scriptBengal: Violence became a means of occupation of political land | बंगाल: जीत और राजनीतिक जमीन पर कब्जे का जरिया बनी हिंसा | Patrika News

बंगाल: जीत और राजनीतिक जमीन पर कब्जे का जरिया बनी हिंसा

locationकोलकाताPublished: Jul 11, 2023 12:30:06 am

Submitted by:

Rabindra Rai

पंचायत चुनाव में जबर्दस्त हिंसा के बाद पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा के परम्परा का रूप धारण करने पर बहस शुरू हो गई। इसके कारणों को लेकर भी मंथन किया जा रहा है। राज्य के सभी राजनीतिक दलों के नेताओं ने हिंसा के लिए एक-दूसरे को दोषी ठहराते हुए माना कि हिंसा राज्य की परम्परा बनती जा रही है। अपनी जीत सुनिश्चित करने और राजनीतिक जमीन पर कब्जा बरकरार रखने के लिए राज्य में हिंसा एक जरिया बन गई है।

बंगाल: जीत और राजनीतिक जमीन पर कब्जे का जरिया बनी हिंसा
बंगाल: जीत और राजनीतिक जमीन पर कब्जे का जरिया बनी हिंसा
बंगाल में चुनावी हिंसा के परम्परा का रूप धारण करने पर बहस शुरू
राजनीतिक दलों ने हिंसा के लिए एक-दूसरे को दोषी ठहराया
कोलकाता. पंचायत चुनाव में जबर्दस्त हिंसा के बाद पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा के परम्परा का रूप धारण करने पर बहस शुरू हो गई। इसके कारणों को लेकर भी मंथन किया जा रहा है। राज्य के सभी राजनीतिक दलों के नेताओं ने हिंसा के लिए एक-दूसरे को दोषी ठहराते हुए माना कि हिंसा राज्य की परम्परा बनती जा रही है। अपनी जीत सुनिश्चित करने और राजनीतिक जमीन पर कब्जा बरकरार रखने के लिए राज्य में हिंसा एक जरिया बन गई है। राज्य के वरिष्ठ मंत्री शोभनदेव चट्टोपाध्याय कहते हैं कि बंगाल में हिंसा और हत्या की राजनीति की शुरुआत पिछली शताब्दी के साठ दशक के मध्यम में हुई। राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी। उसके बाद माकपा नीत वाम मोर्चा के 34 वर्ष के शासन में जितनी हत्याएं हुईं, उसका एक इतिहास है। पहले हिंसा के जो बीज बोए गए हैं वे राज्य भर में फैले हुए हैं, वे अपना रंग दिखाते रहे हैं। जब तक लोग जागरूक नहीं होंगे तब तक इससे मुक्ति मिलने वाली नहीं है। राजनीति के जरिए धन अर्जन का रास्ता खुलने पर बाहुबल का इस्तेमाल बढ़ गया है। सभी जिला परिषद और ग्राम पंचायत के उम्मीदवार बनना चाहते हैं।
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सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में प्रशासन: कांग्रेस
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी कहते हैं कि राजनीतिक सौदेबाजी करने से ऐसी ही हिंसा होगी। पंचायत चुनाव जैसी हिंसा और हत्या नक्सल के समय शुरू हुई थी और अब भी जारी है। नक्सल आंदोलन से लेकर अब तक बंगाल की राजनीति में उग्र आंदोलन ने हमेशा से स्थान पाया है। ऐसे में पुलिस प्रशासन के कानून-व्यवस्था को लेकर पूरी तरह से निष्क्रिय होने और सत्ताधारी दल के पक्ष में काम करने से यह समस्या कैसे सुलझेगी।
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जहां कम्युनिस्ट वहीं हिंसा: भाजपा
प्रदेश भाजपा के मुख्य प्रवक्ता शमिक भट्टाचार्य कहते हैं कि राजनीतिक हिंसा के लिए आर्थिक स्थिति भी एक बड़ा कारण है। लेकिन इसके मूल में कम्युनिस्ट हैं। जहां भी कम्युनिस्ट रहे वहां हिंसा राजनीति का हिस्सा बन गई। बंगाल की तरह त्रिपुरा की राजनीति को हिंसक बना दिया। ऐसे भी बंगाल के लोग अपने सांस्कृतिक अधिपत्य को बड़ा करके देखते हैं और सोचते हैं कि बिहार, उत्तर प्रदेश और गुजरात को लेग कुछ भी नहीं जानते हैं। हम जो कर रहे हैं वो सब ठीक है।
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लड़कर अधिकार लेने की संस्कृति: माकपा
माकपा नेता सुजन चक्रवर्ती कहते हैं कि बंगाल में लड़कर अपने अधिकार लेने की संस्कृति आजादी के पहले से ही है। लेकिन राजनीतिक सद इच्छा नहीं होने पर कुछ भी नियंत्रण में नहीं होता है। उन्होंने कहा कि 2003 में वाम मोर्चा के शासन के दौरान पंचायत चुनाव में जबरदस्त हिंसा और हत्या होने के बहुत से कारण थे। लेकिन पुलिस प्रशासन कभी भी लोगों से अलग नहीं हुआ।
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