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मोबाइल गेम्स से छिन रहा ‘बचपन’

locationकोलकाताPublished: Nov 14, 2019 03:00:32 pm

Submitted by:

Vanita Jharkhandi

– बच्चों में खेल से लेकर सोच-विचार तक पर दिख रहा असर- मानसिक रूप से बीमार और अवसाद का भी हो रहे शिकार

मोबाइल गेम्स से छिन रहा 'बचपन'

मोबाइल गेम्स से छिन रहा ‘बचपन’

 

कोलकाता . आधुनिक दौर में बच्चे स्मार्ट तो काफी हो गए, लेकिन वे अपना बचपना खोते जा रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण इलेक्ट्रॉनिक युग को माना जा रहा है। अब बच्चे खेलते तो हैं, पर मैदान में नहीं बल्कि मोबाइल और लैपटॉप पर। दोस्तों के साथ लूडो, फुटबॉल, शतरंज, बिजनेस, चाइनीस चेकर के बजाए मोबाइल पर ऐसे-ऐसे गेम खेलते हैं जिससे वे बीमार ही नहीं पड़ रहे बल्कि आत्महत्या भी कर रहे हैं। मालूम हो हाल ही में ब्लूह्वेल, मोमो आदि गेम की वजह से कई किशोरों ने आत्महत्या कर ली।
अभिभावकों की भी भागीदारी कम नहीं

बच्चों से बचपना छिनने के कई कारण हैं। इनमें अभिभावकों की भी भागीदारी कम नहीं है। आज के माता-पिता दोनों ही व्यस्त हैं। नौकरी के साथ ही सामाजिक दायरा काफी बढ़ गया जिसके कारण वे नौकरी के बाद का समय भी दोस्तों, क्लब व पार्टी आदि को देते हैं। इसमें बच्चा स्कूल, ट्यूशन के बाद पूरे दिन क्या करें इसलिए मोबाइल, लैपटॉप व टैब आदि देकर व्यस्त कर दिया गया है। बचपन से ही हाथों में मोबाइल, टेब और लैपटॉप को थाम लिया है। ऐसे में अधिकतर समय बच्चों का इलेक्ट्रॉनिक गैजेट में गुजर रहा है जिससे उनमें अकेलापन और चिड़चिड़ापन दोनों ही देखा जा रहा है।
एकल परिवार ने भी घोल दिया विषैलापन

शिक्षिका व समाजसेवी मालविका चटर्जी का कहना है कि एकल परिवार ने बहुत सारी चीजें छीनी है उनमें सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं बच्चे और उनका बचपना। दादा-दादी, नाना-नानी, बुआ, मामा आदि का साथ लगभग औपचारिक रह गया है। बच्चों को कहानी सुनाने वाला कोई नहीं है। ऐसे में वे किसी स्नेहमय हाथ के बजाए नौकरों व केयर टेकर के हाथों में होते हैं।

आज की शिक्षा प्रणाली
आज की शिक्षा प्रणाली भी बहुत हद तक इंटरनेट पर टिकी है। ऐसे में कई बार ऐसा होता है कि अभिभावक चाहकर भी बच्चों के हाथ से फोन आदि नहीं ले पाते हैं। कुछ स्कूलों ने फोन रखना अनिवार्य किया है ताकि बच्चे की सुरक्षा को लेकर घरवाले और शिक्षक भी आश्वस्त हो सके।

देर से सोना भी सिरदर्द
माता-पिता से अलग बच्चे दूसरे कमरे में अकेले होने के कारण देर रात तक फोन में लगे रहते हैं जिसके कारण वे देर रात को सोने तथा सुबह देर तक सोते रहने के कारण उनमें सुस्ती देखी जा रही है। उनका मन पढऩे में भी नहीं लग रहा है। यहां तक कि उनमें चिड़चिड़ापन और गुस्सा भी देखा जा रहा है।


मामलों पर एक नजर

– १२ अगस्त २०१७ को पूर्व मिदनापुर जिले में गेम के कारण १०वीं कक्षा के छात्र अंकन दे ने फांसी का फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली।

– २० अगस्त २०१८ को दर्जीलिंग में गेम के कारण मनीष सर्की ने आत्महत्या कर ली।
– २० अगस्त २०१८ को दर्जीलिंग में ही गेम की वजह से अदिति गोयल ने आत्महत्या कर ली थी।

– २१ अगस्त २०१८ को जलपईगुड़ी में कविता राय ने मोबाइल पर गेम का मैसेज आने के बाद पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई।

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इनका कहना है

अकेलापन और नेट में रहने के कारण बच्चों की आउटडोर खेलने की आदत खत्म हो गई है। बहुत सारे ऐसे खेल रोचक व रोमांच भरे होने के कारण मोबाइल पर खेलते हैं। ऐसे कई अभिभावक बच्चों का इलाज करने के लिए आ रहे हैं जिनको मोबाइल से बुरी तरह लत लग चुकी है। जो पहले अच्छा पढ़ते थे मोबाइल पाने के बाद उनकी पढ़ाई का ग्राफ काफी नीचे आ गया है। परिवार और दोस्तों से कट रहे हैं। इसके बाद वैसे बच्चे अवसादग्रस्त हो जाते हैं और नशे के आदि भी हो जाते हैं। इस तरह के मामले बढ़े हैं।
– पी. भौमिक, मनोवैज्ञानिक

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