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गुजरात की कहानी बंगाल में दोहराना पीके के लिए बड़ी चुनौती

locationकोलकाताPublished: Jun 07, 2019 07:22:55 pm

Submitted by:

Rabindra Rai

भाजपा बोली, दीदी को नहीं बचा पाएंगे प्रशांत किशोर

kolkata

गुजरात की कहानी बंगाल में दोहराना पीके के लिए बड़ी चुनौती

कोलकाता. आकर्षक नारे गढ़ो, ठोस रणनीति बनाओ और चुनाव जीतो, कुछ इस तरह की फितरत रही है चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर उर्फ पीके की। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजों को छोड़ दिया जाए तो पीके का शानदार रिकार्ड रहा है। हाल ही में आंध्र प्रदेश के विधानसभा चुनाव नतीजों ने फिर से उनकी छवि को चमका दिया है। आंध्र में उन्होंने जगन मोहन रेड्डी के लिए चुनाव रणनीति बनाई जिसमें वे पूरी तरह से सफल भी हुए। हाल के लोकसभा चुनाव में नाव डगमगाने के बाद ममता दीदी ने उन्हें 2021 के राज्य विधानसभा चुनाव के लिए बतौर चुनावी रणनीतिकार या कहें कि राजनीतिक रणनीतिकार अपने साथ जोड़ा है। इस बारे में पीके कहते हैं कि वे ममता बनर्जी को 2015 से जानते हैं। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद दीदी ने उनसे संपर्क किया। बताया जा रहा है कि तृणमूल ने राज्य विधानसभा चुनाव के लिए तैयारियों की पूरी जिम्मेदारी प्रशांत किशोर को सौंप दी है। हालांकि पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी से शुक्रवार को पीके के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने इस अंदरूनी मुद्दा बताया। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या पीके गुजरात की कहानी बंगाल में दोहराएंगे तथा तीसरी बार ममता दीदी को सत्ता दिलाएंगे।
दूसरी तरफ राजनीतिक हलकों में पीके से हाथ मिलाने को ममता बनर्जी के बैकफुट पर जाने के तौर पर भी देखा जा रहा है। दरअसल, हाल के लोकसभा चुनाव परिणामों में तृणमूल कांग्रेस का जो प्रदर्शन रहा है, उसने ममता को ऐसा करने के लिए मजबूर किया है। आने वाले विधानसभा चुनाव उनके लिए चुनौती बन गए हैं। जिस तरह से राज्य में भाजपा अपना वर्चस्व बढ़ा रही है, उससे दीदी को यह आभास हो गया है कि विधानसभा चुनाव टेढ़ी खीर हो सकता है। इस बीच प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने दावा किया कि अब ममता बनर्जी को प्रशान्त किशोर भी नहीं बचा पाएंगे। उन्होंने कहा कि तृणमूल कांग्रेस की स्थिति इतनी खराब हो गई है कि उसे प्रशान्त किशोर की रणनीति भी काम नहीं आएगी। राज्य की जनता तृणमूल कांग्रेस के बारे में जान गई हैं। अब जनता ने यह बता दिया है कि बंगाल में भाजपा आ रही है।
जहां तक पीके की लोकप्रियता का सवाल है? सबसे पहले नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने गुजरात विधानसभा चुनाव में पीके को आजमाया। दांव सफल होने के बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी और शाह ने उन्हें भाजपा के लिए बतौर चुनाव रणनीतिकार अपने साथ जोड़ा। इसका भरपूर लाभ पार्टी को मिला। 2014 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। इसके बाद पीके बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चहेते हो गए। उन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के लिए काम किया तथा भारी कामयाबी दिलाई। पंजाब में कांग्रेस की जीत में भी पीके का अहम योगदान माना जाता है।
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