नहीं सोचा था चांद पर पहुंचाएगा चंद्रकांत
उन्होंने कहा कि जब बेटे का नाम चंद्रकांत रखा था तब शायद नहीं सोचा कि आगे चलकर यही चंद्रकांत चांद पर भारत का कदम जमाने में बड़ी भूमिका निभाएगा। चंद्रकांत के माता-पिता आज भी झोपड़ी में रहते हैं। दरअसल चंद्रकांत ने एक एंटीना बनाया जिसके जरिए चंद्रयान-2 का पूरा संचार नियंत्रित हो रहा है। इसके अलावा भारत के मंगल मिशन के लिए संचार में भी उनका एंटीना इस्तेमाल किया जा रहा है। चंद्रकांत के बनाए एंटीना के जरिए ही धरती के कक्ष के बाहर चंद्रयान-2 तस्वीरें और अन्य संदेशों को भेजेगा।
गांव में ही हुई पढ़ाई
गुड़ाप थाना अंतर्गत शिवपुर गांव में चंद्रकांत का पैतृक आवास है और 8वीं तक उन्होंने मजीना नव विद्यालय में पढ़ाई की। 1992 में खजूरदह उच्च विद्यालय से माध्यमिक तथा धनियाखाली महामाया विद्या मंदिर से उच्च माध्यमिक परीक्षा पास कर बेलूर रामकृष्ण मिशन से भौतिक विज्ञान में बीएससी ऑनर्स की डिग्री ली। रेडियो फिजिक्स एंड इलेक्ट्रॉनिक्स लेकर एमएससी और एमटेक की पढ़ाई राजा बाजार साइंस कॉलेज से, कलकत्ता विश्वविद्यालय से पीएचडी और 2001 से इसरो में नौकरी करने लगे। अभी चंद्रयान-2 मिशन में बतौर डिप्टी प्रोजेक्ट डायरेक्टर (टेक्निकल) हैं।
खुशियों में चार चांद
बेटे की सफलता ने किसान माता-पिता की खुशियों में चार चांद लगा दिया है। गरीबी से जूझते हुए खुद कम खाकर बेटों की पढ़ाई और भोजन की व्यवस्था माता-पिता करते थे। आज भी चंद्रकांत का पैतृक आवास पुआल की मड़ई से बना हुआ है। घर के पास कटहल का पेड़ है और आसपास कई फूलों के पेड़ भी लगे हैं।
पिता हुए थे उदास
चंद्रकांत के पिता ने कहा कि जब इस मिशन को पहले टाला गया तो वे काफी दुखी थे। उन्हें फख्र है कि उनका बेटा इस मिशन का हिस्सा है। उन्होंने बताया कि गहने गिरवी रखकर, सूद पर रुपए लेकर बेटे की पढ़ाई पूरी कराई। मां ने कहा कि चंद्रकांत जब पढ़ रहे थे तो उनकी सारी जरूरतें हमलोग पूरी नहीं कर पाते थे लेकिन कोशिश में कोई कमी नहीं रखते थे। आज बेटे के कारण देश का नाम पूरी दुनिया में हो रहा है। इससे बड़ी खुशी की बात कुछ नहीं होगी।