न्यायाधीश ने कहा कि ममता बनर्जी को सुनवाई के पहले दिन पेश होना होगा, क्योंकि यह एक चुनाव याचिका है। ममता के वकील ने कहा कि वह कानून का पालन करेंगी। मामले की सुनवाई को 24 जून तक स्थगित करते हुए न्यायमूर्ति चंदा ने निर्देश दिया कि इस बीच उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार इस अदालत के सामने एक रिपोर्ट पेश करेंगे कि क्या यह याचिका जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 के अनुरूप दाखिल की गई है।
अन्य पीठ को सौंपने की मांग
ममता बनर्जी के वकील ने हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल के सचिव को पत्र लिखकर याचिका को किसी दूसरी पीठ को सौंपने की मांग की। पत्र में दावा किया है कि उक्त याचिका की सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति कौशिक चंदा भाजपा के सदस्य थे।
हालांकि उनके खिलाफ कोई आरोप नहीं है, लेकिन सच है कि वे एक विशेष राजनीतिक दल से जुड़े थे। उन्हें मुख्यमंत्री की याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर लेना चाहिए। शुभेंदु पर यह आरोप
तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ने अपनी याचिका में भाजपा विधायक शुभेंदु पर जन प्रतिनिधि कानून, 1951 की धारा 123 के तहत भ्रष्ट आचरण करने का आरोप लगाया है।
उन्होंने याचिका में यह भी दावा किया कि मतगणना प्रक्रिया में विसंगतियां थीं। निर्वाचन आयोग ने पिछले महीने कांटे के मुकाबले के बाद शुभेंदु को नंदीग्राम सीट पर विजयी घोषित किया था। वकीलों ने किया प्रदर्शन
दूसरी तरफ कुछ वकीलों तथा तृणमूल कांग्रेस ने जस्टिस कौशिक की एकल पीठ में मामले की सुनवाई पर आपत्ति जाहिर की है।
न्यायाधीश के भाजपा से सम्पर्क होने का आरोप लगाते हुए कुछ वकीलों ने हाईकोर्ट के पास विरोध प्रदर्शन किया और राजनीति नहीं करने की चेतावनी दी। वकीलों ने काले मास्क लगाकर और हाथ में पोस्टर लेकर शान्तिपूर्ण प्रदर्शन किया। पोस्टर पर लिखा था कानून-व्यवस्था से राजनीति मत कीजिए।
तृणमूल सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने दो तस्वीरें ट्वीट करते हुए दावा किया है कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष के साथ जस्टिस चंदा मंच साझा कर रहे हैं, ऐसे में क्या आप न्याय की उम्मीद कर सकते हैं।
उन्होंने सवाल उठाया है कि क्या वे अपने फैसले में निष्पक्ष रहेंगे। उन्होंने कहा कि रिटर्निंग अफसर पर दबाव बनाकर बार बार मतगणना प्रक्रिया बाधित की गई। इससे साफ हो गया कि केंद्र सरकार किसी भी कीमत पर ममता बनर्जी को हराना चाहती थी।