में सहगल के गाए चार भजनों ने देश भर में धूम मचा दी।
इसी दौर में सहगल पहले गैर बांग्लाभाषी बने जिन्होंने कविगुरु रविन्द्रनाथ् ा टैगोर रचित गीतों को गाया। कहा जाता है कविगुरू ने पहले सहगल के गीत सुने फिर उन्हें अपनी रचनाओं के गाने की अनुमति दी। इस बीच देवदास की सफलता से रातों रात नायक बने सहगल का न्यू थिएटर से नाता और गहरा हो गया। इस दौरान सहगल ने प्रेसीडेंट (1937), धरती माता (1938), स्ट्रीट सिंगर (1938), दुश्मन, जीवन मरण (1939) व जिंदगी (1940) में मुख्य भूमिका निभाई। बताया जाता है कि प्लेबैक रिकार्डिंग की तकनीक उपलब्ध होने के बावजूद भी सहगल ने स्ट्रीट सिंगर का मशहूर गाना बाबुल मोरा नैहर छूटा जाए कैमरे के सामने लाइव रिकार्ड किया। भारतीय फिल्म जगत में 1932 से 1946 का युग सहगल का युग रहा। इस दौरान उन्होंने एक से बढक़र एक फिल्मों में अभिनय किया। भारतीय सिनेमा को अपने सिताराई अहसास से गंभीर बनाया। कोलकाता में स्टारडम हासिल करने के बाद 1940 में वे बॉलीवुड चले गए। लेकिन उनके दिल से कोलकाता और बंगाल कभी अलग नहीं हो पाया। कोलकाता के न्यू स्टूडियो के साथ उन्होंने न सिर्फ हिंदी बल्कि कई बांग्ला फिल्मों में भी अभिनय किया। बांग्ला भाषा में कई गाने रिकार्ड किए। आने वाले कई दशकों तक उन्होंने बॉलीवुड की राह पकडऩे वाले युवाओं को राह दिखाई।
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