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सीमा पर बनाया महिला छात्रावास, तो रुकी तस्करी

locationकोलकाताPublished: Mar 07, 2019 10:46:09 pm

Submitted by:

Shishir Sharan Rahi

पूर्वांचल कल्याण आश्रम की हावड़ा यूनिट प्रमुख कुसुम ने दिया छात्रावास निर्माण में सहयोग—आदिवासी बालाओं की बंगाल से बांग्लादेश तस्करी पर लगी लगाम—पिछले 28 साल से लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने सहित उनके सर्वांगीण विकास में सक्रिय हैं प्रवासी राजस्थानी—महिला दिवस पर पत्रिका खास रपट

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सीमा पर बनाया महिला छात्रावास, तो रुकी तस्करी

कोलकाता (शिशिर शरण राही). कहते हैं कि महिलाएं ही किसी सभ्य समाज की वास्तविक निर्माता और रीढ़ होती हैं। पिछले 28 साल से जनजाति महिलाओं के सर्वांगीण विकास में सक्रिय प्रवासी राजस्थानी कुसुम सरावगी ने बांग्लादेश की सीमा पर महिला छात्रावास निर्माण में सक्रिय सहयोग कर समाज में एक नई मिसाल पेश की है। इससे आदिवासी बालाओं की बंगाल से बांग्लादेश सहित अन्य प्रदेशों में बड़े पैमाने पर होने वाली तस्करी पर लगाम लगी है। वर्तमान में पूर्वांचल कल्याण आश्रम की हावड़ा यूनिट प्रमुख कुसुम ने पत्रिका संवाददाता के साथ खास भेंट में महिलाओं खासकर जनजाति बालाओं के हित में किए गए कार्यों की जानकारी देते हुए कहा कि उनका एकमात्र ध्येय वाक्य है….चलो जलाएं दीप वहां, जहां अभी भी अंधेरा है। मूल रूप से राजस्थान के चूरू जिले के तारानगर की मूल निवासी कुसुम ने कहा कि वनवासी महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कार और उनके स्वावलम्बन क्षेत्र में अनेक कदम उठाए गए हैं। उन्होंने कहा कि आजादी के 71 साल बाद भी जनजाति समाज राष्ट्र की मुख्यधारा से अलग-थलग हो घोर गरीबी, शोषण और बदहाली का शिकार है। 1652 से ही वनवासियों के सर्वांगीण विकास में सक्रिय पूर्वांचल कल्याण आश्रम के विविध समाजसेवा कार्यों में सक्रिय कुसुम ने बताया कि बंगाल के आदिवासी बहुल गांवों में कन्या विवाह की रोकथाम के साथ ही हर साल समूहिक विवाह कराया जाता है। इसी क्रम में 2 साल पहले बीरभूम जिले के तारापीठ के मल्लारपुर में 24 जनजाति बालिकाओं की सामूहिक शादी कराई गई थी।
—-ऐसे बन रही आदिवासी बालाएं आत्मनिर्भर
कोलकाता के मानिकतला में सिलाई-कम्प्यूटर प्रशिक्षण, कढ़ाई, ब्यूटीशियन कोर्स, पुरूलिया के बागमुंडी में मॉस्क निर्माण आदि के माध्यम से आदिवासी लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है। हैंडपंप, पौधरोपण, कृषि-खेती के आधुनिक तकनीक से जनजातियों को अवगत कराना भी इसमें शामिल है। उल्लेखनीय है कि पूरे भारत में विभिन्न प्रकार के मॉस्क बागमुंडी से ही तैयार होकर भेजे जाते हैं। बंगाल के सुंदरवन के गोसाबा द्वीप में जनजाति बालाओं के लिए बने छात्रावास में भी उन्हें वोकेशनल ट्रेनिंग सहित अन्य प्रशिक्षण दिए जा रहे हैं। इस छात्रावास में रहने के कारण ही बंगाल से सटे बांग्लादेश सहित अन्य प्रदेशों में होने वाली लड़कियों की तस्करी पर लगाम लगी। छात्रावास की वर्तमान प्रभारी रेवती मंडल ने सुंदरवन के गोसाबा द्वीप से फोन पर पत्रिका को बताया कि अभी इस छात्रावास में 63 लड़कियां रह रही हैं, जिनके निशुल्क रहने-खाने-पीने सहित चिकित्सा सुविधा भी उपलब्ध है। समय-समय पर यहां मेडिकल कैंप लगाए जाते हैं। पूरे बंगाल में इसके तहत 14 छात्रावास अभी चल रहे हैं, जिसमें लड़कियों के लिए 3 और लडक़ों के 11 हैं।
—–आज विभिन्न स्थानों में हैं सेवारत जनजाति बालाएं
इन छात्रावासों में रहकर शिक्षित और संस्कारित होकर जनजाति बालाएं आज देश के विभिन्न प्रदेशों में बेहतर मुकाम हासिल कर सेवारत हैं। इनमें बेंगलूरु के विवेकानंद योग केंद्र में फिलहाल बतौर नेचुरौपैथी सेवा दे रही डॉ. डोनी रियांग और पुरूलिया के छात्रवास की प्रमुख मालती सोरेन मुख्य हैं। मालती ने पुरूलिया के छात्रावास में ही रहकर शिक्षा पूरी की और आज वहीं कार्यरत है। कुसुम ने बताया कि उन्हें समाजसेवा की प्रेरणा उनके पिताजी सीताराम लढिय़ा से मिली। अब उनकी भावी योजना शहरवासियों को जोडऩे की है।
—-8 मार्च को ही क्यों मनाते हैं अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस?
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस हर साल 8 मार्च को मनाया जाता है।
सबसे पहले 28 फरवरी, 1909 को अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आह्वान पर इस दिवस को मनाया गया। 1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन सम्मेलन में इसे अंतरराष्ट्रीय दर्जा मिला और उस समय इसका मकसद महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिलाना था, क्योंकि अधिकतर देशों में महिलाओं को वोट देने का अधिकार ही नहीं था। 1917 में रूसी महिलाओं ने महिला दिवस पर रोटी और कपड़े के लिए हड़ताल किया, जिसके चलते जार ने सत्ता छोड़ी और अन्तरिम सरकार ने महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिया। चूंकि उस समय रूस में जूलियन कैलेंडर और बाकी दुनिया में ग्रेगेरियन कैलेंडर चलता था और इन दोनों की तारीखों में अंतर है। जूलियन कैलेंडर के मुताबिक 1917 की फरवरी का आखिरी रविवार 23 फरवरी था जबकि ग्रैगेरियन कैलैंडर के अनुसार उस दिन 8 मार्च थी। रूस सहित पूरी दुनिया में ग्रैगेरियन कैलैंडर चलता है, इसलिए हर साल ८ मार्च को महिला दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
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