बदल रहा इतिहास
कोलकाताPublished: Sep 14, 2018 10:08:48 pm
कोलकाता प्रसंगवश
पेट्रोल और डीजल की कीमतों में वृद्धि के खिलाफ बंद को नकार कर पश्चिम बंगाल के लोगों ने एक बार फिर सकारात्मक संदेश दिया है। लोगों की पहल का ही नतीजा है कि बंद का कोई खास असर देखने को नहीं मिला। इससे अब लग रहा है कि राज्य में बंद को लेकर इतिहास बदलने लगा है। पहले बंगाल में बंद का मतलब सब कुछ ठहर जाना होता था। अधिकांश लोग बंद के नाम पर छुट्टी मनाते तो कई जने हिंसा से सहम कर घर से बाहर ही नहीं निकलते थे। इस बार बंद के दौरान बड़ाबाजार, कॉलेज स्ट्रीट समेत अन्य इलाकों में कुछ दुकानें बंद जरूर दिखीं, पर अधिकांश दुकान-बाजार खुले रहे। पूर्व रेलवे के सियालदह और हावड़ा सेक्शन में ट्रेन सेवा पर मामूली असर पड़ा, परिवहन व्यवस्था लगभग सामान्य रही। बंद को विफल करने में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस सरकार की भूमिका एक बार फिर कारगर साबित हुई। राज्य सरकार ने बंद से जनजीवन को प्रभावित होने से बचाने के लिए हरसंभव कोशिश की। परिवहन के साधन उपलब्ध कराए। सरकार ने पहले ही कह दिया था कि बंद के दिन गैरहाजिर रहने वाले कर्मचारियों के एक दिन का वेतन काट दिया जाएगा। सरकार की सख्ती का ही असर है कि राज्य सचिवालय समेत समस्त सरकारी कार्यालयों में कर्मचारियों की उपस्थिति सामान्य रही।
जहां तक राजनीतिक दलों का सवाल है? राजनेताओं ने सियासी बाण खूब चलाए। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने दावा किया कि ममता सरकार और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने बंद का विरोध कर परोक्ष रूप से मोदी सरकार का समर्थन किया है, जबकि वाममोर्चा के अध्यक्ष विमान बोस की दलील है कि भाजपा और तृणमूल कांग्रेस की नीति एक जैसी है। दोनों पार्टी के नेता अपने को एक-दूसरे का विरोधी साबित करने की कोशिश जरूर करते हैं, पर हकीकत में दोनों एक ही सिक्के के दो पहलु हैं। तृणमूल कांग्रेस के महासचिव पार्थ चटर्जी ने वामदलों पर निशाना साधा और कहा कि बंगाल की जनता ने ३४ सालों तक बंद और हड़ताल की राजनीति झेली है। अब और नहीं झेलेगी। लगातार बंद का ही नतीजा है कि राज्य पर करीब ३ लाख करोड़ रुपए का कर्ज हो गया है। इसके उलट प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस और बंगाल सरकार ने वास्तव में बंद का विरोध किया ही नहीं। जो कुछ किया, दिखावे के लिए किया। आरोप-प्रत्यारोप के बीच एक अच्छी बात यह सामने आई कि राज्य की जनता ने बंद की पुरानी परम्परा को ताक पर रखना शुरू कर दिया है। जनता को कभी भी बंद का समर्थन नहीं करना चाहिए। किसी भी समस्या का समाधान बंद या हड़ताल करके नहीं बल्कि बातचीत करके किया जा सकता है। तृणमूल कांग्रेस को भी बंद का विरोध करने संबंधी अपने सिद्धांत को कायम रखना चाहिए। बंद से किसी का भी भला नहीं होता।