कोलकाता
भारत इस साल पानी की गंभीर किल्लत से गुजर रहा है। भूजल स्रोतों का अनावश्यक दोहन ने एसी स्थिति पैदा कर दिया है कि अगले साल से देश के 21 शहरों को बाहर से पानी मंगवाने की शंका जताई जा रही है। इस बीच जल-संरक्षण के उपायों के अभाव में पश्चिम बंगाल सूखा राज्य बनने की ओर बढ़ रहा है।
जल संरक्षण के लिए राज्य सरकार 2011 से जल धरो जल भरो योजना शुरू की है और लोगों में जल संरक्षण का अलख जगाने के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 12 जुलाई को चिलचिलाती धूप और उमस के बीच कोलकाता में पैदल यात्रा भी की। लेकिन पुरुलिया, बांकुड़ा, बीरभूम और पश्चिम मिदनापुर सिहत दक्षिण बंगाल के जिलों की स्थिति में कोई सुधार नहीं आया है। इन जिलों में भीषण गर्मी और उमस के कारण सूखा जैसी स्थिति है। वर्ष 2018 की तरह इस साल भी उक्त उक्त जिले सहित दक्षिण बंगाल में वर्षा बहुत कम हुई है। गर्मी के दिनों में भूजल स्तर काफी नीचे चला जाता है। ग्रामीण क्षेत्र में पीने के पानी का एक मात्र स्रोत छोटी नदियां और नाले सूख जाते हैं।
गर्मी के दिनों में पुरुलिया जिले में जब तापमान 42 से 47 डीग्रि सेल्सियस तक पहुंचता है तो स्थिति बद से बदतर हो जाती है। राज्य के कृषि और सिंचाई विभाग के अनुसार पुरुलिया जिले में प्रत्येक साल 140 सेन्टी मिटर से भी कम बारिश होती है। पीने के लिए स्वच्छ और सुरक्षित पानी नहीं मिलने पर गांव के लोग गंदा पानी पीने के लिए मजबूर हो जाते हैं। इस कारण उन्हें डायरिया या निर्जलीकरण, कब्ज, दस्त और मूत्र के रास्ते में संक्रमण से पीड़ित होना पड़ता है। बांकुड़ा, बीरभूम, और पश्चिम मिदनापुर जिले में भी थोड़ी बारिश होती है और कमो बेस पुरुलिया जैसी स्थिति होती है।
वर्ष 2017 में केन्द्र सरकार की ओर से कराए गए अध्ययन के अनुसार राजस्थान के बाद पश्चिम बंगाल देश का दूसरा राज्य है, जहां सबसे अधिक लोगों को पीने के लिए सुरक्षित और शुद्ध पानी नहीं मिलता है। पीने के शुद्ध पानी नहीं पाने वाले ग्रामीण भारत के प्रत्येक पांच लोगों में से करीब एक बंगाल का है।
अध्ययन के अनुसार देश के ग्रामीण इलाकों की करीब 411 लाख की आवादी है। इसका 4.5 प्रतिशत देश की ग्रामीण आवादी को पीने के लिए शुद्ध पानी नहीं मिलता और 411 लाख आवादी का करीब 19 प्रतिशत यानि 78 लाख ग्रामीण लोग पश्चिम बंगाल के हैं।
जल-स्तर में गिरावट, मिट्टी की प्रकृति, वैज्ञानिक जल-संरक्षण उपायों की कमी और बड़े पैमाने पर संकट के लिए सरकार की पहल का अभाव जैसे पानी से संबंधित विषयों का अध्ययन करने वाले विश्व बैंक के हाइड्रोलॉजिस्ट और सलाहकार मोहित राय ने बताया कि प्रत्येक साल पुरुलिया में पानी की किल्लत भयावह रुप ले लेता है। इसके 80 प्रतिशत इलाकों में सूखा जैसी स्थित पैदा हो जाती है। इसी तरह की स्थित बांकुड़ा, बर्दवान, बीरभूम और पश्चिम मिदनापुर के अधिकतर हिस्सों में भी होती है।
वैज्ञानिक जल प्रबंधन की आवश्यकता
मोहित राय कहते हैं कि समस्या से निपटने के लिए जल संरक्षण, संरक्षण तकनीक और वैज्ञानिक तंत्र को लागू किया जाना चाहिए। पूर्व मिदनापुर जिला के हल्दिया गवर्मेंट कॉलेज एसिसटेन्ट प्रोफेसर सरवेश्वर हल्दर ने सूखा जैसी स्थिति पैदा होने के लिए दो कारणों का पता लगाया है। इसमें से एक भौतिक कारण है और दूसरा कारण आर्थिक है।
उनका कहना है कि भौतिक पानी की कमी क्षेत्रीय मांग को पूरा करने में अपर्याप्त जल संसाधनों को दर्शाता है। आर्थिक पानी की कमी मांग को पूरा करने के लिए नदियों, जलसयों या अन्य जल स्रोतों से पानी निकालने के लिए बुनियादी ढांचे या प्रौद्योगिकी में निवेश और अपर्याप्त मानव क्षमता होने का नतीजा है।
मोहित राय का समर्थन करते हुए कहा कि प्रो. हल्दर ने कहा कि बंगाल को एक अभूतपूर्व संकट का सामना करना पड़ रहा है। इस संकट से उबरने के लिए उचित तंत्र की आवश्यकता है। इससे जुड़े सभी लोगों को उपलब्ध जल संसाधनों के सतत उपयोग के लिए एक रास्ता तैयार करना चाहिए।