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बंगाल ने ही मजबूत की ट्रेजडी किंग की नींव

locationकोलकाताPublished: Sep 30, 2018 10:26:22 pm

Submitted by:

Paritosh Dube

जिस फिल्म ने दिलीप कुमार को टे्रेजडी किंग का तमगा दिलाया, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्मफेयर अवार्ड तक पहुंचाया, वह बिमल राय निर्देशित देवदास थी

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बंगाल ने ही मजबूत की ट्रेजडी किंग की नींव

– रुपहले पर्दे पर सुनहला बंगाल
कोलकाता. श्वेत श्याम फिल्मों का दौर अभी खत्म नहीं हुआ था। कैमरे के पीछे और आगे तेजी से घटनाक्रम बदल रहे थे। समाज आजादी से मिली खुशियों को भूल रहा था। भ्रम के शिकार चरित्र लगातार अपनी छवि सेल्यूलायड में मजबूत कर रहे थे। ये ऐसे चरित्र थे जो त्रासद दुखांत फिल्मों में दर्शकों को झकझोरते थे। उसी दौर में ट्रेजडी किंग कहे जाने वाले दिलीप कुमार की एक से बढक़र एक फिल्में आईं। जिस फिल्म ने उन्हें टे्रेजडी किंग का तमगा दिलाया, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्मफेयर अवार्ड तक पहुंचाया, वह बिमल राय निर्देशित देवदास थी। शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की अमर कृति पर आधारित देवदास पहले भी 1930 के दशक में बन चुकी थी। न्यू थिएटर के बैनर तले पीसी बरुआ के निर्देशन में बनी देवदास में केएल सहगल की भूमिका लोगों के दिमाग पर ताजा थी। बरुआ के देवदास की शूटिंग के समय बिमल राय भी न्यू थिएटर से जुड़े हुए थे। उन्होंने देवदास के निर्माण को करीब से देखा था। दो दशकों बाद उसी कहानी पर एक बार फिर फिल्म बनाने का साहस दिखाने वाले बिमल राय संजीदा निर्देशक के तौर पर बॉलीवुड में अपनी पहचान बना चुके थे। 1940 के दशक में फिल्म रोल की कमी और द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण कोलकाता से एक एक करके प्रतिभाओं का बंबई जाना शुरू हो गया था। बिमल राय भी उन्हीं प्रतिभाओं में से एक थे। बंबई जाकर भी बिमल राय बंगाल को कभी नहीं भूले। जब भी उन्हें मौका मिला उन्होंने कोलकाता व बंगाल को अपनी फिल्मों में यथोचित स्थान दिया। बहरहाल, दिलीप कुमार अपने गंभीर अभिनय से बॉलीवुड में पहचान बना चुके थे। जब उन्हें देवदास का ऑफर मिला तो उनके सामने कई तरह की समस्याएं थीं। भारत के पहले सुपरस्टार केएल सहगल ने देवदास की जो छवि बनाई थी, उसपर खरा उतरना। छोटे से छोटे प्लॉट के तकनीकी पक्षों को शिद्दत से कैमरे में उतारने के धनी निर्देशक बिमल राय की अपेक्षाएं पूरी करनी थीं, तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण आत्मबलिदान देने की सारी हदें लांघ चुके एक जमींदार के बेटे के चरित्र को पर्दे पर उतारना था। जबकि दिलीप कुमार खांटी खान परिवार से ताल्लुक रखते थे। देवदास के निर्माण के समय एक किस्सा बतकही में खूब चर्चित हुआ था। फिल्म की महिला चरित्र रात में देवदास के कमरे में आती है और उसे देवदास वापस भेज देता है। इस प्लॉट पर चर्चा करते हुए दिलीप कुमार ने कहा था कि मैं एक खान परिवार का लडक़ा हूं, कोई महिला मेरे पास रात में मेरे कमरे में आए तो मैं उसे कैसे जाने दे सकता हूं। इसपर बिमल राय का कहना था कि देवदास ऐसा ही करता है। इसलिए दिलीप कुमार को भी ऐसा ही करना पड़ेगा। फिल्म पर्दे पर आई, उसने सफलता के झंडे गाड़े। फिल्म में सुचित्रा सेन और बैजयंती माला ने भी अपने अभिनय की छाप छोड़ी।
फिल्म निर्देशक के लिए सबसे बड़ी चुनौती ग्रामीण बंगाल, शहरी कोलकाता के बीच घूमते मूल चरित्र देवदास को जीवंत करना था। बंगाल की परंपराएं, जमींदारों में प्रचलित रीति रिवाज, महिला, पुरुषों की वस्त्र परंपरा सबका सजीव चित्रण ही फिल्म को रोमांचकारी बना सकता था। बिमल राय ने यह सब कर दिखाया। बंगाल की कहानी, बंगाल के परिवेश पर आधारित फिल्म लंबे समय तक लोगों को रोमांचित करती रही। 1955 में बनी फिल्म की सफलता के दशकों बाद जब दिलीप कुमार से पूछा गया कि फिल्म में क्या खास था, तो उन्होंने कहा कि बिमल राय चरित्र की आत्मा समझते थे। उस दौर में तो फिल्म अभिनय प्रशिक्षण संस्थान भी नहीं थे। बिमल राय जैसे निर्देशकों ने ही उन जैसे अभिनेताओं को अभिनय की बारीकियां सिखाईं।
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