परिजनों ने उसे अस्पताल ले जाने की बजाय इलाज के लिए एक ओझा को बुलाया। ओझा ने तालाब किनारे आग जलाई और तंत्र साधना शुरू कर दी। बच्चे को पानी में डूबोकर रखते हुए तालाब को बांस से पीटने को कहा। परिजन ओझा के कहने पर लगभग डेढ़ घंटे ऐसा करते रहे। तंत्र साधना के जरिए बच्चे का इलाज देखने लोगों की भीड़ तालाब के पास जुट गई। भीड़ में प्राथमिक चिकित्सा केंद्र के एक डॉक्टर भी थे। इस तरह से इलाज देखकर उन्होंने ओझा के चंगुल से बच्चे छुड़ाया और कैनिंग अस्पताल ले गए तब तक काफी देर हो चुकी थी। डॉक्टरों ने बच्चे को मृत घोषित कर दिया। डॉक्टरों के अनुसार समय रहते अस्पताल लाने से बच्चे की जान बच सकती थी।
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– पहले भी चलाया अभियान :
इससे पहले 2017 में जिले के बासंती इलाके में ठीक इसी तरह की घटना में 2 साल की एक बच्ची की मौत हो गई थी। उसके बाद जिला प्रशासन की ओर से जागरूकता अभियान चलाया गया था। इसके बावजूद लोगों की आंखों पर अंधविश्वास की बंधी काली पट्टी खुल नहीं रही है।